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पूर्व CM ने उठाई थी मांग, नहीं मिली हाईकोर्ट बेंच:आखिर क्यों बेंच से दूर है वेस्ट यूपी, जानिए बड़ी वजह

पश्चिमी यूपी में जनता को सस्ता, सुलभ न्याय दिलाने की मांग पिछले 60 सालों से उठ रही है। 60 साल पहले पूर्व CM संपूर्णानंद ​​​​​ने इसकी मांग उठाई थी। वकील सड़कों पर उतरे, हड़ताल की, ट्रेन रोकी यहां तक की अनशन भी किया, लेकिन पश्चिमी यूपी में हाईकोर्ट बेंच नहीं ला सके। 6 दशकों पुराने आंदोलन के बाद भी वेस्ट यूपी में हाईकोर्ट बेंच नहीं मिल रही। इसके पीछे क्या कारण हैं। मेरठ से प्रयागराज की दूरी करीब 700 किलोमीटर होने और 60 सालों के आंदोलन के बावजूद बेंच नहीं मिल रही। पश्चिमी यूपी में 22 जिले लगते हैं, और इन जिलों से इलाहाबाद हाइकोर्ट की दूरी पाकिस्तान के लाहौर से भी ज्यादा है। इसकी वजह क्या है? दैनिक भास्कर ने ग्राउंड पर जाकर एक्सपर्ट से बात करके बेंच आखिर क्यों नहीं मिल रही। उन कारणों को समझा, पढ़िए पूरी रिपोर्ट… संघर्ष के बावजूद बेंच क्यों नहीं मिल रही वो कारण पढ़िए.. 1. सांसद, नेता दिल से इस मांग में साथ नहीं है
यूपी बार कांउसिल के पूर्व चेयरमैन और मेरठ बार एसो. के पूर्व अध्यक्ष रोहिताश कुमार अग्रवाल ने कहा कि सबसे पहला कारण नेता प्रतिपक्ष के रूप में पूर्व पीएम स्व. माननीय अटल बिहारी वाजपेयी ने तत्समय सरकार कानून मंत्री से सवाल कि बेंच क्यों नहीं मिल रही। जसवंत सिंह आयोग की रिपोर्ट आ चुकी है। 1992 से हम लोग आंदोलनरत हैं। जगह-जगह चक्काजाम है, डॉ. संपूर्णानंद के समय से हम आंदोलनरत हैं। उस वक्त कानून मंत्री हंसराज भारद्वाज ने कहा हमें वेस्ट में बेंच देने में कोई आपत्ति नहीं है, तब हमने अटल जी से संसद से इसकी प्रमाणित कॉपी ली। जब अटल जी पीएम बने तो वेस्ट यूपी के हम सारे वकीलों का डेलिगेशन वीरेंद्र वर्मा की अगुआई में अटल जी से मिलने गया। हमने उन्हें वेस्ट यूपी में बेंच की मांग उठाने के सवाल की वो सर्टिफाइड कॉपी दिखाई, जो उन्होंने नेता प्रतिपक्ष रहते हुए कहा था। तब हमने उनसे कहा कि अब तो आप पीएम हैं, अब बेंच दे दीजिए। नेता प्रतिपक्ष के रूप में आपने ये सवाल उठाया था, अब तो आप पीएम हैं। तब उन्होंने कहा कि कभी-कभी गवाह भी होस्टाइल होता है। ये बेंच राजनीतिक लड़ाई के कारण नहीं मिल रही। राजनीतिक उदासीनता में जनता पिस रही है। हमने सारे सांसदों से कहा कि पार्लियामेंट में आकर खड़े हों, बेल में आकर खड़े हो जाएं, लेकिन कोई सांसद सामने नहीं आया। अगर ये सारे सांसद एकजुट होकर संसद में खड़े हों और पीएम के सामने जाकर बेंच की मांग उठाएं तो निश्चित तौर पर ये बेंच मिल जाएगी। राजनीतिक कारणों और इलाहाबाद के दबाव में बेंच नहीं मिल रही। 2. पूर्वांचल के वकीलों की नाराजगी का खौफ, कहीं वोट न कट जाए
मेरठ बार एसो. के पूर्व अध्यक्ष गजेंद्र सिंह धामा ने बताया- 50 सालों के भी अधिक समय से मैं यहां प्रैक्टिस कर रहा हूं, लेकिन बेंच की मांग उससे भी पुरानी है। ये मांग नहीं बल्कि आवश्यकता है। ये दुर्भाग्य है वेस्ट यूपी का कि कोई भी नेता आए वो बेंच के लिए आश्वस्त करते हैं मगर इमदाद नहीं करते। अब वो समय आ गया है कि हर अति का अंत है। आजादी के आंदोलन के बाद ये सबसे बड़ा आंदोलन है। हमलोग वेस्ट यूपी की जनता के लिए संघर्ष करते हैं। जब