माफिया को मिट्‌टी में मिला दूंगा, डायलॉग का दिखा क्रेज:अजय से कैसे बने योगी, माफिया से टकराव की कमजोर कहानी से दर्शक निराश

माफिया को मिट्‌टी में मिला दूंगा।’ ‘बाबा आते नहीं प्रकट होते हैं।’ ‘मेरे पास 20 रुपए ही थे, इसलिए वेल्डिंग करवाई, 200 होते तो बुलडोजर चलवा देता। यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ के जीवन पर बनी फिल्म ‘अजेय : द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ ए योगी’ 19 सितंबर को देश भर में रिलीज हुई। इस फिल्म के कुछ डायलॉग लोगों को खूब भाएंगे। एक सीन में प्रशासन उन्हें एक रैली में जाने से रोकने के लिए हर संभव कोशिश करता है, तो वे अचानक नाव से रैली स्थल पहुंचते हैं। प्रशासन को हतप्रभ करते हुए डायलॉग बोलते हैं, ‘बाबा आते नहीं प्रकट होते हैं।’ एक सीन में कॉलेज में अजय एक दीवार पर वेल्डिंग करवा देते हैं। जब प्रोफेसर पूछते हैं तो जवाब आता है कि दीवार पर लड़कियों के लिए गंदी बातें लिखी थीं। मेरी शिकायतों पर कुछ नहीं हुआ, मजबूरी में मुझे ये करना पड़ा। क्योंकि मेरे पास 20 ही रुपए थे इसलिए वेल्डिंग करवाई, 200 होते तो बुल्डोजर चलवा देता। राजनीतिक जीवन की बजाय जिंदगी के पहलू देखने को मिलेंगे
ये सीन योगी के बुलडोजर बाबा वाली छवि की याद दिला देगा। इस फिल्म में योगी की जिंदगी को दिखाया गया है। इसमें राजनीतिक जीवन काफी कम है। इस फिल्म में राजनीति में आने से पहले की जिंदगी पर अधिक फोकस है। इसमें पूर्वांचल के लिए अभिशाप रहे जापानी इंसेफेलाटिस, माफियाओं से योगी की टकराहट, उनकी गिरफ्तारी और संसद में उनके रोने के सीन को दिखाया गया है। हालांकि कहानी और कसी हो सकती थी। यही वजह रही कि इस फिल्म को पहले दिन दर्शकों का प्यार नहीं मिला। लखनऊ के मल्टीप्लेक्स में गिने-चुने लोग ही दिखे। हालांकि प्रदेश के कई जिलों में उनके चाहने वालों से हाल भरा रहा। रवींद्र गौतम निर्देशित यह फिल्म शांतनु गुप्ता की किताब ‘द मॉन्क हू बिकेम चीफ मिनिस्टर’ से प्रेरित है, जो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के जीवन पर आधारित है। फिल्म में योगी की मुख्य भूमिका अनंत जोशी ने निभाई है। जबकि उनके गुरु महंत अवैद्यनाथ की भूमिका परेश रावल ने निभाई है। पत्रकार की भूमिका में भोजपुरी स्टार दिनेश लाल यादव और पवन मल्होत्रा ​​भी हैं। 1983 की घटना से शुरू फिल्म की कहानी
फिल्म की कहानी 1983 की एक घटना से शुरू होती है। पूर्वांचल में माफियाओं के वर्चस्व को दर्शाने वाले इस सीन में बदमाश पूरे बारातियों को गोली से भून देते हैं। गोरखपुर में रेलवे के टेंडर को लेकर माफियाओं के बीच होने वाली वर्चस्व की जंग से उसकी तुलना शिकागो के रूप में की गई है। इसके बाद फिल्म योगी के बचपन के जीवन की ओर ले जाती है। पूरी फिल्म तीन हिस्सों में सिमटी है बचपन से है योगी का गौ-प्रेम
योगी आदित्यनाथ का जन्म पौढ़ी-गढ़वाल के पंचूर गांव में 5 जून 1972 में हुआ। उनके पिता रेंजर आनंद सिंह बिष्ट सख्त अनुशासन वाले थे। जबकि मां सावित्री अजय को सबसे अधिक प्यार करती हैं। इस फिल्म में आदित्यनाथ के बचपन को भी दिखाया गया है। कैसे सख्त मिजाज वाले पिता आनंद विष्ट के अनुशासन में बड़े भाई के साथ उनका पालन-पोषण हुआ। उन्हें बचपन से गौ-सेवा भाती थी। वह अपना पूरा भोजन तक गाय को खिला देते थे। अजय जहां पढ़ाई में होशियार थे, तो बड़े भाई का मन पढ़ाई में बिल्कुल नहीं लगता था। बाद में बड़े भाई ने पढ़ाई छोड़ बस चलाने की कोशिश की। उनका इस दौरान एक स्थानीय नेता के करीबी से विवाद होता है। फिल्म में दिखाया गया है कि अन्याय के खिलाफ अजय कभी चुप नहीं बैठे। चाहें वो थाने का सीन हो, जहां स्थानीय नेता से माफी मांगने की बात थी। या फिर इस विवाद के बाद आगे की पढ़ाई के लिए गढ़वाल यूनिवर्सिटी में छात्र संघ चुनाव के दौरान एक छात्रा के अपमान का मुद्दा रहा हो। छात्र संघ चुनाव में हार के बाद निराश अजय की मुलाकात कैम्पस में आए महंत अवैद्यनाथ से होती है, जिसके बाद उन्हें कैसे जीवन का एक उद्देश्य मिलता है। गोरखपुर से सटे जिले मऊ में दंगे के बीच होती है योगी की एंट्री
