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बचपन में घर छोड़ा, पैदल अयोध्या पहुंचे, वहीं रमे:परिवार मनाने पहुंचा तो बोले- अब यहीं मेरा घर; राम मंदिर आंदोलन का चेहरा बने वेदांती महाराज

आठवीं कक्षा में पढ़ने वाला एक किशोर एक दिन बिना बताए घर से निकल गया। पैदल चलते हुए वह अयोध्या पहुंचा और फिर कभी लौटकर नहीं आया। चार साल बाद जब परिवार को उसके जीवित होने की खबर मिली और उसे वापस लाने पहुंचे, तो उसने विनम्र लेकिन दृढ़ शब्दों में कहा कि अब अयोध्या ही मेरा घर है। यही बालक आगे चलकर डॉ. रामविलास दास वेदांती महाराज बना, जो राम जन्मभूमि आंदोलन का बड़ा चेहरा और दो बार सांसद रहा। दरअसल, अयोध्या के प्रख्यात संत और पूर्व सांसद डॉ. रामविलास दास वेदांती महाराज का सोमवार को मध्यप्रदेश के रीवा में निधन हो गया। वे रीवा में रामकथा करने आए थे। इसी दौरान उनकी तबीयत बिगड़ी और उन्हें सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में भर्ती कराया गया। सोमवार दोपहर 12:40 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। डॉक्टरों के अनुसार वे सेप्टिसीमिया से पीड़ित थे। संक्रमण खून के जरिए किडनी और अन्य अंगों तक फैल गया था। संयोग से उनकी जन्मस्थली भी रीवा के आसपास ही रही। निधन की खबर के बाद संत समाज के साथ देश की कई प्रमुख राजनीतिक हस्तियों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी। पैतृक गांव पहुंची टीम, भाई ने सुनाई अनसुनी कहानी भास्कर टीम उनकी पैतृक जन्मस्थली गुढ़वा गांव पहुंची। यहां बड़े भाई लक्ष्मीनिधि त्रिपाठी से बातचीत में वेदांती महाराज के घर छोड़ने से लेकर संत जीवन अपनाने तक की वह कहानी सामने आई, जो परिवार और करीबी लोगों के अलावा बहुत कम लोगों को बचपन से ही संतों की ओर झुकाव
लक्ष्मीनिधि त्रिपाठी बताते हैं कि वेदांती महाराज बचपन से ही रामायण और रामचरितमानस का पाठ करते थे। संतों को देखकर वे प्रभावित हो जाते थे। गांव में ही उन्होंने आठवीं कक्षा तक पढ़ाई की। करीब 12 साल की उम्र में वे एक दिन बिना किसी को बताए घर से निकल गए। परिवार ने रिश्तेदारों और आसपास के गांवों में खूब तलाश की, लेकिन कोई सुराग नहीं मिला। समय बीतता गया और चार साल निकल गए। परिवार इस चिंता में रहा कि बेटा जिंदा भी है या नहीं। चार साल बाद अयोध्या में मिली खबर
इसी दौरान गांव के कुछ लोग अयोध्या दर्शन के लिए गए। वहां हनुमानगढ़ी में उन्होंने एक युवक को देखा और पहचान लिया—यह तो पंडित रामसुमन त्रिपाठी का बेटा है। पूछताछ में पता चला कि वह यहीं रह रहा है। गांव वालों ने संतों से बात कर उसे घर ले जाने की अनुमति मांगी। संतों ने रामविलास की ओर देखा। वह उठकर अंदर चले गए और कुछ देर बाद बाहर आकर बोले—मैं कहीं नहीं जाऊंगा, अयोध्या ही मेरा घर है। परिवार मनाने पहुंचा, लेकिन नहीं माने
गांव लौटकर पिता को सूचना दी गई। बेटे के जीवित होने की खबर सुनते ही मां ने उसे वापस लाने की जिद की। इसके बाद पिता, बड़े भाई और कुछ ग्रामीण प्रयागराज होते हुए करीब दो दिन की यात्रा कर अयोध्या पहुंचे। हनुमानगढ़ी में परिवार को देखकर वेदांती महाराज चौंक गए। बातचीत में उन्होंने बताया कि वे करीब चार साल से अयोध्या में रह रहे हैं और संत जीवन अपना चुके हैं। मां के इंतजार और परिवार की चिंता बताने के बावजूद उन्होंने लौटने से इनकार कर दिया। उसी दिन परिवार को समझ आ गया कि वे अब कभी घर नहीं लौटेंगे। पहली रात जंगल में पेड़ पर गुजरी
