प्रयागराज में उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र द्वारा आयोजित दस दिवसीय राष्ट्रीय शिल्प मेले के चौथे दिन गुरुवार शाम सांस्कृतिक कार्यक्रमों से सजी रही। मुक्ताकाशी मंच पर लोक संगीत, भक्ति और पारंपरिक कलाओं की मनमोहक प्रस्तुतियां हुईं, जिन्होंने दर्शकों को देर तक बांधे रखा। इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमसेरी ने मुख्य अतिथि के रूप में दीप प्रज्ज्वलित कर संध्या का शुभारंभ किया। केंद्र निदेशक सुदेश शर्मा ने अंगवस्त्र और स्मृति चिन्ह देकर उनका स्वागत किया। कार्यक्रम सलाहकार कल्पना सहाय ने स्वागत उद्बोधन दिया। सांस्कृतिक संध्या की शुरुआत भजन गायक आशुतोष श्रीवास्तव के भक्ति गीतों से हुई। उन्होंने ‘सियाराम मैं जग जानी’, ‘सांसों का है आना-जाना’ और ‘मां तू कृष्णा कान्हा’ जैसे भजन प्रस्तुत किए, जिससे वातावरण भक्तिमय हो गया। दर्शकों ने उनकी प्रस्तुतियों पर तालियां बजाईं। इसके बाद गायिका रिद्धि पाण्डेय ने अपनी सुरीली आवाज में ‘मोहि लेलखिन सजनी’, ‘कौने रंग मोतिया’ और ‘रिमझिम बरसे पनिया’ जैसी लोकप्रिय लोकधुनों की प्रस्तुति दी। उनकी गायकी ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। मुक्ताकाशी मंच पर विभिन्न राज्यों की सांस्कृतिक विरासत का संगम देखने को मिला। मथुरा के कलाकारों ने अद्भुत चरकुला नृत्य प्रस्तुत किया। राजस्थान के तेराताली और भवई नृत्य ने दर्शकों की खूब तालियां बटोरीं। मध्यप्रदेश से आईं सुमन परास्ते और उनके दल ने ऊर्जावान कर्मा और रीना शैला नृत्य प्रस्तुत कर मंच पर रंग जमा दिया। संध्या का समापन लोकगायक मुंशीलाल सोनकर के बिरहा गायन के साथ हुआ। मेले में विभिन्न राज्यों के स्टॉलों पर पारंपरिक शिल्प और कलाकृतियों को देखने के लिए गुरुवार को बड़ी संख्या में लोग पहुंचे। हस्तशिल्प से लेकर घरेलू सजावटी वस्तुओं तक, सभी स्टॉलों पर अच्छी भीड़ देखी गई। मेले में लगे फूड स्टॉल भी लोगों के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। राजस्थानी जलेबी, वाहिद की बिरयानी और मसालेदार चुरमुरा जैसे व्यंजनों ने लोगों को खूब आकर्षित किया। देश की विविध सांस्कृतिक विरासत को एक ही मंच पर देखने का यह अवसर लोगों के लिए विशेष रहा। आयोजन के शेष दिनों में भी कई लोकनृत्य, संगीत और सांस्कृतिक प्रस्तुतियां होंगी।
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