तक बेंच नहीं आएगी, हम संघर्षरत रहेंगे। जितना शोषण वहां इलाहाबाद में जनता का होता है। यूपी में केवल एक बेंच है, महाराष्ट्र में हमसे आधी जनता है इसके बावजूद वहां यूपी से ज्यादा बेंच हैं। यूपी इतना बड़ा राज्य है यहां 4 बेंच की जरूरत है। मेरठ, आगरा, वाराणसी और गोरखपुर में बेंच दे दें। बेंच आगरा, मेरठ कहीं भी बने हमें दिक्कत नहीं है। लेकिन वेस्ट यूपी को बेंच मिलना चाहिए। देश के 53वें चीफ जस्टिस सूर्यकांत ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाईकोर्ट बेंच को एक बड़ा मुद्दा माना है। पूर्वांचल के 100-200 वकील है इससे इफेक्टिव हो रहे हैं। अगर बेंच बन जाती है तो 22 लाख से अधिक की पेंडेंसी खत्म होगी। इस बेंच से पूर्वांचल ही नहीं पूरे यूपी की जनता को सस्ता, सुलभ और जल्दी न्याय मिलेगा। अभी लोगों के नंबर ही नहीं आते। तब जल्दी न्याय मिलेगा। उन चंद लोंगों की नाराजगी उनके वोट बैंक के चक्कर में पश्चिमी यूपी में बेंच नहीं आ रही। 3. सदन में केवल शून्यकाल में मुद्दा उठाते हैं
मेरठ बार एसो. के पूर्व अध्यक्ष अजय त्यागी ने कहा कि बेंच न मिलने का कारण राजनीतिक उदासीनता है। लगातार मुद्दा उठ रहा है, बेंच के लिए जसवंत सिंह कमीशन बना था। वाजपेयी जी ने अपोजीशन लीडर रहते हुए यह मुद्दा उठाया था। तब ये मान लिया गया कि पश्चिमी यूपी में हाईकोर्ट बेंच बननी चाहिए। इसके बाद लगातार ये मुद्दा चल रहा है। राजनीति के नेता वेस्ट यूपी के इस मुद्दे को वोटों के रूप में देख रहे हैं, उन्हें जनता का दर्द नहीं दिख रहा। सांसद सदन में शून्यकाल में बेंच का मुद्दा उठाते हैं। अगर ये सवाल सदन में मजबूती से उठेगा तो इसका असर दिखेगा। राजनीतिक नेताओं की कमजोरी के कारण हमारी मेहनत सफल नहीं हो रही और जनता को हाईकोर्ट बेंच नहीं मिल रही है। 4. इलाहाबाद का राजनीतिक वर्ग एकजुट है वेस्ट यूपी का नहीं
पूर्व डीजीसी सीनियर एडवो. अनिल तोमर कहते हैं कि बेंच न मिलने का मुख्य कारण राजनीतिक कमजोरी है। हमारे सांसद, विधायक, नेता कोई इसमें हमारी मदद नहीं करना चाहते। आज जनता से हमें पूरे पश्चिमी यूपी का सहयोग मिल रहा है लेकिन जनप्रतिनिधि इसमें हमारा सहयोग नहीं देना चाहते। एक गरीब आदमी अपने लिए न्याय की मांग करने को 700 किमी दूर जाता है। वहां होटल में रुकने से लेकर तमाम खर्च करता है लेकिन उसे न्याय नहीं मिला। जितने भी सांसद, विधायक हैं। उनको एकजुट होकर ये मामला उठाना चाहिए, तभी उनका सहयोग हमें मिलेगा। इलाहाबाद का राजनीतिक वर्ग एकजुट होकर खड़ा होता है लेकिन हमारे नेता उस वक्त चुप हो जाते हैं। महाराष्ट्र में चार–चार खंडपीठ, यूपी में सिर्फ दो
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में प्रमुख रूप से मेरठ, सहारनपुर, मुरादाबाद, अलीगढ़, आगरा मंडल के जिले आते हैं। इन सभी जिलों से इलाहाबाद हाईकोर्ट की दूरी करीब–करीब 700 किलोमीटर है। इतनी लंबी दूरी के कारण मुवक्किलों और वकीलों को ज्यादा समय, ज्यादा पैसा खर्च करना होता है। गरीबी और कम संसाधन वाले लोगों के लिए ये समस्या और ज्यादा हो जाती है। यूपी में हाईकोर्ट के अलावा उसकी एक और खंडपीठ है, वो लखनऊ में है। लखनऊ भी वेस्ट यूपी से करीब 450 किलोमीटर दूर है। हालांकि वेस्ट के मुकदमों की सुनवाई सीधे इलाहाबाद हाईकोर्ट में ही होती है। महाराष्ट्र में हाल ही में