लखनऊ में सुबोधानंद फाउंडेशन की शाखा द्वारा बौद्ध शोध संस्थान में आयोजित गीता ज्ञान यज्ञ का द्वितीय दिवस संपन्न हो गया। इस अवसर पर स्वामी ध्रुव चैतन्य सरस्वती महाराज ने भगवान गीता के उपदेशों पर विस्तृत सत्संग किया। महाराज ने अपने सत्संग में बताया कि गीता में भोग को वर्जित नहीं किया गया है, परंतु जब मनुष्य भोग से मोक्ष की आकांक्षा करता है, तो वह सच्चा मुमुक्षु बन जाता है। उन्होंने जोर दिया कि यह संसार केवल भोग के लिए नहीं, बल्कि सेवा के लिए है। सेवा के उपरांत प्राप्त फल को यज्ञ के शिष्ट भाव से ग्रहण करना चाहिए। भौतिक सुख और आध्यात्मिक साधना के बीच संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता स्वामी ध्रुव चैतन्य ने आगे कहा कि मनुष्य को प्राप्त यह शरीर धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष जैसे चतुर्थ पुरुषार्थों की सिद्धि के लिए है। उन्होंने जीवन में भौतिक सुख और आध्यात्मिक साधना के बीच संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता पर भी बल दिया। महाराज ने समझाया कि सेवा भाव से किया गया कार्य ही सच्चा यज्ञ है, जिसे प्रसाद के समान ग्रहण करना चाहिए। इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में भक्त और साधक उपस्थित रहे, जिन्होंने महाराज के उपदेशों को ध्यानपूर्वक सुना। यज्ञ के दौरान भक्ति और ज्ञान का अद्भुत संगम देखने को मिला। गीता ज्ञान यज्ञ ने उपस्थित सभी लोगों को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर दिया और उन्हें भोग तथा सेवा के माध्यम से मोक्ष की दिशा में प्रेरित किया।
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