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यूपी के 3000 वकीलों पर क्रिमिनल केस:सरकार ने हाईकोर्ट को हलफनामा देकर बताया, कोर्ट ने जिलेवार सूची मांगी

इलाहाबाद हाईकोर्ट में राज्य सरकार ने बताया कि प्रदेश में लगभग तीन हज़ार अधिवक्ताओं पर आपराधिक मुकदमे चल रहे हैं। कोर्ट ने प्रदेश भर के वकीलों पर चल रहे आपराधिक मुकदमों का ब्यौरा तलब किया था। इसके अनुपालन में राज्य सरकार की ओर से हलफनामा दाखिल किया गया। न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर ने अगली सुनवाई पर जिलेवार सूची प्रस्तुत करने को कहा है। अपर महाधिवक्ता अनूप त्रिवेदी और अपर शासकीय अधिवक्ता प्रथम परितोष कुमार मालवीय ने कोर्ट को अवगत कराया कि अब तक की जांच में लगभग तीन हज़ार वकीलों पर चल रहे मुकदमों की जानकारी हुई है। यह संख्या अंतिम नहीं है। अभी और जानकारी एकत्र की जा रही है। इसमें वक्त लगेगा। डीजीपी की ओर से दाखिल हलफनामे में वकीलों का अपराधिक इतिहास प्रस्तुत किया गया जबकि डीजी अभियोजन के हलफनामे में मुकदमों के ट्रायल की जानकारी दी गई। कोर्ट ने 15 दिसंबर को सारी जानकारी देने का निर्देश दिया है। साथ ही याची को इस मामले में यूपी बार कौंसिल को पक्षकार बनाने का निर्देश दिया। अधिवक्ता मोहम्मद कफील की याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट को पता चला कि याची स्वयं गैंगस्टर एक्ट सहित कई आपराधिक मामलों में शामिल है और उसके भाई कुख्यात अपराधी हैं । कोर्ट ने वकीलों के आपराधिक पृष्ठभूमि के न्याय प्रशासन पर प्रभाव को लेकर चिंता व्यक्त करते हुए कहा था कि अधिवक्ता और बार एसोसिएशन के पदाधिकारी विशिष्ट संस्थागत स्थिति रखते हैं। वे कोर्ट के अधिकारी भी हैं और पेशेवर नैतिकता के संरक्षक भी। जब गंभीर आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे व्यक्ति कानूनी प्रणाली में प्रभाव वाले पदों पर होते हैं तो यह वैध चिंता का विषय है कि वे पेशेवर वैधता की आड़ में पुलिस अधिकारियों और न्यायिक प्रक्रियाओं पर अनुचित प्रभाव डाल सकते हैं। कोर्ट ने सभी कमिश्नर/एसएसपी/एसपी और संयुक्त निदेशक अभियोजन को यूपी बार कौंसिल में रजिस्टर्ड वकीलों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों का व्यापक विवरण प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था। जानिये 2 दिसंबर को कोर्ट ने क्या कहा था इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में प्रदेश के डीजीपी और डीजीपी अभियोजन को राज्य भर में वकीलों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों का विस्तृत ब्योरा पेश करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने टिप्पणी की है कि आपराधिक इतिहास वाले वकील जो बार एसोसिएशनों में रसूखदार पदों पर बैठे हैं, वे कानून के शासन के लिए संभावित खतरा हैं। यह टिप्पणी न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर ने अधिवक्ता मोहम्मद कफील की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है। याची ने याचिका में पुलिस अधिकारियों के खिलाफ परिवाद को खारिज किए जाने के आदेश को चुनौती दी थी। सुनवाई के दौरान कोर्ट को पता चला कि याची स्वयं गैंगस्टर एक्ट सहित कई आपराधिक मामलों में शामिल है और उसके भाई कुख्यात अपराधी हैं। कोर्ट ने कहा कि यह स्वीकार्य तथ्य है कि याची तीन आपराधिक मामलों में आरोपी है और उसके सभी भाई कुख्यात अपराधी हैं। कोर्ट ने वकीलों के आपराधिक पृष्ठभूमि के न्याय प्रशासन पर प्रभाव को लेकर चिंता व्यक्त की। कहा कि कानूनी प्रणाली अपनी ताकत केवल वैधानिक प्रावधानों से नहीं बल्कि उस नैतिक वैधता से प्राप्त करती है जो इसकी निष्पक्षता में जनता के विश्वास से आती है। अधिवक्ता और बार एसोसिएशन के पदाधिकारी विशिष्ट संस्थागत स्थिति रखते हैं। वे कोर्ट के अधिकारी भी हैं और पेशेवर नैतिकता के संरक्षक भी। दूसरी ओर अपराध विचार में उत्पन्न होता है और विचार आचरण को प्रभावित करता है। इसलिए जब गंभीर आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे व्यक्ति कानूनी प्रणाली में प्रभाव वाले पदों पर होते हैं तो यह वैध चिंता का विषय है कि वे पेशेवर वैधता की आड़ में पुलिस अधिकारियों और न्यायिक प्रक्रियाओं पर अनुचित प्रभाव डाल सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि कानून के शासन के लिए किसी भी खतरे को संवेदनशीलता से निपटाना उसका कर्तव्य है। कोर्ट ने सभी कमिश्नर/एसएसपी/एसपी और संयुक्त निदेशक अभियोजन को यूपी बार कौंसिल में रजिस्टर्ड वकीलों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों का व्यापक विवरण प्रस्तुत करने का निर्देश दिया। कोर्ट के आदेश के अनुसार इन अधिकारियों को अधिवक्ता के खिलाफ दर्ज एफआईआर पंजीकरण की तिथि और अपराध संख्या, धाराएं और संबंधित थाना, विवेचना की वर्तमान स्थिति, चार्जशीट दाखिल करने और आरोप तय करने की तिथि, अब तक परीक्षित गवाहों का विवरण और ट्रायल की स्थिति का विवरण पेश करना होगा। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पुलिस से संबंधित विवरण डीजीपी द्वारा और अभियोजन पक्ष की जानकारी डीजीपी अभियोजन द्वारा प्रस्तुत की जाएगी। साथ ही चेतावनी दी कि प्रशासन द्वारा किसी भी तरह की ढिलाई को गंभीरता से लिया जाएगा। याची मोहम्मद कफील ने याचिका में ने इटावा के अपर सत्र न्यायाधीश के गत 18 मार्च के आदेश को चुनौती दी है। अपर सत्र न्यायाधीश ने सीजेएम के उस आदेश को बरकरार रखा था जिसमें पुलिस अधिकारियों को तलब करने की याची की प्रार्थना खारिज कर दी गई थी। सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने हलफनामा दाखिल कर याची और उसके भाइयों के आपराधिक इतिहास का खुलासा किया। हलफनामे में यह भी बताया गया कि याची के पांच भाई शकील, नौशाद, अकील, फैजान उर्फ गुडून और दिलशाद गंभीर अपराधों में नामजद हैं, जिनमें हत्या का प्रयास, गोहत्या, जुआ अधिनियम और गैंगस्टर एक्ट व पॉक्सो एक्ट जैसे गंभीर मामले शामिल हैं। याची ने भी पूरक हलफनामे दाखिल कर स्वीकार किया कि उस पर कुछ मामले दर्ज हैं। हालांकि उसने पुलिस पर प्रताड़ना का आरोप भी लगाया। इटावा कोतवाली के इंस्पेक्टर के हलफनामे से खुलासा हुआ कि याची अधिवक्ता तीन आपराधिक मामलों में शामिल है।


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