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बलदेव में दाऊजी महाराज का 445वां प्राकट्योत्सव मनाया गया:मथुरा में गद्दल पूर्णिमा पर ओढ़ाई रजाई, बृज में समझों सर्दी आई

मथुरा के बलदेव स्थित श्रीदाऊजी महाराज का 445वां प्राकट्योत्सव गुरुवार को मनाया गया। इस अवसर पर प्रसिद्ध लक्खी मेले का भी शुभारंभ हुआ, जो एक माह तक चलेगा। मंदिर में विशेष अनुष्ठान, अभिषेक और शृंगार के कार्यक्रम आयोजित किए गए। परंपरा के अनुसार, श्रीदाऊजी महाराज को विशेष रजाई और गद्दल धारण कराई गई। यह मान्यता है कि महाराज के रजाई ओढ़ने से शीतकाल का आगमन माना जाता है, इसलिए यह पर्व ‘गद्दल पूर्णिमा’ के नाम से जाना जाता है। समारोह की शुरुआत सुबह शहनाई वादन और बलभद्र सहस्त्रनाम पाठ से हुई। इसके बाद पंचामृत में केसर मिलाकर ठाकुरजी का विशेष अभिषेक किया गया, जिसके उपरांत उन्हें गर्म वस्त्र और श्रृंगार धारण कराया गया। सर्दियों को देखते हुए दाऊजी महाराज के भोग में मेवा, काजू, पिस्ता और केसर की मात्रा बढ़ाई गई है। पुजारी रामनिवास शर्मा और बंटी पुजारी ने बताया कि दाऊ बाबा और रेवती मैया की रजाई, जिसे ‘गद्दल’ कहते हैं, में 75 मीटर कपड़ा और 12 किलो रुई का उपयोग होता है। शेषावतार को ठंड से बचाने के लिए दाऊ बाबा के कोट में 56 मीटर कपड़ा और 8 किलो रुई भरी जाती है। ऐतिहासिक मान्यताओं के अनुसार, बलदेवजी और रेवती मैया का प्राकट्य मार्गशीर्ष शुक्ल 15 संवत 1638 (सन 1582) में हुआ था। उस समय श्रीमद् वल्लभाचार्य महाप्रभु के पौत्र गोस्वामी गोकुलनाथ ने एक पर्णकुटी में विशाल श्रीविग्रह की प्राण-प्रतिष्ठा की थी। एक वर्ष बाद संवत 1639 (सन 1583) में प्रतिमाओं को नए मंदिर में पुनः स्थापित किया गया। श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या के कारण लगभग 100 वर्ष बाद, सन 1683 में, वर्तमान विशाल मंदिर में इन प्रतिमाओं को स्थापित किया गया। प्राकट्योत्सव और गद्दल पूर्णिमा के इस अवसर पर हजारों भक्तों ने दर्शन कर पुण्य लाभ प्राप्त किया। मेले में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की उपस्थिति दर्ज की गई।


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