पांच वर्ष पुरानी घटनाओं पर आधारित दुराचार और पाक्सो एक्ट के गंभीर आरोपों में फंसे एक युवक को अदालत से राहत मिली है। कोर्ट ने माना कि पीड़िता द्वारा देरी से रिपोर्ट दर्ज करने और FIR में तथ्य स्पष्ट न होने से जांच पर संदेह की स्थिति बनती है। आगरा में दुराचार, अश्लील हरकत, धमकी और पाक्सो एक्ट में आरोपित अजय पुत्र पप्पू निवासी भीमनगर, नरीपुरा को विशेष न्यायाधीश पाक्सो एक्ट दिनेश कुमार चौरसिया ने जमानत मंजूर करते हुए रिहाई का आदेश दिया है। अदालत ने कहा कि कथित घटनाएं वर्ष 2020 की हैं, लेकिन पीड़िता ने रिपोर्ट लगभग पाँच वर्ष बाद दर्ज कराई, जो मामले में महत्वपूर्ण देरी मानी जाती है। साथ ही FIR में घटना की तारीख और समय का उल्लेख न होना भी अदालत के निर्णय का प्रमुख आधार बना। पीड़िता ने आरोप लगाया था कि आरोपी वर्ष 2020 से लगातार उसका पीछा कर अश्लील हरकतें करता रहा और विरोध करने पर परिवार को जान से मारने की धमकियाँ देता रहा। कोटा में नीट की तैयारी के दौरान भी आरोपी के पहुँचकर परेशान करने की बात कही गई। आरोप है कि आगरा लौटने पर भी आरोपी ने पीछा जारी रखा और साथियों की मदद से जबरन गुप्त स्थान पर ले जाकर कई बार दुराचार किया। शिकायत पर एसिड अटैक और गोली मारने की धमकी देने का भी आरोप लगाया गया। जमानत सुनवाई में आरोपी पक्ष की अधिवक्ताओं प्रतिभा आर्या और एस.के. गौतम ने दलील दी कि रिपोर्ट में अत्यधिक विलंब, तथ्यात्मक अस्पष्टता और विरोधाभास जमानत के पर्याप्त आधार हैं। अदालत ने तर्क स्वीकार कर सशर्त जमानत प्रदान कर दी।
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