भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अफगानिस्तान में पाकिस्तान के हमलों की कड़ी निंदा की है। भारत ने इसे अंतरराष्ट्रीय कानून का गंभीर उल्लंघन और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए खतरा बताया है। पाकिस्तान-अफगानिस्तान के बीच नाजुक शांति बनी हुई थी लेकिन अब दोनों फिर से सीमा पर लड़ रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक में भारत के स्थायी प्रतिनिधि, राजदूत पार्वथनेनी हरीश ने कहा कि भारत युनामा की हवाई हमलों पर चिंता का समर्थन करता है और अफगानिस्तान में निर्दोष महिलाओं, बच्चों और क्रिकेटरों की हत्या की निंदा करता है। हम संयुक्त राष्ट्र चार्टर और अंतरराष्ट्रीय कानून का पूर्ण सम्मान करने, विशेष रूप से निर्दोष नागरिकों की सुरक्षा पर ध्यान देने की अपील में अपनी आवाज जोड़ते हैं। पिछले साढ़े चार साल से हम ऐसा दृष्टिकोण देखते आ रहे हैं।” उन्होंने अफगानिस्तान के लोगों की विकास संबंधी जरूरतों को पूरा करने के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दोहराया। हरीश ने कहा कि काबुल में दिल्ली के तकनीकी मिशन का दूतावास का दर्जा बहाल करने का भारत सरकार का हालिया निर्णय इस संकल्प को मजबूती से दर्शाता है। उन्होंने कहा, हम सभी संबंधित पक्षों के साथ अपने संबंध बनाए रखेंगे ताकि अफगानिस्तान के समग्र विकास, मानवीय सहायता और दक्षता विकास पहल में अपना योगदान बढ़ा सकें, जो अफगान समाज की प्राथमिकताओं और आकांक्षाओं के अनुरूप हो। अक्टूबर में अफगान विदेश मंत्री आमिर खान मुत्तकी छह दिवसीय यात्रा पर नयी दिल्ली आए थे। वह 2021 में काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद भारत का दौरा करने वाले पहले वरिष्ठ तालिबानी मंत्री थे।
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विदेश मंत्री एस जयशंकर ने मुत्तकी के साथ व्यापक बातचीत की, जिसमें दिल्ली के तकनीकी मिशन को काबुल में दूतावास का दर्जा देने की घोषणा की गई और अफगानिस्तान में विकास कार्यों को फिर से शुरू करने का संकल्प लिया गया। भारत ने अगस्त 2021 में काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद अपने दूतावास से अधिकारियों को वापस बुला लिया था। जून 2022 में भारत ने काबुल में एक तकनीकी टीम को तैनात कर अपनी कूटनीतिक उपस्थिति फिर से स्थापित की। हरिश ने कहा कि भारत अफगानिस्तान में सुरक्षा स्थिति पर करीबी नजर रखता है। उन्होंने पाकिस्तान की ओर इशारा करते हुए कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा प्रतिबंधित संगठनों जैसे आईएसआईएल, अलकायदा और लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद समेत उनके सहयोगियों तथा लश्कर-ए-तैयबा के छद्म संग्ठन द रेजिस्टेंस फ्रंट के खिलाफ सामूहिक प्रयासों को समन्वित करना चाहिए, ताकि वे सीमा पार आतंकवाद में लिप्त न हों।
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