औरंगाबाद जिले में फैमिली प्लानिंग को लेकर सरकार की ओर से चलाए जा रहे अभियान का असर धरातल पर बेहद कमजोर दिखाई दे रहा है। अस्पतालों में जागरूकता कार्यक्रम और प्रोत्साहन राशि देने के बावजूद पुरुषों की भागीदारी निराशाजनक है। सदर अस्पताल के ताजा आंकड़े बताते हैं कि जनवरी से नवंबर 2025 तक जहां 312 महिलाओं ने बंध्याकरण कराया, वहीं सिर्फ दो पुरुषों ने नसबंदी कराई। इससे यह स्पष्ट हो गया है कि जिले में परिवार नियोजन की जिम्मेदारी अब भी लगभग पूरी तरह महिलाओं पर ही निर्भर है, जबकि सरकार की ओर से नसबंदी कराने वाली महिलाओं व पुरुषों को 3,000 रुपए, जबकि नसबंदी के लिए प्रेरित करने वाले को 400 रुपए देने का प्रावधान है। इसके बावजूद नसबंदी को लेकर पुरुषों में जागरूकता और स्वीकृति की गंभीर कमी बनी हुई है। सदर अस्पताल प्रबंधन का कहना है कि संसाधन उपलब्ध होने के बावजूद लक्ष्य की प्राप्ति नहीं हो पा रही है। डिप्टी सुपरिटेंडेंट बोले- नसबंदी की सारी सुविधाएं अस्पताल में मौजूद सदर अस्पताल के उपाधीक्षक अरविंद कुमार सिंह ने बताया कि महिलाओं का बंध्याकरण दो चरणों में किया जाता है। पोस्ट पार्टम स्टरलाइजेशन (PPS) प्रसव के सात दिन के अंदर किया जाता है और इसमें 3,000 रुपए की राशि दी जाती है, जबकि ट्यूबलाइजेशन (TT) प्रसव के सात दिन बाद किया जाता है, जिसमें 2,000 रुपए मिलते हैं। दोनों ही प्रक्रियाओं के लिए अस्पताल में आवश्यक सुविधाएं मौजूद हैं। उन्होंने मासिक आंकड़ों की जानकारी देते हुए बताया कि जनवरी में जनवरी में टीटी 66 तथा पीपीएस 10, फरवरी माह में टीटी 65 पीपीएस 04, मार्च माह में टीटी 35, पीपीएस 02, अप्रैल माह में टीटी 13 पीपीएस 05, मई माह में टीटी 04, पीपीएस 12, जून माह में टीटी 04, पीपीएस 04, जुलाई माह में टीटी 02, अगस्त माह में टीटी 13, पीपीएस 13, सितंबर माह में टीटी 11, पीपीएस 11,अक्टूबर माह में टीटी 15, पीपीएस 07 तथा नवंबर माह में टीटी 0, पीपीएस 06 हुए है। अस्पताल प्रबंधन के अनुसार स्त्रीरोग विशेषज्ञ की उदासीनता भी लक्ष्य पूरा न होने का एक बड़ा कारण है। उपाधीक्षक ने बताया कि बंध्याकरण को लेकर विशेषज्ञ गंभीरता नहीं दिखा रहीं, जबकि अस्पताल प्रशासन द्वारा लगातार आग्रह किया जा रहा है कि अभियान में तेजी लाई जाए।परिवार नियोजन में पुरुषों की नगण्य भागीदारी न केवल सरकारी अभियान की सफलता पर सवाल खड़ा करती है, बल्कि समाज में व्याप्त गलत धारणाओं और असमान जिम्मेदारी को भी उजागर करती है। आंकड़ों से साफ है कि औरंगाबाद में परिवार नियोजन की पूरी जिम्मेदारी अब भी महिलाओं पर ही है।
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