दिल्ली ब्लास्ट के आतंकी मॉड्यूल का सेंटर पॉइंट बनी फरीदाबाद की अल-फलाह यूनिवर्सिटी का माइनॉरिटी कोटा (अल्पसंख्यक दर्जा) खतरे में है। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान आयोग (NCMEI) में इसकी सुनवाई आज, 4 दिसंबर को दिल्ली मुख्यालय में होगी। आयोग ने 24 नवंबर को यूनिवर्सिटी को नोटिस जारी किया था। नोटिस में पूछा गया है कि जब उसके डॉक्टरों की दिल्ली में 10 नवंबर को हुए विस्फोट में भूमिका को लेकर जांच चल रही है, जिसमें 15 लोग मारे गए थे, तो ऐसे में उसका अल्पसंख्यक दर्जा क्यों न रद्द कर दिया जाए। यह नोटिस राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद (NAAC) द्वारा 12 नवंबर को जारी उस पत्र के बाद आया है, जिसमें यूनिवर्सिटी द्वारा दिए गए मान्यता संबंधी बयानों पर स्पष्टीकरण मांगा गया था। आयोग ने यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार और हरियाणा शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव को आज की सुनवाई में उपस्थित होने का निर्देश दिया है। अल-फलाह ट्रस्ट के चेयरमैन जावेद अहमद सिद्दीकी 18 नवंबर से हिरासत में हैं। ED ने उन्हें मनी लॉन्ड्रिंग और अन्य वित्तीय अनियमितताओं के मामले में गिरफ्तार किया था। गल्फ फंडिंग की भी जांच जारी है। इसके अलावा फरीदाबाद के फतेहपुरा तगा और धौज गांवों से विस्फोटक मिलने के बाद, दिल्ली ब्लास्ट केस में यूनिवर्सिटी की डॉ. शाहीन सईद और डॉ. मुजम्मिल शकील भी जांच एजेंसियों की गिरफ्त में हैं। इसी यूनिवर्सिटी का डॉक्टर उमर नबी इस केस में सुसाइड बॉम्बर बना था। रजिस्ट्रार और शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव रखेंगे पक्ष
आयोग में यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार और शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव, दोनों को अपना पक्ष रखना होगा। आयोग इस बात की जांच करेगा कि क्या यूनिवर्सिटी का प्रबंधन अभी भी उस अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा किया जा रहा है, जिसके लिए इसे विशेष दर्जा दिया गया था। और क्या स्वामित्व या नियंत्रण में कोई बदलाव हुआ है। फिलहाल यूनिवर्सिटी की सदस्यता भारतीय विश्वविद्यालय संघ (AIU) द्वारा निलंबित कर दी गई है। NCMEI ने यूनिवर्सिटी संचालित करने वाले ट्रस्ट, उसके कर्मचारियों और प्रशासकों की नियुक्ति प्रक्रिया के साक्ष्य सहित अन्य जरूरी दस्तावेज मांगे हैं। इसके अलावा आयोग ने नोटिस में ट्रस्ट डीड के मूल दस्तावेज, प्रवेश और स्टाफ भर्ती संबंधी आंकड़े, यूनिवर्सिटी के अंदर प्रशासकों की हुई बैठकों के विवरण और तीन वर्षों के दौरान बैंक खातों से हुए लेन देन की जानकारी मांगी गई है। ऑडिट रिपोर्ट और फंडिंग की जानकारी न देने पर कड़ी कार्रवाई संभव
अगर यूनिवर्सिटी NCMEI द्वारा मांगे गए व्यापक दस्तावेज, जैसे ट्रस्ट डीड, फंडिंग विवरण और ऑडिट किए गए खाते, उपलब्ध नहीं करा पाता है, तो कड़ी कार्रवाई की संभावना है। नोटिस में शिक्षा विभाग को सत्यापन रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कहा गया था। जिसमें अल्पसंख्यक दर्जा दिए जाने के बाद से संस्थान द्वारा किए गए निरीक्षणों, उठाए गए निगरानी उपायों और संस्थान के साथ हुए पत्राचार का विवरण हो। शिक्षा विभाग को आज ये सत्यापन रिपोर्ट आयोग में देनी है। आज की सुनवाई में तय होगा की माइनॉरिटी कोटा को लेकर आगे जांच चलेगी या नहीं। यूनिवर्सिटी का पहले भी धमाकों से नाम जुड़ा
