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संभल में जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने कल्कि कथा का वर्णन किया:बोले- तुलसी पीठ धर्म की एकमात्र प्रामाणिक पीठ, बाबर आक्रांता है

संभल के थाना ऐंचौड़ा कंबोह में शुक्रवार को विश्व की पहली कल्कि पुराण कथा के पांचवें दिन जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामभद्राचार्य ने प्रवचन दिए। उन्होंने स्वयं को ब्राह्मण, साधु, विरक्त, संन्यासी और फिर जगद्गुरु रामानंदाचार्य रामभद्राचार्य बताया। उन्होंने जोर देकर कहा कि तुलसी पीठ ही धर्म की एकमात्र प्रामाणिक पीठ है। स्वामी रामभद्राचार्य ने यह भी कहा कि वे बड़े-बड़े विद्वानों को भी निरुत्तर करने की क्षमता रखते हैं, हालांकि वे सबकी ‘कुंडली खोलना’ नहीं चाहते। जगद्गुरु ने ‘पीठ’ की परिभाषा देते हुए कहा कि जो धर्म का संरक्षण कर पादुका पूजन की परंपरा का निर्वहन करे, वही पीठ होती है। उन्होंने बताया कि पादुका पूजन की परंपरा सबसे पहले चित्रकूट में शुरू हुई थी, जब भगवान श्रीराम ने भरत जी को अपनी पादुकाएं दी थीं। उन्होंने अपनी पादुकाओं के बारे में बताया कि ये उन्हें रामानंदाचार्य परंपरा से प्राप्त हुई हैं और विक्रम संवत 1364 में गुरुजी महाराज ने इन्हें अपने चरणों में धारण किया था। अपनी कथा जारी रखने के संकल्प पर उन्होंने कहा कि कुछ लोग उन्हें आयु अधिक होने के कारण कथा कम करने की सलाह देते हैं। इस पर उन्होंने कहा कि जब तक उनका श्वास चलेगा, वे कथा करते रहेंगे, क्योंकि वे भगवान की कोई और सेवा नहीं कर पाए हैं। रामभद्राचार्य महाराज ने घोषणा की कि जब तक उनका जीवन है, संभल क्षेत्र राममय और कल्किमय होकर रहेगा। उन्होंने कल्कि पीठधीश्वर आचार्य प्रमोद कृष्णम को सुझाव दिया कि कल्कि धाम में सप्ताह में दो दिन, मंगलवार और शनिवार को सुंदरकांड का पाठ होना चाहिए। कल्कि पुराण कथा का वाचन करते हुए उन्होंने कहा कि कल्कि महाराज ही यह सिद्ध करेंगे कि ब्राह्मण भी राजा हो सकता है। उन्होंने भारत में रहने वालों के लिए ‘वंदे मातरम’ कहने और गंगा-यमुना को मानने की अनिवार्यता पर जोर दिया। स्वामी रामभद्राचार्य ने कहा कि प्रेम से रहना चाहिए और उन्होंने चित्रकूट में अब्दुल रहीम खानखाना को स्थान देने का उदाहरण दिया। हालांकि, उन्होंने स्पष्ट किया कि अब आक्रांताओं के नाम पर कोई स्थान नहीं बनने दिया जाएगा, क्योंकि बाबर एक आक्रांता था। उन्होंने सभी को गुरुजनों से हठ न करने की सलाह दी, क्योंकि गुरु तो गुरु होता है। रामभद्राचार्य महाराज ने कथा प्रवचन के दौरान बताया कि किस तरह 5 वर्ष के कल्कि इतने सुंदर हैं कि माता-पिता भी चिंतित है कि कहीं उन्हें किसी की नजर ना लगे। पांच साल के कल्कि शिक्षा के लिए गुरुकुल जा रहे थे तब रास्ते में परशुराम मिले। परशुराम ने बालक से नाू पूछा तो बताया कि मेरा कश्यप गोत्र है और कल्कि शर्मा नाम है। कल्कि जी के सुंदर स्वरूप को देखकर भगवान परशुराम के मन में आया कि मैं इस बालक को गोद में ले लूं क्या। परशुराम जी बेहद कठोर स्वभाव वाले हैं लेकिन कल्कि को देखते ही उनकी कठोरता दुलार में बदल गई। परशुराम जी ने पूछा कहा जा रहे हो, कल्कि जी ने जवाब दिया गुरुकुल जा रहा हूं। उन्होंने फिर पूछा कि कौन से गुरुकुल जा रहे हो। तो जवाब दिया कि नाम तो मुझे नहीं पता। इसके बाद भगवान परशुराम ने प्रभु कल्कि से कहा कि मैं ही तुम्हारा गुरु बनूंगा। परशुराम जी भगवान कल्कि जी को गोद में उठाकर महेंद्रांचल पर्वत पर आ गए। परशुराम ने कहा पहले में क्षत्रियों को शिक्षा देता था लेकिन महाभारत काल में भीष्म ने मेरे साथ ऐसी घटना घटा दी कि उसके बाद मैंने क्षत्रियों को शिक्षा देना बंद कर दिया। महारभारत का व्रतांत सुनाते हुए रामभद्राचार्य महाराज ने कहा कि भगवान परशुराम भीष्म के गुरु थे। फिर भी भीष्म ने उनकी बात नहीं मानी और फिर स्थिति युद्ध तक आ गई। परशुराम ने भीष्म पर बेहद घायत अस्त्र चलाया तो देवताओं ने कहा कि प्रभु आप तो भीष्म के गुरु हो,आप अपने इस अस्त्र का प्रहार अपने शिष्य भीष्म पर न करें। देवताओं के कहने पर परशुराम ने अपना शास्त्र वापस ले लिया। भीष्म को लगा मैं युद्ध जीत गया लेकिन गुरु से जीत कोई प्रसन्नता का विषय नहीं होती। परिणाम यह रहा कि महाभारत के युद्ध में उन्हें बांड़ों की शैय्या पर सोना पड़ा। कर्ण ने खुद के क्षत्रिय होने की बात छुपा कर परशुराम से शिक्षा ली थी तब परशुराम ने उन्हें श्राप दिया था कि युद्ध में मेरी सिखाई विद्या तुम्हें विसमृत हो जाएगी। कल्कि पुराण कथा वाचन में रामभद्राचार्य महाराज ने आगे कहा कि शिक्षा देने के बाद परशुराम भगवान श्री कल्कि को लेकर अपने गुरु शिव के पास कैलाश पर लेकर जाते हैं। भगवान शिव ने कल्कि जी को तीन चीज दी उन्होंने अपना घोड़ा देते हुए कहा कि जहां तुम चाहोगे यह तुम्हें ले जाएगा। बताया कि यह बहुत रूप वाला होगा। भगवान शिव ने कहा मैं तुम्हें एक तोता दे रहा हूं,इसका नाम सर्वज्ञ है। तीसरा यह दिव्य तलवार मैं तुम्हें दे रहा हूं। भगवान शिव ने तलवार देते हुए कल्कि जी से कहा कि पृथ्वी पाप के भार से भर गई है। इसके भार को कम करने के लिए इस तलवार को ले जाओ।


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