संभल का प्राचीन श्रीकल्कि विष्णु मंदिर, जिसकी अंतिम बार मरम्मत माता अहिल्याबाई होल्कर ने कराई थी और जिसकी देखरेख आज भी अहिल्याबाई होल्कर ट्रस्ट करता है—इन दिनों फिर चर्चा में है। वजह है भगवान विष्णु के दसवें अवतार, भगवान कल्कि के जन्म की तिथि को लेकर चल रहा मतभेद। जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने हाल ही में शास्त्रीय आधारों पर घोषणा की कि भगवान कल्कि का जन्म वैशाख शुक्ल पक्ष की द्वादशी को माता सुमति के गर्भ से होगा। लेकिन संभल के प्रसिद्ध विद्वान पंडित महेंद्र प्रसाद शर्मा ने इस पर अलग मत रखते हुए कहा- जगद्गुरु हमारे आदरणीय हैं, उनकी समानता हम नहीं कर सकते, लेकिन कल्कि जयंती 1961 से श्रावण शुक्ल पक्ष की षष्ठी को ही मनाई जाती है। यह परंपरा मेरे पिताजी ने शुरू की थी और मैं उसे निभा रहा हूँ। 1961 से चल रही परंपरा: ‘श्रावण षष्ठी ही कल्कि जयंती’ पंडित शर्मा के अनुसार, यह तिथि न सिर्फ परंपरागत है बल्कि स्थानीय धार्मिक मान्यताओं में गहराई से स्थापित भी है। संभल में पिछले 63 वर्षों से कल्कि जयंती श्रावण शुक्ल षष्ठी पर ही मनाई जाती रही है। उन्होंने कहा- अगर 1961 से यहां जयंती मन रही है, तो क्या यहां भगवान की कथा नहीं हुई होगी? यहां हमेशा कथा और कीर्तन होता रहा है। तरीका जरूर अलग है, लेकिन परंपरा नहीं बदली। पंडित शर्मा ‘कीर्तन परंपरा’ का उल्लेख करते हुए बोले- हमारे यहां कीर्तन का मंत्र है— ‘जय कल्कि जय जगतपते, पद्मावती जय रमापति।’ शास्त्रीय आधार: कल्कि जन्मस्थान संभल का वर्णन
भागवत और अन्य पुराणों में उल्लेख है कि कल्कि अवतार का जन्म संभल में होगा। यह स्थान गंगा और रामगंगा के बीच तीन योजन की दूरी पर बताया गया है। कल्कि भगवान के पिता का नाम विष्णुयश, माता सुमति, दादा ब्रह्मयश चार भाई— सुमंत, प्रज्ञाय, कवि और सबसे छोटे कल्कि। कल्कि पुराण की आयु पर दो मत
पंडित शर्मा के अनुसार- जिस कल्कि पुराण की चर्चा हो रही है, वह 527 वर्ष पुराना था, अब 528वां वर्ष चल रहा है। उसकी भाषा व संकेत भूतकाल की शैली बताते हैं। इसलिए जयंती की गणना में मतभेद होना स्वाभाविक है। उन्होंने कहा कि कुछ लोग 527 के अनुसार जयंती मनाएंगे, और कुछ 528 के अनुसार। उन्होंने गीता प्रेस जैसी धार्मिक संस्थाओं का भी उल्लेख किया, जहां से प्रमाणिक ग्रंथों का प्रकाशन होता रहा है। सरकारी छुट्टी को लेकर भी जारी है असमंजस
पंडित शर्मा ने कहा- कल्कि जयंती स्थानीय कार्यक्रम है। सरकार ने अभी तक इस पर कोई छुट्टी घोषित नहीं की है। अगर कोई संगठन मांग कर रहा है तो यह उनका अधिकार है। पर मंदिर में जयंती श्री श्रावण शुक्ल षष्ठी के दिन ही मनाई जाएगी। 1000 साल पुराना नक्शा: मंदिर का नाम था ‘मनुश्री कल्कि मंदिर’
संभल से मिले लगभग 1000 वर्ष पुराने नक्शे में इस मंदिर का स्पष्ट उल्लेख मिलता है। नक्शे में इसे ‘मनुश्री कल्कि मंदिर’ लिखा गया है। इससे पहले का कोई लिखित इतिहास उपलब्ध नहीं। मंदिर के आठ कोने इसे विशिष्ट और प्राचीन बनाते हैं। विशाल दक्षिणी बुर्ज अहिल्याबाई होल्कर ने दक्षिण भारतीय शैली में बनवाई थी। जीर्णोद्धार समय-समय पर हुआ, अंतिम बार अहिल्याबाई होल्कर द्वारा कराया गया।
आज मंदिर का संचालन अहिल्याबाई होल्कर ट्रस्ट ही कर रहा है। कल्कि पीठाधीश्वर आचार्य प्रमोद कृष्णम् का कार्यक्रम— लेकिन मंदिर की परंपरा जस की तस
पंडित शर्मा ने स्पष्ट किया- आचार्य प्रमोद कृष्णम् जो भी कार्यक्रम कर रहे हैं, उसका मंदिर की परंपरा पर कोई प्रभाव नहीं है। मंदिर में वही कार्यक्रम होते हैं, जो सदियों से मनते आए हैं। उन्होंने कहा- “भगवान का जन्मदिन कोई भी मना सकता है। आजकल कल्कि जयंती कई स्थानों पर मनाई जाने लगी है।”
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