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बरेली हिंसा के मास्टरमाइंड तौकीर रजा की जमानत याचिका खारिज:हाईकोर्ट ने ‘सर तन से जुदा’ नारे को कानून, संविधान और संप्रभुता पर हमला बताया

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बरेली में 26 सितंबर को भड़की हिंसा और धार्मिक उकसावे से जुड़े तौकीर रज़ा मामले में जमानत याचिका खारिज करते हुए बेहद सख्त और विस्तृत आदेश पारित किया है। कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कहा है कि ‘गुस्ताख-ए-नबी की एक सजा, सर तन से जुदा’ जैसा नारा न केवल आपराधिक कृत्य है, बल्कि यह भारतीय संविधान, विधि व्यवस्था और देश की संप्रभुता पर सीधा हमला है। हाईकोर्ट ने टिप्पणी की कि यह ऐसा मामला है, जिसमें धार्मिक भावनाओं की आड़ लेकर भीड़ को हिंसा के लिए उकसाया गया और खुले तौर पर कानून को चुनौती दी गई। अदालत ने कहा कि इस तरह के नारे समाज में भय का माहौल पैदा करते हैं और सार्वजनिक शांति को गंभीर रूप से प्रभावित करते हैं। किस मामले में दाखिल हुई थी जमानत याचिका यह आदेश आपराधिक विविध जमानत आवेदन संख्या 43604/2025 में पारित किया गया है। जमानत याचिका थाना कोतवाली, जिला बरेली में दर्ज केस संख्या 489/2025 से संबंधित थी। तौकीर रज़ा के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (BNS) की कई गंभीर धाराओं के साथ-साथ आपराधिक विधि संशोधन अधिनियम और सार्वजनिक संपत्ति क्षति निवारण अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है। मामला ट्रायल के दौरान जमानत से जुड़ा था, लेकिन अदालत ने अपराध की प्रकृति, सामाजिक प्रभाव और केस की गंभीरता को देखते हुए किसी भी तरह की राहत देने से इनकार कर दिया। हाईकोर्ट में किसने रखी दलीलें इस मामले की सुनवाई कोर्ट नंबर 69 में हुई, जहां न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं। तौकीर रज़ा की ओर से अधिवक्ता अखिलेश कुमार द्विवेदी ने पक्ष रखा, जबकि राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता अनूप त्रिवेदी पेश हुए। राज्य की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता संजय कुमार सिंह और नितेश कुमार श्रीवास्तव ने भी अदालत की सहायता की। हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलों के साथ केस डायरी और उपलब्ध साक्ष्यों का विस्तार से अध्ययन करने के बाद जमानत याचिका खारिज करने का फैसला सुनाया। कैसे शुरू हुआ पूरा विवाद
हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार, 26 मई 2025 को एक एफआईआर दर्ज की गई थी। आरोप था कि इत्तेहादे मिल्लत काउंसिल के अध्यक्ष मौलाना तौकीर रज़ा और संगठन के नेता नदीम खान ने मुस्लिम समुदाय को इस्लामिया इंटर कॉलेज के मैदान में इकट्ठा होने का आह्वान किया। यह आह्वान राज्य द्वारा कथित अत्याचारों और मुस्लिम युवाओं पर झूठे मुकदमे दर्ज करने के विरोध के नाम पर किया गया था। धारा 163 लागू होने के बावजूद जुटाई गई भीड़
कोर्ट के रिकॉर्ड में यह स्पष्ट किया गया कि 25 सितंबर 2025 को पुलिस को सूचना मिली थी कि नमाज के बाद भीड़ जुटाने की तैयारी है। उस समय पूरे बरेली जिले में बीएनएसएस की धारा 163 लागू थी, जिसके तहत पांच से अधिक लोगों के एकत्र होने पर रोक थी। इसके बावजूद, अगले दिन नमाज के बाद बिहारीपुर इलाके में सैकड़ों लोग इकट्ठा हुए। 5000 से ज्यादा की भीड़ और आपत्तिजनक नारे
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में लिखा कि बिहारीपुर क्षेत्र में करीब 5000 लोगों की भीड़ जमा हुई। इस भीड़ ने सरकार विरोधी नारे लगाए और इसके साथ ही बेहद आपत्तिजनक नारा लगाया गया, जिसमें ‘गुस्ताख-ए-नबी की एक सजा, सर तन से जुदा’ का उद्घोष किया गया। अदालत ने माना कि यह नारा सीधे तौर पर हिंसा के लिए उकसाने वाला और कानून को ठुकराने वाला है। पुलिस ने रोका तो हिंसा में बदला माहौल
कोर्ट ने यह भी दर्ज किया कि जब पुलिस ने भीड़ को रोकने का प्रयास किया और बताया कि धारा 163 के तहत जमावड़ा गैरकानूनी है, तब हालात और बिगड़ गए। भीड़ ने पुलिसकर्मियों पर हमला किया, उनकी लाठियां छीनीं, वर्दी फाड़ी और पत्थरबाजी शुरू कर दी। इसके अलावा पेट्रोल बम फेंके गए और फायरिंग की घटनाएं भी सामने आईं। पुलिसकर्मियों को चोट, सरकारी और निजी संपत्ति को नुकसान
हाईकोर्ट के आदेश में साफ कहा गया कि इस हिंसा में कई पुलिसकर्मी घायल हुए। इसके साथ ही पुलिस वाहनों के अलावा निजी वाहनों और अन्य संपत्तियों को भी नुकसान पहुंचाया गया। अदालत ने माना कि यह केवल कानून व्यवस्था की समस्या नहीं थी, बल्कि यह राज्य के खिलाफ संगठित हिंसक कृत्य था। मौके से गिरफ्तारी और बड़े पैमाने पर नामजदगी
