भाजपा ने यूपी में महराजगंज सांसद पंकज चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर कुर्मी कार्ड खेला है। ओबीसी में यादवों के बाद कुर्मी वोटबैंक सबसे बड़ा माना जाता है। पंकज चौधरी पर दांव लगाना भाजपा के लिए कितना फायदेमंद होगा? मौजूदा समय में किस पार्टी के कितने विधायक-सांसद कुर्मी हैं? कुर्मी/पटेल समाज की राजनीति के लिए बना अपना दल (एस) पर इसका क्या असर पड़ेगा? 2024 में कुर्मी वोटबैंक के बलबूते भाजपा को बहुमत से रोकने वाली सपा पर क्या प्रभाव पड़ेगा? पढ़िए पूरी स्टोरी… यूपी की कितनी सीटों पर कुर्मी जाति का असर
देश में 1931 के बाद जाति-आधारित जनगणना नहीं हुई है। इसलिए कुर्मी जाति की आबादी के आंकड़े अनुमानित हैं। 2001 में यूपी सरकार की बनाई हुकुम सिंह कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार, कुर्मी (और पटेल) की आबादी राज्य की कुल जनसंख्या का करीब 7.4% है। यह रिपोर्ट ग्रामीण परिवार रजिस्टरों पर आधारित थी। इसमें ओबीसी की कुल आबादी 50% से अधिक बताई गई थी। 2011 की जनगणना में यूपी की कुल आबादी करीब 20 करोड़ थी। 2025 में अनुमानित आबादी करीब 25 करोड़ मानी जा रही है। इस हिसाब से प्रदेश में कुर्मी आबादी 1.75 से 2 करोड़ के बीच बैठती है। मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य की बात करें, तो प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों में कुर्मी/पटेल समाज के 40 विधायक हैं। इनमें भाजपा से 27, सपा से 12 और कांग्रेस से 1 विधायक हैं। 100 एमएलसी में 5 कुर्मी समाज से हैं। यूपी की 80 लोकसभा सीटों में 11 सांसद कुर्मी समाज से आते हैं। इनमें सपा के 7, भाजपा के 3 और अपना दल (एस) की अनुप्रिया पटेल शामिल हैं। विधायकों की संख्या के लिहाज से ब्राह्मण-ठाकुर के बाद कुर्मी तीसरे नंबर पर हैं, जबकि सांसदों में इनकी संख्या ब्राह्मणों के बराबर है। प्रदेश में पूर्वांचल, अवध, मध्य यूपी और बुंदेलखंड की 128 विधानसभा सीटों पर कुर्मी वोटर प्रभावी भूमिका निभाते हैं। इनमें 48 से 50 सीटों पर वे निर्णायक असर डालते हैं। इसी तरह लोकसभा की 27 सीटों पर उनका प्रभाव है, लेकिन 11 सीटों पर जीत-हार तय करने की स्थिति में रहते हैं। अपना दल (एस) की घटेगी बारगेनिंग पावर
2014 से भाजपा का यूपी में अपना दल (एस) के साथ गठबंधन चल रहा। इस गठजोड़ से दोनों दलों को फायदा मिला। मौजूदा समय में अपना दल (एस) प्रदेश की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी है। बसपा और कांग्रेस भी इससे पीछे हैं। विधानसभा में इसके 12 विधायक, एक एमएलसी और एक लोकसभा सांसद हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी 17 सीटों पर लड़ी थी और 12 पर जीत दर्ज की थी। इससे पहले 2017 में 11 सीटों पर लड़कर 9 सीटें जीती थीं। अपना दल की स्थापना बसपा के संस्थापक सदस्यों में शामिल रहे सोनेलाल पटेल ने की थी। उनकी बेटी अनुप्रिया पटेल पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। अपना दल (एस) की पूरी राजनीति कुर्मी/पटेल समाज के इर्द-गिर्द ही केंद्रित रही है। अब सवाल यह है कि भाजपा ने कुर्मी समाज से आने वाले पंकज चौधरी को प्रदेश संगठन की कमान सौंपकर अपना दल (एस) को क्या सियासी संदेश दिया है? राजनीतिक विश्लेषक अरविंद जय तिलक कहते हैं- यूपी में जातीय समीकरण हमेशा एक अहम फैक्टर रहा है। अपना दल (एस) के गठन का जातीय आधार ही कुर्मी वोटबैंक है। यूपी सरकार में अपना दल (एस) से मंत्री आशीष पटेल और राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल कई मुद्दों पर सरकार को घेरते हुए नजर आती रही हैं। ऐसे में पंकज चौधरी के बहाने भाजपा उन्हें कंट्रोल करने की स्थिति में रहेगी। दूसरा बड़ा असर यह होगा कि कुर्मी वोटबैंक में खुद भाजपा बड़ी सेंधमारी करेगी। भाजपा की रणनीति शुरू से रही है कि वह अलग-अलग जातियों के बड़े चेहरों को पार्टी के भीतर ही खड़ा करे। केशव प्रसाद मौर्य इसका उदाहरण हैं। कभी स्वामी प्रसाद मौर्य ही कुशवाहा/मौर्य समाज के सबसे बड़े नेता थे। लेकिन, भाजपा ने केशव प्रसाद मौर्य का कद बढ़ाकर उन्हें पीछे छोड़ दिया। इसी तरह सुभासपा प्रमुख ओमप्रकाश राजभर के मुकाबले भाजपा ने अनिल राजभर को आगे बढ़ाने की कोशिश की थी। हालांकि, वह प्रयोग सफल नहीं हुआ। अब भाजपा ने अपने वरिष्ठ कुर्मी नेता पंकज चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर उनका कद बढ़ाया है। भाजपा का यह प्रयोग कितना सफल होगा, इसका पता पंचायत चुनावों के नतीजों से मिलेगा। इसके बाद ही भाजपा यह तय करेगी कि वह अपना दल (एस) के साथ भविष्य में किस तरह का व्यवहार करती है। 