रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा ने पाकिस्तान के सत्ता गलियारों और मीडिया स्टूडियो में ऐसी घबराहट पैदा कर दी है, जैसी किसी सैन्य टकराव से पहले होती है। इस्लामाबाद से लेकर रावलपिंडी तक, हर टेबल पर सिर्फ एक ही चर्चा है कि पुतिन भारत आए, लेकिन पाकिस्तान क्यों नहीं जाते? पाक मीडिया में यह भी चर्चा है कि भारत–रूस के बीच होने वाले रक्षा समझौते पाकिस्तान के लिए कितने बड़े खतरे साबित होंगे। देखा जाये तो पाकिस्तान की पूरी राजनीतिक और सुरक्षा व्यवस्था बेचैनी में है, मानो किसी भारी भू-राजनीतिक बदलाव का एहसास उन्हें पहले ही हो चुका हो।
पाकिस्तान को पता है कि पुतिन की यह यात्रा केवल प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि तेल, ऊर्जा, सुरक्षा और रक्षा साझेदारी को एक नई ऊंचाई देने वाली है। S-400, Su-57 और संभावित S-500 जैसे टॉप-टियर सिस्टम पर चर्चा से पाकिस्तान के सैन्य प्रतिष्ठान में खलबली मच गई है। यही कारण है कि जब पूरी दुनिया भारत–रूस साझेदारी की मजबूती पर रिपोर्ट कर रही है, तब पाकिस्तान के टीवी चैनलों पर तथाकथित “एक्सपर्ट” खुद को यह कहकर सांत्वना देते दिखाई दे रहे हैं कि “किर्गिस्तान के राष्ट्रपति आये थे, जॉर्डन के राजा आए थे, ईरान के सलाहकार आए थे” आदि आदि। मानो इससे भारत–रूस की महाशक्ति-स्तर की साझेदारी का महत्व कम हो जाएगा।
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असलियत यह है कि पाकिस्तान की बेचैनी S-500 या Su-57 की चर्चा से नहीं, बल्कि उस कड़वी सच्चाई से है कि रूस, अमेरिका, फ्रांस, जापान और यूरोपीय संघ जैसी वैश्विक शक्तियाँ भारत को एशिया की स्थिरता का केंद्र मानती हैं और पाकिस्तान को क्षेत्रीय अस्थिरता का स्रोत। यही कारण है कि पाकिस्तानी पत्रकार भी अब मानने लगे हैं कि “भारत अपनी सैन्य ताकत को जिस स्पीड से बढ़ा रहा है, पाकिस्तान उसके सामने दो दशक पीछे खड़ा है।”
भारत आज मिसाइल तकनीक, रक्षा उत्पादन, रणनीतिक साझेदारी और स्वदेशी हथियार प्रणालियों जैसे तेजस, पिनाका, अग्नि और आकाश में वह बढ़त हासिल कर चुका है, जिसकी पाकिस्तान कल्पना भी नहीं कर सकता। इसके विपरीत पाकिस्तान विदेशी सहायता, उधार और अस्थिर अर्थव्यवस्था पर निर्भर है। यही गहरी असमानता पाकिस्तानी पैनलिस्टों की बौखलाहट और एंकरों की तीखी बयानबाज़ी में साफ झलकती है।
लेकिन पाकिस्तान की सबसे बड़ी बेचैनी किसी हथियार प्रणाली को लेकर नहीं है, उसकी नींद इसलिए उड़ गई है क्योंकि पुतिन ने भारत के मंच से आतंकवाद के खिलाफ खुली, स्पष्ट और सख्त लाइन खींच दी है। पुतिन का बयान कि “आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में रूस पूरी तरह भारत के साथ है”, पाकिस्तान के लिए भू-राजनीतिक झटका है। यह बयान लाइव कैमरे पर आया और पाकिस्तान में राजनीतिक हलकों तक इसकी गूँज सुनाई दी। पुतिन ने भारतीय मीडिया से यह भी कहा कि “भारत के साथ अब वह व्यवहार नहीं किया जा सकता जो दशकों पहले किया जाता था। प्रधानमंत्री मोदी दबाव में आने वाले नेता नहीं हैं।” यह संदेश सीधे-सीधे उन देशों के लिए था जो भारत को आज भी बीते युग की नजर से देखते हैं।
अब सवाल यह भी उठता है कि पुतिन पाकिस्तान क्यों नहीं जाते? देखा जाये तो इसका जवाब सरल और कड़वा दोनों है। रूस की विदेश नीति में पाकिस्तान की प्रासंगिकता लगभग शून्य है। पाकिस्तान न स्थिर अर्थव्यवस्था है, न भरोसेमंद सुरक्षा साझेदार और न ही कोई वैश्विक प्रभाव वाला देश है। वहीं भारत एक वैश्विक शक्ति, दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक और रूस का दशकों से सबसे महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार है। स्थिरता, विश्वसनीयता, बाज़ार क्षमता और सामरिक महत्व, हर मीट्रिक पर भारत रूस की पहली पसंद है। पाकिस्तान अपनी राजनीतिक अस्थिरता, आतंकवादी ढाँचों और आर्थिक गिरावट के चलते मॉस्को के लिए केवल जोखिम है, साझेदार नहीं। इसलिए पुतिन भारत आते हैं और पाकिस्तान सिर्फ देखता है।
बहरहाल, भारत–रूस की मजबूत होती साझेदारी दक्षिण एशिया के शक्ति-संतुलन को नया रूप दे रही है और पाकिस्तान के लिए यह कड़वा यथार्थ स्वीकार करना दिन-ब-दिन मुश्किल होता जा रहा है।
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