रामविलास ने परिवार को बताया था कि घर से निकलने के बाद वे पैदल रीवा के सोहागी तक पहुंचे थे। रात हो जाने पर जंगल में ही रुकना पड़ा। सियारों की आवाजें और जंगली जानवरों का खतरा था, इसलिए वे एक पेड़ पर चढ़कर रात भर बैठे रहे। सुबह होते ही फिर चल पड़े। करीब एक हफ्ते की पैदल यात्रा के बाद वे अयोध्या पहुंचे और सीधे हनुमानगढ़ी चले गए। वहां संतों के कीर्तन, प्रसाद और स्नेह ने उन्हें ऐसा बांधा कि वापस लौटने का मन ही नहीं हुआ। यहीं उनकी धार्मिक शिक्षा शुरू हुई। भाई का हाथ पकड़कर अपने पास बिठाया
बड़े भाई लक्ष्मीनिधि त्रिपाठी बताते हैं कि निधन से एक दिन पहले वे अस्पताल में मिलने पहुंचे थे। मुझे देखते ही उन्होंने हाथ पकड़कर अपने पास बैठा लिया। करीब आधे घंटे तक चुपचाप पास बैठे रहे। करुणा भरी नजरों से देखते रहे। मुझे नहीं पता था कि यह हमारी आखिरी मुलाकात होगी।” सेवा का जीवन और स्पष्ट सिद्धांत
भाई बताते हैं कि वेदांती महाराज जब भी मिलते, कुछ पैसे जरूर देते, लेकिन साफ कहते—इन्हें गृहस्थी में मत लगाना, संत सेवा, गौसेवा और ठाकुर सेवा में ही खर्च करना। उन्हीं पैसों से गांव में भंडारे और सेवा कार्य कराए जाते थे। राम जन्मभूमि आंदोलन से संसद तक
डॉ. रामविलास दास वेदांती महाराज राम जन्मभूमि आंदोलन के अग्रणी संतों में रहे। वे अयोध्या स्थित श्री रामवल्लभा कुंज, जानकी घाट के पीठाधीश्वर थे। उन्होंने दो बार लोकसभा सांसद के रूप में संत समाज का प्रतिनिधित्व किया। वे रामलला के पक्ष में मुखर रहे, देशभर में जनजागरण किया और धार्मिक मंचों पर प्रसिद्ध रामकथावाचक के रूप में पहचाने गए। संस्कृत के प्रमुख विद्वान वेदांती महाराज, हनुमानगढ़ी के महंत अभिराम दास के शिष्य और रामजन्मभूमि न्यास के सदस्य भी रहे। डॉ. रामविलास दास वेदांती महाराज आठ भाई-बहनों में पांचवें नंबर पर थे। भाई-बहनों का क्रम इस प्रकार था: भाई: बहनें: डॉ. वेदांती के निधन पर किसने क्या कहा, पढ़िए… मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने लिखा- श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के मार्गदर्शक, पूर्व सांसद एवं अयोध्या धाम स्थित वशिष्ठ आश्रम के पूज्य संत डॉ. रामविलास वेदांती जी महाराज के देवलोकगमन पर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। भगवान श्रीराम दिवंगत आत्मा को अपने श्रीचरणों में स्थान दें एवं शोक संतप्त अनुयायियों को संबल प्रदान करें। ॐ शांति ! मध्य प्रदेश के डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ल ने कहा, “उन्होंने न केवल जनजागरण के माध्यम से रामभक्तों को एकजुट किया, बल्कि न्यायालय में सत्य और आस्था के पक्ष में निर्भीक होकर गवाही भी दी।” उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर उन्हें श्रद्धांजलि दी। उन्होंने लिखा, “पूज्य संत डॉ. वेदांती का निधन सनातन संस्कृति के लिए अपूरणीय क्षति है। उनका जाना एक युग का अंत है। धर्म, समाज और राष्ट्र को समर्पित उनका जीवन हम सभी के लिए प्रेरणा है।” यह खबर भी पढ़ें डॉ. रामविलास दास वेदांती को अयोध्या में आज देंगे जल समाधि राम मंदिर आंदोलन के सक्रिय सदस्य रहे पूर्व सांसद डॉ. रामविलास दास वेदांती का पार्थिव शरीर अयोध्या पहुंच चुका है। इसे अंतिम दर्शन के लिए हिंदू धाम में रखा गया है। वेदांती महाराज के उत्तराधिकारी महंत राघवेश दास वेदांती ने बताया- अंतिम यात्रा अयोध्या के हिंदू धाम से मंगलवार सुबह निकलेगी और राम मंदिर तक जाएगी। सरयू तट पर सुबह 10 बजे उन्हें जल समाधि दी जाएगी। पढ़ें पूरी खबर


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