चार दिवसीय छठ महापर्व शनिवार को नहाय-खाय के साथ शुरू हो गया। जैसे ही सूरज की पहली किरणें संगम तट पर बिखरीं व्रतियों ने स्नान कर सूर्य देव की आराधना की और सात्विक भोजन ग्रहण कर व्रत का आरंभ किया। यह पर्व पवित्रता, अनुशासन और अटूट आस्था का प्रतीक है। शाम होते ही संगम नोज, बलुआघाट, बरगदघाट, दारागंज दश्वामेध और नीवा घाटों की छटा देखते ही बन रही थी। श्रद्धालु परिवारों के साथ घाटों पर बेदी बनाकर फूल-माला चढ़ा रहे थे। रंगीन सजावट, कदकदाते दीपक और श्रद्धा से भरे जयकारों ने पूरा वातावरण आध्यात्मिक बना दिया। छठ पर्व का पहला चरण- नहाय-खाय-अत्यंत पवित्र माना जाता है। इस दिन भक्त स्नान कर खुद को शुद्ध करते हैं और कद़्दू-भात व चने की दाल का सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं। मान्यता है कि यह भोजन न केवल शरीर बल्कि मन को भी निर्मल बनाता है। जिससे व्रती अनुशासन और समर्पण के मार्ग पर आगे बढ़ते हैं। दूसरा चरण खरना में व्रती दिनभर निर्जला उपवास रखते हैं। वहीं तीसरे चरण यानी अगले दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। अंतिम यानी चौथे दिन उगते सूरज को अर्घ्य देकर विधि विधान से भगवान सूर्यनारायण की पूजा की जाती है। वहीं संगम क्षेत्र में पूर्वांचल छठ पूजा एवं विकास समिति ने शनिवार को संगम नोज पर वैदिक मंत्रोचार के साथ भगवान सूर्य की प्रतिमा स्थापित की। इस दौरान अर्थववेदाचार्य और ज्योतिषाचार्य के सानिध्य में ग्यारह बटुक ब्राह्मणों ने आदित्य हृदय स्त्रोत पाठ और 108 बार सूर्य चालीसा का पाठ किया। कार्यक्रम में प्रयागराज डीएम मनीष वर्मा भी शामिल हुए। समिति के अध्यक्ष अजय राय ने बताया कि घाटों पर भगवान सूर्य की प्रतिमा स्थापना के बाद रविवार को अखंड रामायण का पाठ होगा। इसके बाद सोमवार को भोजपुरी संध्या का आयोजन होगा। उन्होंने बताया कि मान्यतानुसार भगवान भास्कर छठ के दौरान पृथ्वी पर साक्षात प्रकट होते हैं। सृष्टि से अंधियारा मिटाते हुए लोगों को आशीर्वाद देते हैं।
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