इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने प्रदेश में न्यायिक ढांचे के विस्तार में राज्य सरकार की देरी पर गंभीर नाराजगी व्यक्त की है। खंडपीठ ने 900 नई अदालतों और संबंधित पदों के सृजन के संबंध में दाखिल शपथपत्रों को असंतोषजनक बताया। न्यायालय ने उम्मीद जताई है कि सरकार अब इस मामले में ठोस कार्रवाई करेगी। मामले की अगली सुनवाई 11 दिसंबर को निर्धारित की गई है। न्यायालय ने वित्त विभाग के अपर मुख्य सचिव या सचिव स्तर के अधिकारी और प्रमुख सचिव, विधि (एलआर) को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से उपस्थित होकर अब तक उठाए गए कदमों पर संतोषजनक स्पष्टीकरण देने और संबंधित अभिलेख प्रस्तुत करने का आदेश दिया है। न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति राजीव भारती की खंडपीठ ने यह आदेश स्वतः संज्ञान लेकर दर्ज की गई एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया। हाईकोर्ट प्रशासन की ओर से अधिवक्ता ने स्पष्ट किया कि 17 अक्टूबर के आदेश में उल्लिखित एलआर का यह कथन तथ्यात्मक रूप से गलत है कि राज्य सरकार के 17 अप्रैल के पत्र का कोई उत्तर नहीं भेजा गया था। इसका उत्तर 9 मई को ही भेज दिया गया था। इस पर न्यायालय ने संबंधित अभिलेख शपथपत्र के माध्यम से प्रस्तुत करने का निर्देश दिया। राज्य सरकार ने न्यायालय को बताया कि उच्च स्तरीय समिति द्वारा लिए गए निर्णय के अनुसार, पहले चरण में 2693 पद/अदालतें स्वीकृत की जानी थीं, जिनमें से वर्तमान वित्तीय वर्ष में 900 पद स्वीकृत किए जाने थे। सरकार ने लगभग 72 करोड़ रुपये का बजट भी स्वीकृत होने की जानकारी दी। हालांकि, न्यायालय ने इस पर गंभीर असंतोष व्यक्त करते हुए कहा कि अदालतें/पद अभी तक सृजित नहीं हुए हैं। केवल सैद्धांतिक रूप से वित्तीय भार को मंजूरी दी गई है, वह भी बिना कोई दस्तावेज संलग्न किए। न्यायालय ने यह भी उल्लेख किया कि वर्तमान वित्त वर्ष समाप्त होने में केवल पांच महीने शेष हैं। इसलिए सरकार को मामले की तात्कालिकता और महत्व को समझते हुए ठोस निर्णय लेने होंगे। आगे खबर डेस्क एडिटर में है
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