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उत्तर प्रदेश बना इको-टूरिज्म का उभरता केंद्र:तीन वर्षों में 161 करोड़ खर्च, लखीमपुर-खीरी में वन्यजीवों की संख्या बढ़ी

विश्व वन्यजीव संरक्षण दिवस के अवसर पर उत्तर प्रदेश में इको-टूरिज्म और वन्यजीव संरक्षण के प्रयासों की विस्तृत जानकारी सामने आई है। राज्य में दुर्लभ वन्यजीवों के संरक्षण, प्राकृतिक आवासों के बेहतर प्रबंधन और पर्यावरण अनुकूल पर्यटन सुविधाओं के विकास ने उत्तर प्रदेश को प्रकृति प्रेमियों के लिए एक प्रमुख गंतव्य बना दिया है। पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री जयवीर सिंह ने बताया कि वन, सिंचाई सहित विभिन्न विभागों के समन्वय से पर्यटन से जुड़ी सुविधाओं का विकास किया जा रहा है। सरकार का मुख्य उद्देश्य संरक्षण को मजबूत करते हुए स्थानीय समुदायों को आजीविका के अवसरों से जोड़ना है। इको-टूरिज्म विकास बोर्ड ने पिछले तीन वर्षों में 161 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश किया है। यह राशि मार्ग सुधार, कैफेटेरिया, इको-फ्रेंडली विश्राम स्थल, नेचर ट्रेल, बर्ड वॉचिंग जोन और अन्य आधारभूत सुविधाओं के विकास पर खर्च की गई है। वित्तीय वर्ष 2022-23 में 21.04 करोड़ रुपये, 2023-24 में 68.56 करोड़ रुपये और 2024-25 में 72.30 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं। सरकारी रिपोर्टों के अनुसार, यह बढ़ता निवेश पर्यटन को सुदृढ़ करने की राज्य सरकार की प्राथमिकता को दर्शाता है। 11 तस्वीरें देखिए… दुधवा नेशनल पार्क, कतर्नियाघाट और अन्य संरक्षित वनक्षेत्रों में नवीनतम सर्वेक्षणों के अनुसार वन्यजीवों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है। दुधवा टाइगर रिजर्व में वन्यजीवों की संख्या 1.13 लाख से अधिक हो गई है, जबकि कतर्नियाघाट में यह आंकड़ा 17 हजार से अधिक है। बफर जोन में लगभग 15 हजार वन्यजीव पाए गए हैं। तेंदुए/गुलदार की संख्या वर्ष 2022 में 92 से बढ़कर वर्ष 2025 में 275 तक पहुंच गई है, वहीं गैंडों की संख्या 49 से बढ़कर 66 हो गई है। यह वृद्धि संरक्षण प्रयासों की सफलता को दर्शाती है। राज्य सरकार की दीर्घकालिक योजना ‘विकसित यूपी @2047’ में इको-टूरिज्म को प्राथमिकता दी गई है। इस योजना के तहत वेटलैंड-वाइल्डलाइफ नेटवर्क को मजबूत करने, वन क्षेत्रों को प्लास्टिक-मुक्त बनाने और सतत पर्यटन मॉडल अपनाने पर जोर दिया जा रहा है। दुधवा, पीलीभीत और कतर्नियाघाट जैसे क्षेत्रों में नेचर गाइड्स को प्रशिक्षित किया गया है। थारू जनजाति को पर्यटन गतिविधियों से जोड़ने, उनके पारंपरिक भोजन एवं संस्कृति को बढ़ावा देने और होम-स्टे विकसित करने की पहल भी की जा रही है। राज्य सरकार का दावा है कि संरक्षण और पर्यटन के बीच संतुलन स्थापित करते हुए उत्तर प्रदेश आने वाले वर्षों में देश का प्रमुख इको-टूरिज्म हब बन सकता है।


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