अल-फलाह यूनिवर्सिटी का पहले भी धमाकों में जुड़ चुका है। दिल्ली के लाल किला ब्लास्ट का सुसाइड बॉम्बर डॉक्टर उमर नबी इसी अल-फलाह यूनिवर्सिटी में काम करता था। आतंक के इस नेटवर्क में यूनिवर्सिटी के दूसरे डॉ. मुजम्मिल शकील, डॉ शाहीन सईद जांच एजेंसी एनआईए की गिरफ्त में है। 2008 में अहमदाबाद में सीरियल बम धमाके हुए थे, इसमें शामिल आतंकी मिर्जा शादाब बेग भी अल-फलाह यूनिवर्सिटी का ही छात्र रहा। उसने 2007 में फरीदाबाद के अल-फलाह इंजीनियरिंग कॉलेज से इलेक्ट्रॉनिक्स एंड इंस्ट्रूमेंटेशन में बीटेक पूरा किया था। 2008 में अहमदाबाद में होने वाले सीरियल ब्लास्ट में शामिल रहा। यानी पढ़ाई के दौरान ही हमले की तैयारी में था। वह कई साल से फरार है। 20 से 78 एकड़ में फैल गया
अभी तक की जांच में पता चला है कि यूनिवर्सिटी को सात साल में 415 करोड़ रुपये की कमाई हुई थी। यूनिवर्सिटी से जुड़ी 9 शेल कंपनियां भी मिली हैं। एक ही पैन नंबर से सारे लेनदेन का खेल हो रहा था। यूनिवर्सिटी की शुरुआत 20 एकड़ से हुई थी और 78 एकड़ तक इसका विस्तार हुआ। ED और अन्य जांच एजेंसियों के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार ट्रस्ट मुख्य रूप से कॉलेज और यूनिवर्सिटी चलाता है। ऐसे में छात्रों मिली फीस ही इसकी मुख्य आय का स्रोत है। हालांकि कई सालों तक संस्थान बिना मान्यता के चलते रहा। फिर छात्रों से पूरी फीस वसूली गई, जिसे एजेंसियां धोखाधड़ी और जालसाजी मान रही हैं। माइनॉरिटी कोटा क्या है
माइनॉरिटी कोटा (अल्पसंख्यक कोटा) वह आरक्षण है जो किसी धार्मिक या भाषाई अल्पसंख्यक समूह के सदस्यों को शिक्षा और रोजगार के अवसरों में लाभ पहुंचाने के लिए दिया जाता है। भारत में मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, पारसी और जैन समुदायों को अल्पसंख्यक माना जाता है और उनके लिए अलग से कोटे का प्रावधान है। अल-फलाह यूनिवर्सिटी में मुस्लिमों को माइनॉरिटी कोटा (अल्पसंख्यक कोटा) मिला हुआ है। सरकारी योजनाओं का खूब उठाया फायदा
अल-फलाह यूनिवर्सिटी को 2014 में हरियाणा सरकार की ओर से प्राइवेट यूनिवर्सिटी का दर्जा प्राप्त हुआ था। उस साल इसके 350 अल्पसंख्यक छात्रों को केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय की ओर से स्कॉलरशिप प्राप्त होने लगी। एक साल पहले यानी 2013 में ऐसे छात्रों की संख्या 1,144 थी। 2011 में यहां की प्रयोगशालाओं के लिए AICTE ने अलग से वित्तीय मदद पहुंचायी थी। 2016 में इसे केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय से 10 करोड़ रुपए की स्कॉलरशिप प्राप्त हुई। जबकि, 2015 में इसे 2,600 स्टूडेंट के लिए 6 करोड़ रुपये मिले थे। इसे जम्मू और कश्मीर के स्टूडेंट की स्कॉलरशिप के लिए 2015 में ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन से भी 1.10 करोड़ रुपए प्राप्त हुए थे।
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