पुलिस ने मौके से वर्तमान आवेदक समेत सात लोगों को गिरफ्तार किया। उनके बयानों और जांच के आधार पर मुख्य आरोपी के रूप में मौलाना तौकीर रज़ा और नदीम खान के नाम सामने आए। इसके बाद 25 नामजद और करीब 1700 अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई। सीसीटीवी फुटेज, स्वतंत्र गवाहों और अन्य सबूतों के आधार पर आगे की कार्रवाई की गई। बचाव पक्ष ने क्या कहा
आवेदक के वकील ने अदालत में तर्क दिया कि उनके मुवक्किल को झूठा फंसाया गया है। उन्होंने दावा किया कि गिरफ्तारी मौके से नहीं बल्कि घर से हुई थी और आवेदक का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है। इसी आधार पर उन्होंने जमानत देने की मांग की। राज्य ने क्यों किया जमानत का विरोध
राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता ने जमानत याचिका का कड़ा विरोध किया। उन्होंने अदालत को बताया कि यह मामला केवल एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि समाज में धार्मिक उन्माद फैलाने और भीड़ को हिंसा के लिए उकसाने का है। राज्य ने कहा कि ऐसे नारे भारतीय कानून को नकारने और देश की एकता व अखंडता को चुनौती देने के बराबर हैं। ‘सर तन से जुदा’ नारे पर हाईकोर्ट की कड़ी टिप्पणी
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में विस्तार से कहा कि किसी भी धर्मग्रंथ में इस तरह के नारे का समर्थन नहीं मिलता। अदालत ने स्पष्ट किया कि भारत में किसी भी अपराध के लिए सिर कलम करने जैसा कोई दंड कानून में मौजूद नहीं है। ऐसे में इस तरह का नारा लगाना सीधे तौर पर भारतीय विधि व्यवस्था को खारिज करने जैसा है। बीएनएस की धाराओं का विस्तार से उल्लेख
कोर्ट ने अपने आदेश में बीएनएस की धारा 298, 299, 302 और 196 का विस्तार से उल्लेख किया। अदालत ने कहा कि धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना, विभिन्न समुदायों के बीच शत्रुता फैलाना और सार्वजनिक शांति भंग करना पहले से ही कानून में दंडनीय अपराध हैं। इसके बावजूद यदि भीड़ हिंसा और मृत्युदंड का नारा देती है, तो यह गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है। पाकिस्तान के ईशनिंदा कानून का ऐतिहासिक संदर्भ
हाईकोर्ट ने आदेश में यह भी बताया कि ‘सर तन से जुदा’ जैसा नारा भारत की परंपरा या कानून से नहीं, बल्कि पाकिस्तान के ईशनिंदा कानून की पृष्ठभूमि से जुड़ा है। अदालत ने ज़िया-उल-हक के दौर, धारा 295 और एशिया बीबी केस का उल्लेख करते हुए कहा कि यह नारा धार्मिक उन्माद फैलाने का माध्यम बना। पैगंबर मोहम्मद के जीवन से उदाहरण
कोर्ट ने अपने आदेश में पैगंबर मोहम्मद के जीवन से जुड़े उदाहरण भी दिए और बताया कि उन्होंने अपमान सहने के बावजूद दया और सहनशीलता का मार्ग अपनाया। अदालत ने कहा कि हिंसा और सिर कलम करने का आह्वान इस्लाम की मूल शिक्षाओं के भी खिलाफ है। अभिव्यक्ति की आज़ादी की सीमा तय की
हाईकोर्ट ने साफ किया कि संविधान अनुच्छेद 19 के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है, लेकिन उसकी सीमाएं भी तय करता है। कोई भी नारा जो कानून से ऊपर जाकर मौत की सजा का ऐलान करे, उसे अभिव्यक्ति नहीं बल्कि अपराध माना जाएगा। क्यों नहीं मिली जमानत
अदालत ने कहा कि केस डायरी में पर्याप्त सबूत मौजूद हैं, जिनसे यह साबित होता है कि तौकीर रज़ा गैरकानूनी सभा का हिस्सा था। पुलिसकर्मियों को चोट पहुंचाई गई, सार्वजनिक और निजी संपत्ति को नुकसान हुआ और धारा 163 का खुला उल्लंघन किया गया। ऐसे में जमानत देने का कोई आधार नहीं बनता। हाईकोर्ट का अंतिम फैसला
इन सभी तथ्यों और कानूनी विश्लेषण के आधार पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तौकीर रज़ा की जमानत याचिका खारिज कर दी। अदालत ने साफ संदेश दिया कि कानून को चुनौती देने वाले नारों और हिंसक भीड़ के प्रति सख्ती बरती जाएगी। पुलिस प्रशासन की कार्रवाई की कोर्ट ने की तारीफ
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में यह भी माना कि बरेली पुलिस और प्रशासन ने हालात को काबू में लाने में समय पर और संतुलित कार्रवाई की। कोर्ट के अनुसार, एडीजी जोन रमित शर्मा और डीआईजी अजय कुमार साहनी के निर्देशन में पुलिस ने कानून व्यवस्था बहाल की। डीएम अविनाश सिंह और एसएसपी अनुराग आर्य की निगरानी में मौके पर हालात संभाले गए। एसपी सिटी मानुष पारीक, एसपी साउथ अंशिका वर्मा, एसपी नॉर्थ मुकेश चंद्र मिश्रा और सीओ सिटी आशुतोष शिवम व पंकज श्रीवास्तव की सक्रिय भूमिका को भी आदेश में अहम माना गया।


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