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बांके बिहारी लाइव स्ट्रीमिंग पर विवाद:प्रक्रिया दरकिनार कर फैसला लेने का आरोप, लोक कल्याण मीडिया ने लगाया समिति पर मनमानी का आरोप

बांके बिहारी जी मंदिर की लाइव दर्शन (लाइव स्ट्रीमिंग) परियोजना को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित हाई पावर मैनेजमेंट कमेटी पर सवाल खड़े किए गए हैं। लोक कल्याण मीडिया प्रा. लि. ने परियोजना को सुयोग्य मीडिया को दिए जाने की घोषणा को अवैध, मनमाना और विधिक प्रक्रिया के विपरीत बताते हुए आपत्ति दर्ज कराई है। मामले ने अब संवैधानिक और न्यायिक प्रक्रिया का रूप ले लिया है। कानूनी प्रक्रिया का नहीं हुआ पालन लोक कल्याण मीडिया प्रा. लि. के निदेशक अनिल गुप्ता ने कहा कि “सबसे पहले पारदर्शिता बरती जानी चाहिए थी, लेकिन समिति ने किसी भी कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया। न कोई प्रस्ताव पारित हुआ, न वोटिंग हुई, न तकनीकी मूल्यांकन और न ही बैठक की मिनट्स तैयार की गईं। पहली बैठक में जो कंपनी मौजूद ही नहीं थी, उसे दूसरी बैठक में लाकर बिना किसी असेसमेंट के जिम्मेदारी सौंप दी गई। उन्होंने आरोप लगाया कि “समिति यह मानकर नहीं चल सकती कि वह मनमाने तरीके से निर्णय ले ले। यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश से गठित समिति है, कोई सर्वशक्तिमान संस्था नहीं। मौखिक रूप से सीएसआर फंड की बात कह देना वैधानिक प्रक्रिया नहीं होती। न तो सीएसआर का कोई लिखित प्रमाण देखा गया और न ही उसका परीक्षण कराया गया। अनिल गुप्ता ने बताया कि लोक कल्याण मीडिया द्वारा विस्तृत आरटीआई दाखिल की गई है, जिसमें बैठकों की मिनट्स, मूल्यांकन, वोटिंग, तकनीकी जांच और सभी अभिलेख मांगे गए हैं, लेकिन अब तक उसका भी कोई जवाब नहीं दिया गया है। “हमें जानकारी केवल मीडिया रिपोर्ट्स से मिली। यह पूरी प्रक्रिया विधि की नजर में शून्य है,” उन्होंने कहा।
इस पूरे मामले पर उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता नरेंद्र कुमार गोस्वामी ने बेहद कड़ा रुख अपनाया। उन्होंने कहा कि “यह कोई साधारण प्रशासनिक चूक नहीं। बिना प्रस्ताव, बिना मतदान और बिना मूल्यांकन की तथाकथित मंजूरी विधि में शून्य है और लोकतांत्रिक शासन पर सीधा हमला है।
उन्होंने कहा कि बांके बिहारी मंदिर की लाइव दर्शन परियोजना करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था और संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 25 से जुड़ा विषय है। “जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश से गठित समिति ही प्रक्रिया, पारदर्शिता और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों को त्याग दे, तो यह न्यायालय की निगरानी व्यवस्था को निष्प्रभावी करने का प्रयास है और अवमानना के दायरे में आता है। नहीं मिला जवाब तो करेंगे कंटेंप्ट पिटीशन दाखिल एडवोकेट नरेंद्र गोस्वामी ने कहा यदि आपत्तियों और आरटीआई का जवाब नहीं दिया गया, तो इस गंभीर वित्तीय और प्रशासनिक अनियमितता के खिलाफ न्यायालय का दरवाजा खटखटाया जाएगा और इसके खिलाफ कंटेंप्ट पिटीशन फाइल करेंगे।


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