कैमूर में धान की पराली जलाने की समस्या गंभीर बनी हुई है। प्रशासन और कृषि विभाग के कड़े प्रतिबंधों तथा निगरानी के बावजूद कुछ किसान खेतों में फसल अवशेष जला रहे हैं। इसका सीधा असर पर्यावरण, मानव स्वास्थ्य और मिट्टी की उर्वरता पर पड़ रहा है। कृषि विभाग ने पराली जलाने पर रोक लगाने के लिए सैटेलाइट से निगरानी व्यवस्था लागू की है। अक्षांश और देशांतर के आधार पर खेतों की पहचान कर पराली जलाने वाले किसानों को चिह्नित किया जा रहा है। ऐसे किसानों की किसान आईडी ब्लॉक की जा रही है और उन्हें कृषि विभाग की सभी सरकारी अनुदान योजनाओं से वंचित किया जा रहा है। कई मामलों में संबंधित किसानों के खिलाफ प्राथमिकी भी दर्ज कराई गई है। खेतों में जला रहे पुआल इन कड़े कदमों के बावजूद, कुछ किसान हार्वेस्टर से धान की कटाई के बाद खेतों में पुआल जला रहे हैं। कुछ किसान रात के अंधेरे में पराली जलाते हैं, जबकि कुछ दिन के उजाले में खुलेआम फसल अवशेष जलाते देखे जा रहे हैं। इससे जिले में वायु प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है, जिसका असर विशेषकर दमा और सांस संबंधी बीमारियों से पीड़ित लोगों पर पड़ रहा है। फसल की पैदावार होती है कम कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, पराली जलाने से मिट्टी की ऊपरी उपजाऊ परत नष्ट हो जाती है। इससे खेतों की मिट्टी धीरे-धीरे बंजर और कंकरिली होने लगती है। मिट्टी की जल धारण क्षमता घटने से फसल की पैदावार कम होती है और किसानों को अधिक रासायनिक खाद व कीटनाशकों का उपयोग करना पड़ता है, जिससे खेती की लागत बढ़ जाती है। प्रशासन ने किसानों और जिलेवासियों से अपील की है कि वे पराली न जलाएं। इसके बजाय वैकल्पिक तरीकों को अपनाकर मिट्टी की गुणवत्ता और पर्यावरण को सुरक्षित रखने में सहयोग करें।
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