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लखनऊ विश्वविद्यालय में ‘शब्द यात्रा’ का कार्यक्रम:देशभर के साहित्यकारों ने दी रचनात्मक प्रस्तुतियां, संस्कृति पर चर्चा

लखनऊ विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग और गुरुग्राम की साहित्यिक संस्था “शब्द यात्रा” ने शुक्रवार को एपीसेन सभागार में एक संयुक्त कार्यक्रम का आयोजन किया। इस साहित्यिक आयोजन में देशभर से आए साहित्यकारों ने अपनी रचनाएं प्रस्तुत कीं। कार्यक्रम की मुख्य अतिथि लखनऊ विश्वविद्यालय की सांस्कृतिक निदेशक प्रो. अंचल श्रीवास्तव थीं। दीप प्रज्वलन के साथ कार्यक्रम का शुभारंभ शब्दयात्रा की अध्यक्ष शारदा मित्तल, महासचिव प्रीति मिश्रा और हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. पवन अग्रवाल ने किया। कार्यक्रम का संयोजन प्रो. हेमांशु ने किया, जिन्होंने शब्द, समाज, साहित्य और संस्कृति के संबंधों के बारे में बताया। 20 साहित्यकारों ने अपनी रचनात्मक प्रस्तुतियां दीं स्वागत वक्तव्य में प्रीति मिश्रा ने संस्था के उद्देश्यों की जानकारी दी। धन्यवाद ज्ञापन देते हुए शारदा मित्तल ने कहा कि शब्द यात्रा नवोदित रचनाकारों को मंच प्रदान करती है और छिपी हुई प्रतिभाओं को सामने लाती है।कार्यक्रम में देशभर से लगभग 20 साहित्यकारों ने अपनी रचनात्मक प्रस्तुतियां दीं। सरोजनी चौधरी ने मानवीयता पर आधारित कविता से अपनी प्रस्तुति शुरू की। संगीता सिंह ने प्रेम-गीत प्रस्तुत किए, जबकि प्रो. मीनाक्षी पांडे ने अपनी ग़ज़ल “इतना तुम्हारा कद बड़ा कि झुकना पड़ा मुझे…” सुनाई। पूर्व कृषि वैज्ञानिक पुनीत चंद्रा ने अपनी संगीतमय प्रस्तुति दी। कहानी के माध्यम से समाज की स्थिति की प्रस्तुति अखिल भारतीय साहित्य परिषद की अध्यक्ष विद्यावती कालरा ने युवाओं में संस्कृति जागरण पर जोर दिया और एक कहानी के माध्यम से समाज की स्थिति प्रस्तुत की। डॉ. रेखा मित्तल की कहानी ने समकालीन समाज को दर्शाया, वहीं शायर विनय कुमार ने अपनी ग़ज़ल “क्या सरसराहट सी है चिलमन के उस तरफ…” पेश की।राकेश रायजादा, सुधा मिश्रा, के.के. पांडे, मनोरमा श्रीवास्तव, गीता जयसिंह और अपर्णा सिंह सहित लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्र अनमोल, अभिषेक तथा प्रशांत पीयूष ने भी अपनी रचनाएं प्रस्तुत कीं। विशिष्ट अतिथि आर.के श्रीवास्तव ने कविता के तीन अक्षरों का अर्थ समझाते हुए कहा कि “क से कवि, व से विचार और त से तालमेल — यही कविता का सार है।मुख्य अतिथि प्रो. अंचल श्रीवास्तव ने अपने संबोधन में कहा कि शब्द ब्रह्म हैं। सही शब्द चयन से मनुष्य नि:शब्द की यात्रा तक पहुंचता है। साहित्य और संस्कृति एक-दूसरे की आधारशिला हैं।


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