सिरसा जिले के युवा साहिल ज्याणी का अग्निवीर में चयन हुआ है। उन्होंने महज 18 वर्ष की आयु में अग्निवीर भर्ती प्रक्रिया को पहले ही प्रयास में सफलता पाई है। इससे अपने परिवार और क्षेत्र का नाम रोशन किया। वह नाथूसरी चौपटा पैंतालीस क्षेत्र के खेड़ी गांव के रहने वाला है और किसान परिवार से हैं। साहिल अपने परिवार का इकलौता चिराग है और दो बहनों से छोटा है। जानकारी के अनुसार, साहिल शहीद निहाल सिंह गोदारा के गांव से हैं। निहाल सिंह जम्मू कश्मीर में आतंकवादियों के साथ गोलीबारी में शहीद हो गए हैं। यह गांव ऐलनाबाद हलके राजस्थान सीमा से सटा हुआ है, जहां पर परिवहन सुविधाएं भी कम है। युवाओं को 10वीं या इससे ऊपर की पढाई के लिए दूसरे गांव में जाना पड़ता है। इसी वर्ष 12वीं की पढ़ाई पूरी की साहिल ने इसी वर्ष रामपुरा ढिल्लो स्थित राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल से 12वीं कक्षा की पढ़ाई पूरी की है। उनकी अधिकतर शिक्षा सरकारी स्कूलों से हुई है। साहिल के पिता किसान हैं और माता गृहिणी हैं। सीमित संसाधनों के बावजूद साहिल ने अपनी लगन और मेहनत से यह उपलब्धि हासिल की। अग्निवीर भर्ती परीक्षा का अंतिम परिणाम 19 नवंबर को जारी हुआ था, जिसमें साहिल का नाम चयनित सूची में शामिल था। इस सफलता के बाद, साहिल 12 दिसंबर को उत्तर प्रदेश के बरेली स्थित ट्रेनिंग सेंटर के लिए रवाना हुए हैं। यहां वह 6 महीने की कड़ी सैन्य ट्रेनिंग पूरी करेंगे। मां बोली-बचपन में लकड़ी की बंदूक से खेलता था साहिल ज्याणी की माता राजबाला ने बताया कि उनका बेटा बचपन से ही सेना में जाने का सपना देखता था। वह बचपन में लकड़ी की बंदूक बनाकर खेलता था और खुद को फौजी समझता था। साहिल ने बहुत कम उम्र में ही अनुशासन अपनाया और दौड़ को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना लिया था। राजबाला ने बताया कि उनको अपने बेटे साहिल पर गर्व है और वह परिवार का पहला सदस्य है, जो देश सेवा के लिए अग्निवीर में चयनित होकर भारतीय सेना का हिस्सा बना है। उनके किसान पिता दलीप सिंह ने भी कहा कि सीमित संसाधनों में भी बेटे ने यह कर दिखाया है। शहीद निहाल सिंह के गांव का रहने वाला सीमा सुरक्षा बल की 21वीं बटालियन का जवान निहाल सिंह गोदारा निवासी खेड़ी 11 नवम्बर 1999 को कश्मीर में देश की सीमा की रक्षा करते हुए आतंकवादियों से लोहे लेते हुए गोली लगने से शहीद हो गए थे, लेकिन जाते जाते वह चार आतंकवादियों को धराशायी कर गए थे। शहीद का शव दो दिन बाद गांव खेड़ी पहुंचा था, जहां 13 नवम्बर 1999 को राजकीय सम्मान के साथ अन्तिम संस्कार किया गया।
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