उच्चतम न्यायालय ने यह गौर करते हुए कि विचाराधीन कैदी को अनिश्चितकाल तक सलाखों के पीछे नहीं रखा जाना चाहिए, करोड़ों रुपये के बैंक ऋण ‘घोटाले’ के मामले में डीएचएफएल के पूर्व प्रवर्तक कपिल वधावन और उनके भाई धीरज को जमानत दे दी।
न्यायमूर्ति जे.के. माहेश्वरी और न्यायमूर्ति विजय बिश्नोई की पीठ ने 11 दिसंबर के अपने आदेश में कहा कि बिना मुकदमे के उनकी लंबी कैद अनुच्छेद 21 के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन करती है, जो जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है।
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि भारतीय कानून के तहत, ‘‘जमानत नियम है और कारावास अपवाद है’’, यह आपराधिक न्यायशास्त्र के मूल सिद्धांतों में निहित है।
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