अजय बीएससी के बाद घर लौटते हैं और एक रात चुपके से गोरखपुर के लिए निकल जाते हैं। वहां उनका सामना मऊ में दंगे से होता है। मुख्तार अंसारी को यहां मुख्तार अहमद के तौर पर दर्शाया गया है। कैसे वह खुली जीप में बैठकर दंगा भड़काता है। यहीं पर उनकी पहली मुलाकात पत्रकार बने दिनेश लाल निरहुआ से होती है। इसके बाद वे किसी तरह गोरखपुर पहुंचते हैं, लेकिन महंत अवैद्यनाथ से 24 घंटे इंतजार के बाद मुलाकात होती है। फिर उनके सानिध्य में वे धीरे-धीरे आगे बढ़ते हैं। उत्तराधिकारी बनने के साथ आगे बढ़ती है फिल्म
फिल्म में योगी आदित्यनाथ को महंत अवैद्यनाथ की ओर से उत्तराधिकारी बनाए जाने की घोषणा को थोड़ा नाटकीय ढंग से दिखाया गया है। जबकि वास्तविकता में उनके नाम के चर्चे पहले से ही थे। उत्तराधिकारी घोषित होने से पहले जब कर्ण छेदन की रस्म हो रही होती है, तो वो अपने गुरु से कहते हैं कि ये आप कीजिए। गुरू अवैद्यनाथ कहते हैं कि मैं बूढ़ा हो गया हूं, तुमको दर्द ज्यादा होगा, तो योग कहते हैं- ये दर्द नहीं आशीर्वाद होगा। बेटे को योगी के रूप में देखकर मां के आंसू भावुक कर देंगे
दो साल से गायब अजय के योगी आदित्यनाथ के रूप में गोरखपुर मठ का उत्तराधिकारी घोषित होने की खबर सुनकर उनकी मां और पिता गोरखनाथ मंदिर पहुंचते हैं। बेटे को योगी के रूप में देखकर मां जवाब मांगती हैं, तो वो सीन दिल को छू लेते हैं। उनकी मां सावित्री देवी उनके गुरु अवैद्यनाथ से कहती हैं कि तुमने मेरा बेटा छीन लिया, तुमको तो मेरे राम देखेंगे। इसपर गुरू कहते हैं- अगर कौशल्या ने भी राम को वनवास ना जाने दिया होता, तो वो राजा तो बन जाते लेकिन भगवान नहीं बन पाते। ये सीन आपको भावुक कर देगा। योगी के तौर पर अनंत जोशी का अच्छा प्रयास, म्यूजिक भी अच्छा
अनंत जोशी ने फिल्म में योगी आदित्यनाथ की भूमिका निभाई है। उन्होंने योगी जैसे किरदार को निभाने का प्रयास अच्छा किया है, लेकिन कोई नामी एक्टर होता तो और अच्छा होता। उन्होंने योगी की तरह अपनी चाल-ढाल दर्शाने की कोशिश की है। इसके लिए उन्होंने योगी से जुड़े कई वीडियो देखे थे। उनका योगी की तरह बोलने का तरीका हो या फिर चलने का तरीका हो। या फिर दबंग अंदाज जब मुख्तार अंसारी के रूप में दिखाए गए मुश्ताक अहमद उन्हें रिश्वत देने जाता है और उन्हें कहता है कि आप यहीं बैठे रहिए यही ठीक रहेगा। इस पर योगी कहते हैं- मेरा बैठना तुम्हें यहां तक ले आया, सोचो मैं खड़ा हो गया तो तुम्हारा क्या होगा। इस फिल्म की म्यूजिक भी ठीक-ठाक है। खासकर देखो बाबा बैठ गया, जैसा गाना जब फिल्म में आता है तो मजा आ जाता है, बाकी के गाने भी बढ़िया हैं। छोटे महाराज के रूप में कैसे योगी फेमस होते हैं
उत्तराधिकारी बनने के बाद महज 26 वर्ष की उम्र में कैसे वे 1998 में सांसद बनने के लिए तैयार हुए, इस फिल्म में दिखाया गया है। जबकि वे राजनीति में नहीं आना चाहते थे। इस फिल्म में दिखाया गया है कि गोरखपुर सहित पूरे पूर्वांचल में फैले जापानी इंसेफेलाटिस से मासूम बच्चों को मरते हुए देखकर उनका हृदय कराह उठता है। वे डीएम के पास अस्पताल की व्यवस्थाओं की बात करने जाते हैं, तो वह ये कहकर झिड़क देता है कि आप क्या विधायक हो या सांसद हो। एक मठ के उत्तराधिकारी होने के चलते सम्मान क्या दे दिया, तुम मुझे बताओगे कि क्या करना है। तब तक वे छोटे महाराज के रूप में फेमस हो चुके होते हैं। फिर सांसद बनकर वे डीएम कार्यालय पर 36 घंटे धरना देते हैं। उनके काफिले पर जब जानलेवा हमला होता है और बाद में उनकी गिरफ्तारी होती है। जेल से जमानत के बाद संसद पहुंच कर उनके रोने का दृश्य आपको भावुक कर देगा। हालांकि ये उनकी कमजोरी दर्शाता है। सीएम के तौर पर शपथ लेने के साथ ही फिल्म समाप्त हो जाती है। इसका समापन और बेहतर किया जा सकता है। हालांकि फिल्म मेकर्स का दावा है कि सफल होने पर इसके और पार्ट भी आएंगे। …………………………. ये खबर भी पढ़ें…
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Source: उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर