इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय कहा है कि अगर किसी महिला की पहली शादी अभी समाप्त नहीं हुई है तो वह अपने साथ रहने वाले पार्टनर से सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकती। कोर्ट ने कहा कि शादी जैसा लंबा रिश्ता भी उसे ‘पत्नी’ का कानूनी दर्जा नहीं देता, अगर उसने अपने पहले पति से तलाक नहीं लिया है। न्यायमूर्ति मदन पाल सिंह ने कहा- अगर समाज में ऐसी प्रथा की इजाज़त दी जाती है, जहां एक महिला कानूनी तौर पर एक आदमी से शादीशुदा रहती है। फिर भी पहली शादी खत्म किए बिना दूसरे आदमी के साथ रहती है। उसके बाद दूसरे आदमी से मेंटेनेंस मांगती है तो सीआरपीसी की धारा 125 का मकसद और पवित्रता खत्म हो जाएगी और शादी की संस्था अपनी कानूनी और सामाजिक अखंडता खो देगी।कोर्ट ने एक महिला द्वारा दायर पुनरीक्षण याचिका खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। याचिका में ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसने उसके भरण पोषण याचिका खारिज कर दी थी। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उसने जून 2009 में विपक्षी से शादी की थी, जब उसने बताया था कि उसने अगस्त 2005 में एक समझौते के ज़रिए अपनी पहली पत्नी से संबंध खत्म कर लिए। उसने बताया कि वे लगभग दस वर्षों तक पति-पत्नी की तरह साथ रहे और उसकी पत्नी के तौर पर उसका स्टेटस उसके आधार कार्ड और पासपोर्ट जैसे सरकारी दस्तावेज़ों में दर्ज है। उसने आरोप लगाया कि दस साल बाद मार्च, 2018 में उसके साथ क्रूरता की गई और उसे छोड़ दिया गया, इसलिए उसे भरण पोषण के लिए कोर्ट जाना पड़ा। दूसरी ओर, विपक्षी ने उसके दावे का विरोध करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता उसकी दूर की रिश्तेदार है और उनके बीच कोई वैध शादी नहीं हुई। यह भी कहा गया कि याचिकाकर्ता ने अपने पहले पति से तलाक का कभी नहीं लिया। इस तरह वह उससे भरण पोषण नहीं मांग सकती क्योंकि वह कानूनी तौर पर किसी दूसरे आदमी की पत्नी है। इन तर्कों के आधार पर हाईकोर्ट ने मामले के रिकॉर्ड की जांच की और पाया कि याचिकाकर्ता पहले से ही शादीशुदा थी। हालांकि उसने तलाक की याचिका दायर की, लेकिन उसे डिफ़ॉल्ट रूप से खारिज कर दिया गया। कोर्ट ने कहा कि कानून की नज़र में उसकी पहली शादी अभी भी कायम थी। कोर्ट ने यह भी कहा कि विपक्षी भी पहले से ही एक महिला से शादीशुदा था और वह शादी भी खत्म नहीं हुई। हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 11 के अनुसार जीवित पति या पत्नी के जीवनकाल में की गई शादी शुरू से ही अमान्य होती है, कोर्ट ने कहा कि चूंकि दोनों पक्ष अन्य व्यक्तियों से शादीशुदा थे, इसलिए उनका रिश्ता उनके बीच पति और पत्नी का कानूनी दर्जा नहीं बना सकता। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता ने खुद माना कि उसकी शादी अभी भी कायम है और तलाक का कोई आदेश नहीं मिला है। कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के भरण-पोषण का आवेदन खारिज करने का आदेश बरकरार रखते हुए याचिका खारिज कर दी।
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