बरेली परिवार न्यायालय ने एक तलाक वाद पर फैसला सुनाते हुए तीखी टिप्पणी दी-“जो लड़कियां अपने पति को उसके माता-पिता और परिवार से अलग करना चाहती हैं, उन्हें शादी ऐसे पुरुष से करनी चाहिए जिसके घर में न माता-पिता हों, न भाई-बहन।” अदालत ने कहा कि संयुक्त परिवार को अवरोध समझना सामाजिक ढांचे के लिए चिंता पैदा करने वाला चलन है। इसी टिप्पणी के साथ अदालत ने पति द्वारा दायर तलाक याचिका को स्वीकार कर लिया। पत्नी की शर्त-‘अलग मकान लो, तभी ससुराल आऊंगी’ फरीदपुर निवासी शिक्षिका का विवाह 2019 में बदायूं रोड स्थित कॉलोनी में रहने वाले युवक से हुआ था। युवक अपने बुजुर्ग माता-पिता और एक अविवाहित बहन का इकलौता पुत्र है। शादी के बाद पत्नी ने संयुक्त परिवार में रहने से साफ इनकार कर दिया। शर्त थी कि पति नया मकान खरीदे या घर की ऊपरी मंज़िल पर केवल उसके लिए अलग व्यवस्था बने। जब तक यह नहीं होगा, वह ससुराल नहीं आएगी। अदालत ने माना कि यह दबाव वैवाहिक जीवन को बाधित करने वाली गंभीर हरकत है। चैट और तस्वीरें बनीं सबूत-‘क्या मैं आपकी गुलाम बनकर रहूं?’ पति ने अदालत में वह चैट पेश की जिसमें पत्नी ने अपनी बहन को संदेश भेजा था कि अब नौकरी मिल गई है, घर के काम से राहत मिलेगी।“क्या चाहते हो कि संयुक्त परिवार में मैं तुम्हारी गुलाम बनकर रहूं?” कोर्ट ने कहा कि बातचीत से यह स्पष्ट है कि विवाहिता को संयुक्त परिवार से गहरी चिढ़ थी। पति द्वारा पेश किए फोटोग्राफ में पत्नी ने कोई सुहाग चिन्ह-मंगलसूत्र, सिंदूर, बिछिया-धारण नहीं किया था। शादी के एक वर्ष बाद से उसने दांपत्य संबंध भी ठुकरा दिए। पिता की भूमिका पर भी अदालत की फटकार“जब वृक्ष ही दूषित हो तो फल कैसा होगा”-जज की कड़ी टिप्पणी अपर प्रधान न्यायाधीश ज्ञानेंद्र त्रिपाठी ने फैसले में लिखा- विवाहिता के पिता ने बेटी को समझाने के बजाय अलग रहने की शर्त थोप दी। यह दबाव निंदनीय और वैवाहिक संस्था के खिलाफ व्यवहार है। पारिवारिक मूल्यों को कमजोर करने वाले ऐसे मामलों में विधायिका को भी ध्यान देना चाहिए। जज ने कहा कि जब माता-पिता ही बच्चों को संयुक्त परिवार से दूर रहने की सीख देने लगें तो समाज में संतुलन बिगड़ना तय है। शिक्षिका होने पर सवाल-‘संस्कार कैसे सिखाएगी?’ जज ने टिप्पणी की कि विवाहिता एक प्राथमिक विद्यालय में शिक्षिका है। ऐसा व्यक्ति जो अपने ही परिवार के मूल्यों का सम्मान नहीं कर सकता, वह छात्रों को संस्कार कैसे देगा- यह चिंताजनक प्रश्न है। पति को पत्नी से उपेक्षा मिली, अदालत ने तलाक मंजूर किया पति के माता-पिता से अलग रहने की कोशिश वैवाहिक क्रूरता है। इसी आधार पर पति की तलाक याचिका मंजूर कर दी गई। जज ने कहा इस तरह के आचरण से पति पत्नी का रिश्ता नहीं चल सकता। मां बाप की इक्षा होती है कि उनके बेटे की शादी होगी। घर पर बहु आएगी। वो हम सबको एक साथ लेकर चलेगी। जज की अंतिम टिप्पणी “जो लड़कियाँ एकाकी जीवन चाहती हैं, वे पहले ही अपने बायोडाटा में लिख दें कि वे केवल उसी पुरुष से विवाह करेंगी जिसके माता-पिता, भाई-बहन जीवित न हों। ताकि किसी युवक को अपने परिवार से अलग होने की नौबत न आए।” – ज्ञानेंद्र त्रिपाठी, अपर प्रधान न्यायाधीश, परिवार न्यायालय, बरेली
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