2022 में अपना दल (एस) को 17 सीटें मिली थीं। उस समय सुभासपा और रालोद सपा गठबंधन में थे। मौजूदा समय में दोनों दल एनडीए के घटक हैं। ऐसे में साफ है कि इन दलों को मिलने वाली सीटों में भाजपा के साथ अपना दल (एस) और निषाद पार्टी को भी कुछ सीटों की कुर्बानी देनी पड़ सकती है। पंकज चौधरी के प्रदेश अध्यक्ष रहते अपना दल (एस) शायद भाजपा पर ज्यादा दबाव न बना पाए। सपा का PDA फॉर्मूला बिगड़ेगा, कुछ कुर्मी नेता साथ भी छोड़ सकते हैं
सपा को 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के मुकाबले अपेक्षित सफलता नहीं मिली थी। लेकिन, 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा ने भाजपा को कड़ी टक्कर दी। कांग्रेस के साथ मिलकर सपा ने 43 सीटें जीतीं, जिनमें 37 सीटें सपा के खाते में गईं। इस दौरान सपा ने PDA (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) का नारा दिया और रणनीतिक रूप से कुर्मी बहुल संसदीय सीटों पर इसी समाज के उम्मीदवार उतारे। संविधान पर खतरे का नरेटिव भी गढ़ा गया, जिसका उसे फायदा मिला। सपा संसद में भाजपा और कांग्रेस के बाद तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। उसकी इस सफलता में ओबीसी मतदाताओं का सबसे बड़ा योगदान रहा। सपा के 37 सांसदों में 20 ओबीसी हैं, जिनमें 7 कुर्मी सांसद शामिल हैं। दरअसल, 2014 और 2019 में भाजपा की सफलता में कुर्मी जाति का बड़ा योगदान रहा था। 2024 में सपा ने भी इसी समीकरण पर दांव लगाया। खासतौर पर उन सीटों पर कुर्मी उम्मीदवार उतारे गए, जहां भाजपा ने गैर-ओबीसी प्रत्याशी खड़े किए थे। लखीमपुर खीरी में अजय कुमार मिश्र टेनी के मुकाबले उत्कर्ष वर्मा, बस्ती में हरीश द्विवेदी के सामने रामप्रसाद चौधरी को उतारा गया- दोनों जीतने में सफल रहे। बांदा से कृष्णा देवी पटेल, फतेहपुर से नरेश उत्तम पटेल, प्रतापगढ़ से एपी सिंह पटेल, अंबेडकर नगर से लालजी वर्मा और श्रावस्ती से राम शिरोमणि वर्मा भी जीत दर्ज करने में सफल रहे। उधर, भाजपा के कुर्मी प्रत्याशी महराजगंज से पंकज चौधरी, बरेली से छत्रपाल सिंह गंगवार और फूलपुर से प्रवीण पटेल जीते, जबकि मिर्जापुर से अपना दल (एस) की अनुप्रिया पटेल संसद पहुंचीं। यही फैक्टर दोनों गठबंधनों के बीच सीटों के अंतर की बड़ी वजह बना। सपा के इसी पीडीए फॉर्मूले की काट के लिए भाजपा ने गैर-यादव ओबीसी समाज से आने वाले पंकज चौधरी पर दांव लगाया। उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाकर भाजपा ने सपा की कुर्मी रणनीति को चुनौती दी है। मुलायम सिंह यादव ने कभी ओबीसी समाज के अलग-अलग नेताओं को साथ लेकर एक राजनीतिक ‘अंब्रेला’ तैयार किया था। अब भाजपा भी अलग-अलग ओबीसी जातियों के प्रभावशाली चेहरे खड़े करने में जुटी है। पंकज चौधरी के जरिए वह कुर्मी वोटबैंक में बड़ी सेंधमारी की रणनीति पर काम कर रही है। कुर्मी वोटबैंक में भाजपा की यह सेंधमारी सीधे तौर पर सपा को नुकसान पहुंचाएगी। हर जाति में 15-20% फ्लोटिंग वोटर होते हैं। पंकज चौधरी के नेतृत्व में यह फ्लोटिंग वोट भाजपा की ओर शिफ्ट हो सकता है। राजनीतिक विश्लेषक अरविंद जय तिलक के मुताबिक, अगर भाजपा पंकज चौधरी के जरिए कुर्मी वोटबैंक में 50% तक सेंध लगाने में सफल होती है, तो यह उसकी बड़ी रणनीतिक कामयाबी होगी। जातीय अस्मिता के सहारे कुर्मी समाज भाजपा के साथ जुड़ सकता है। पंचायत चुनावों के बाद सपा के कुछ बड़े कुर्मी चेहरे भी पाला बदल सकते हैं। यह सपा के लिए चिंता का विषय हो सकता है। ———————- ये खबर भी पढ़ें- खेती करने वाले कुर्मी समाज के किंगमेकर बनने की कहानी, यूपी की सियासत में क्यों जरूरी बना कुर्मी वोटबैंक उत्तर प्रदेश की सियासत में कुर्मी, यादवों के बाद OBC की दूसरी सबसे बड़ी जाति है। यही कुर्मी समाज अब भाजपा की नई रणनीति का केंद्र बनी है। केंद्रीय मंत्री पंकज चौधरी को यूपी भाजपा अध्यक्ष बनाकर पार्टी ने कुर्मी कार्ड खेला, जो 2027 विधानसभा चुनाव से पहले बड़ा संदेश है। पढ़िए सिलसिलेवार…
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