कांग्रेस सांसद और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने आरोप लगाया है कि मोदी सरकार विदेशी गणमान्य व्यक्तियों को उनसे मिलने नहीं देती। लेकिन भाजपा और सरकार ने इस आरोप को निराधार बताते हुए राहुल गांधी पर ही सवाल उठा दिया है। हम आपको बता दें कि भाजपा ने कहा है कि पिछले डेढ़ साल में राहुल गांधी ने न्यूजीलैंड, मॉरीशस, मलेशिया और बांग्लादेश के राष्ट्राध्यक्षों एवं प्रधानमंत्रियों सहित कम से कम पांच विदेशी नेताओं से मुलाकात की है।
हम आपको बता दें कि राहुल गांधी ने आरोप लगाया था कि ‘‘सरकार अपनी असुरक्षा के कारण विदेशी नेताओं से कहती है कि वे नेता प्रतिपक्ष से न मिलें।’’ उन्होंने कहा कि अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह के समय में विदेशी नेताओं को विपक्ष के नेता से भी मिलवाया जाता था। भाजपा ने राहुल गांधी के इस आरोप का न सिर्फ खंडन किया बल्कि उनके दायित्व निर्वहन की शैली पर भी गंभीर सवाल खड़े किए। भाजपा नेताओं ने याद दिलाया कि राहुल गांधी कई महत्वपूर्ण राष्ट्रीय समारोहों में शामिल ही नहीं हुए, जबकि एक ज़िम्मेदार नेता प्रतिपक्ष के रूप में उनसे अपेक्षित था कि वह राष्ट्रीय महत्व और संविधान संबंधी आयोजनों में उपस्थित रहें।
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हम आपको बता दें कि राहुल गांधी इस साल स्वतंत्रता दिवस समारोह में शामिल होने लाल किले नहीं गए थे, नये उपराष्ट्रपति सीपी राधाकृष्णन के शपथ ग्रहण समारोह में भी राहुल गांधी शामिल नहीं हुए थे और हाल ही में देश के नये प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत के शपथ ग्रहण समारोह में भी राहुल गांधी अनुपस्थित रहे थे। ऐसे में सवाल उठता है कि जो व्यक्ति राष्ट्र के सर्वोच्च संवैधानिक आयोजनों का सम्मान नहीं करता, वह सरकार पर दायित्व न निभाने के आरोप कैसे लगा सकता है?
हम आपको बता दें कि भाजपा प्रवक्ता अनिल बलूनी ने राहुल गांधी की जिन बैठकों का विवरण दिया है उसके अनुसार 10 जून 2024 को वह बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना से मिले। 21 अगस्त 2024 को वह मलेशिया के प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम से मिले। 8 मार्च 2025 को वह न्यूजीलैंड के प्रधानमंत्री क्रिस्टोफर लक्सन से मिले। 16 सितंबर 2025 को वह मॉरीशस के प्रधानमंत्री नवीनचंद्र रामगुलाम से मिले। 1 अगस्त 2024 को वह वियतनाम के प्रधानमंत्री से मिले। इनमें से कई मुलाकातों में सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी भी मौजूद थीं।
इस बीच, सरकारी सूत्रों ने यह स्पष्ट किया है कि किसी विदेशी नेता की विपक्ष से मुलाकात उनके अपने कार्यक्रम और इच्छा पर निर्भर करती है, न कि सरकार के निर्देश पर। सूत्रों का यह भी कहना है कि रूस इस समय नाजुक मोड़ से गुजर रहा है ऐसे में संभवतः उसके नेता राहुल गांधी से नहीं मिलना चाहते क्योंकि राहुल गांधी को कई बार गैर-जिम्मेदार तरीके से टिप्पणियां करते हुए देखा गया है। यही नहीं, कई मौकों पर राहुल गांधी ने स्वयं विदेशी धरती पर भारत की अर्थव्यवस्था और लोकतंत्र के बारे में नकारात्मक टिप्पणियाँ की हैं, जिससे उनकी विश्वसनीयता कमजोर हुई है।
देखा जाये तो राहुल गांधी का यह दावा कि सरकार विदेशी गणमान्य व्यक्तियों को उनसे दूर रखती है, उपलब्ध तथ्यों की कसौटी पर टिक नहीं पाता। संसद में नेता प्रतिपक्ष जैसा महत्वपूर्ण पद यह अपेक्षा करता है कि वह परिपक्वता, निरंतरता और संवैधानिक परंपराओं का पालन करें। लेकिन उनके कार्य व्यवहार में अक्सर अनियमितता और जिम्मेदारी से दूरी देखने को मिलती है। स्वतंत्रता दिवस, उपराष्ट्रपति के शपथ ग्रहण और नये प्रधान न्यायाधीश के शपथ समारोह आदि सामान्य आयोजन नहीं थे। इनमें नेता प्रतिपक्ष की अनुपस्थिति सवाल खड़े करती है कि क्या राहुल गांधी वास्तव में अपनी भूमिका को गंभीरता से निभाना चाहते हैं या सिर्फ राजनीतिक शोर पैदा करने का प्रयास कर रहे हैं।
यह भी सच है कि भारत की विश्व राजनीति में भूमिका लगातार बढ़ रही है। ऐसे समय में विपक्ष के नेता की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है कि वह विदेश नीति पर देश की एकता और परिपक्वता का संदेश दें, न कि अपनी ही बातों से भ्रम फैलाएँ।
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