बरेली में आशा और आशा संगिनी कर्मियों का आंदोलन तेज हो गया है। वे राज्य कर्मचारी का दर्जा, न्यूनतम वेतन और सामाजिक सुरक्षा जैसी बुनियादी मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रही हैं। गुरुवार को सैकड़ों आशा कर्मियों ने दामोदर स्वरूप पार्क से कलेक्ट्रेट गेट तक मार्च निकाला और सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया। प्रदर्शन के बाद मुख्यमंत्री को संबोधित एक ज्ञापन सिटी मजिस्ट्रेट को सौंपा गया। प्रदर्शनकारियों ने बताया कि उनकी अनिश्चितकालीन हड़ताल जारी रहेगी। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि उनकी मांगों पर जल्द निर्णय नहीं लिया गया, तो 23 दिसंबर के बाद वे लखनऊ में विधानसभा का घेराव करेंगी। आशा कर्मियों का आरोप है कि मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य, टीकाकरण और ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं में वर्षों से महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के बावजूद उन्हें ‘स्वयंसेवक’ का दर्जा दिया जा रहा है, जिससे उनके अधिकार सीमित हो रहे हैं। उत्तर प्रदेश आशा वर्कर्स यूनियन की मंडल सचिव जयश्री गंगवार ने कहा कि 45वें भारतीय श्रम सम्मेलन की सिफारिशों के अनुसार, आशा और आशा संगिनी को मानदेय आधारित स्वयंसेवक के बजाय सरकारी कर्मचारी का दर्जा दिया जाना चाहिए। उन्होंने मांग की कि न्यूनतम वेतन लागू होने तक आशा कर्मियों को 21 हजार रुपये और आशा संगिनी को 28 हजार रुपये मासिक मानदेय दिया जाए। उनकी अन्य मांगों में ईपीएफ, ईएसआई, सेवानिवृत्ति पर ग्रेच्युटी, 10 लाख रुपये का स्वास्थ्य बीमा और 50 लाख रुपये का जीवन बीमा शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, प्रोत्साहन राशि का नियमित और पारदर्शी भुगतान, आवागमन के लिए स्कूटी, 5जी मोबाइल व इंटरनेट सुविधा तथा वर्षों से लंबित बकाया भुगतान तत्काल जारी करने की भी मांग की गई। उत्तर प्रदेश आशा वर्कर्स यूनियन की जिला अध्यक्ष जयश्री गंगवार ने चेतावनी दी कि यदि सरकार ने जल्द सकारात्मक कदम नहीं उठाया, तो आंदोलन को और व्यापक बनाया जाएगा। उन्होंने कहा कि इससे स्वास्थ्य सेवाओं पर असर पड़ सकता है, जिसकी पूरी जिम्मेदारी सरकार की होगी।
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