हाईकोर्ट की चौथी बेंच स्थापित करने की अधिसूचना जारी हुई है। वकील कहते हैं कि जब महाराष्ट्र में चौथी बेंच बन सकती है तो वेस्ट यूपी में क्यों नहीं? मेरठ में उच्च न्यायालय में सबसे अधिक मामले (लगभग 45 लाख) दर्ज हैं, इसलिए यहाँ उच्च न्यायालय की बेंच स्थापित करना पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 22 जिलों के वकीलों के हितों की पूर्ति के लिए सबसे उपयुक्त होगा? पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए मेरठ में उच्च न्यायालय की बेंच क्यों नहीं स्थापित की जा सकती, जबकि केवल 12 जिलों के लिए लखनऊ में और इसी तरह कर्नाटक के धारवाड़ और गुलबर्गा में क्रमश: 4 और 8 जिलों के लिए उच्च न्यायालय की बेंच स्थापित की जा सकती है। जहां पहले से ही हुबली में बेंच मौजूद है? जंतर-मंतर व संसद भवन पर अनेको बार धरने हुए, गिरफ्तारी हुई, जेल भरो आंदोलन हुए फिर भी बेंच नहीं आई और संघर्ष जारी रहा। लाहौर से भी दूर है इलाहाबाद हाईकोर्ट
पश्चिमी यूपी में 22 जिले लगते हैं, और इन जिलों से इलाहाबाद हाइकोर्ट की दूरी पाकिस्तान के लाहौर से भी ज्यादा है। इलाहाबाद हाईकोर्ट में वेस्ट यूपी के 2008 के आंकड़ों के हिसाब से सिविल के 6 से ज्यादा मुकदमे, क्राइम के करीब 3 लाख और बाकी के साढ़े पांच लाख मुकदमे लंबित हैं। हाई कोर्ट में 50% से ज्यादा काम वेस्ट यूपी का होता है और ऐसे में वेस्ट यूपी में हाई कोर्ट बेंच की स्थापना होगी तो मुकदमों के फैसले जल्दी आएंगे और लोगों का समय और पैसा दोनों बचेगा। हाईकोर्ट में हर महीने साढ़े 5 हजार नए केस
वकीलों की केंद्रीय संघर्ष समिति के चेयरमैन संजय शर्मा का कहना है कि, 700 किमी की दूरी पर न्याय कैसे सुलभ होगा। 20–25 साल में भी अपील पर सुनवाई नहीं’ होती। इलाहाबाद हाईकोर्ट में मुकदमों की पेंडेंसी काफी है। वहां हर महीने साढ़े पांच हजार नए केस दर्ज हो रहे हैं, जबकि पुरानी पेंडेंसी खत्म नहीं हो रही। 20–25 साल हो गए, लोगों की अपीलों का नंबर नहीं आ रहा। जो केस लिस्टेड हो जाते हैं, उनमें भी कई–कई साल तक सुनवाई नहीं हो पाती। जनता को न्याय नहीं मिलने से कानून व्यवस्था भी प्रभावित है। पूर्व सीएम ने भी उठाया मुद्दा
इस मांग को सबसे पहले 1951 में प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे संर्पूणानंद ने उठाया था। इसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी, रामनरेश यादव, बाबू बनारसी दास, मायावती ने भी इस पर सहमति जताई थी। मेरठ के भाजपा से तीसरी बार सांसद राजेंद्र अग्रवाल ने वेस्ट यूपी में हाई कोर्ट बेंच के मुद्दे को अब तक तीन बार लोकसभा में उठाया है। उन्होंने खुद भी प्राइवेट मेंबर बिल के जरिए हाई कोर्ट बेंच की बात रखी है। ———————— ये खबर भी पढ़ें… पश्चिमी यूपी के 22 जिलों में बंद, वकील सड़क पर:मेरठ में स्कूल-कॉलेज नहीं खुले, बोले- हाईकोर्ट बेंच मिलने तक रुकेंगे नहीं पश्चिमी यूपी में हाईकोर्ट बेंच की स्थापना को लेकर मेरठ समेत पश्चिमी यूपी के 22 जिलों में बंद का आह्वान किया गया है। यह बंद हाईकोर्ट बेंच स्थापना केंद्रीय संघर्ष समिति ने किया है। 22 जिलों के अधिवक्ताओं और 1200 से अधिक संगठन भी हाईकोर्ट बेंच की मांग को लेकर अपना समर्थन दे रहे हैं। पढ़ें पूरी खबर…


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