प्रसिद्ध लेखक अमीश त्रिपाठी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय पहुंचे। वहां उन्होंने कहा कि हम उस परंपरा से आते हैं जहां हम दूसरों पर हमला नहीं करते हैं, इसलिए हम एक महाशक्ति नहीं बल्कि विश्व गुरु की तरह बर्ताव करेंगे। हमें भारत की जड़ों और प्राचीन विरासत को समझने की आवश्यकता है। हम हमेशा एक समृद्ध सभ्यता और सांस्कृतिक रूप से मजबूत राष्ट्र थे, जो विविधता से परिपूर्ण था। काशी तमिल संगम इसी का उत्सव है। छात्रों के सवालों के दिए जवाब छात्रों के सवालों का जवाब देते हुए कहा कि जब हम एक विश्व शक्ति बनने की राह पर आगे बढ़ रहे हैं, तो हमें अपने पूर्वजों की तीन प्रमुख सीखों का पालन करना होगा। इसमें दृढ़ता से अपनी रक्षा करना, आत्मविश्वास के साथ व्यापार करना और अपनी अर्थव्यवस्था को विकसित करना, अच्छी चीजों से सीखते रहना, चाहे वे कहीं से भी हों। दैनिक भास्कर ने उन्होंने बात की पेश है रिपोर्ट… सवाल – काशी तमिल संगम में आप पहली बार आए। यहां आने का आपका अनुभव कैसा रहा और काशी से आपका क्या संबंध है? जवाब – काशी मेरे लिए कोई नया स्थान नहीं है। मैं मूलतः काशी का ही हूं। मेरे बाबा जी—पंडित बाबूलाल त्रिपाठी—बीएचयू में पढ़ाते थे। मेरे पिता, दादा जी, पूरा परिवार यहीं से जुड़ा है। हमारे यहां बड़े भाई को भी दादा कहा जाता है, और उनका भी जन्म यहीं हुआ था। काशी के लिए मुझे किसी खास कारण की ज़रूरत नहीं होती कोई भी बहाना मिले, मैं यहां चला आता हूं। कई बार लो-प्रोफाइल में आता हूं ताकि गंगा किनारे बैठकर थोड़ा लेखन कर सकूं। इस बार तमिल संगम के कार्यक्रम के कारण आया हूं। सवाल – हिंदी और तमिल—इन दोनों भाषाओं से आपका क्या कनेक्शन है? जावब – कनेक्शन तो भारत के सांस्कृतिक समन्वय का है। भाषा अलग हो सकती है, लेकिन दिल और आत्मा एक ही है। काशी शिवजी की नगरी है और मैंने तमिलनाडु में पढ़ाई की, जहां शिवभक्ति बहुत गहरी है। अगर आप चिदंबरम जाकर वहां की आस्था देखेंगे, तो दिल भर आएगा। भाषा अलग है, पर शिव जी और भारत माता हम सभी को जोड़ते हैं। सवाल – आपने ‘रामचंद्र सीरीज़’ लिखी। क्या काशी पर भी कोई पुस्तक लिखने का विचार है? जवाब – हाँ, काशी पर भी ज़रूर लिखना चाहूंगा। अभी मैं ऐतिहासिक काल पर आधारित काल्पनिक कथाएँ लिख रहा हूं। हाल ही में Chola Tigers प्रकाशित हुई है, जो सम्राट राजेंद्र चोल पर आधारित है। वे घोर शिवभक्त थे और कहा जाता है कि उन्होंने सोमनाथ मंदिर पर हुए पाप का प्रतिशोध लेने के लिए गजनी के खिलाफ एक तरह की सर्जिकल स्ट्राइक की थी। काशी पर भी शिव जी की कृपा हुई तो कहानी अवश्य आएगी। सवाल – एक पांडियन राजा ने काशी के विश्वनाथ मंदिर से जुड़ी कथा भी कही जाती है। क्या दोनों विश्वनाथ मंदिरों को जोड़कर कुछ लिखने की आपकी योजना है? सवाल – आपका सुझाव बहुत अच्छा है। अगर इस पर कुछ लिखा, तो आपको क्रेडिट जरूर दूंगा। कहानी यह है कि पांडियन राज्य में कन्नगी नाम की एक महिला के साथ अन्याय हुआ था। उनके तप और श्राप से वह शहर नष्ट हो गया। क्षमा-याचना के लिए पांडियन राजा काशी तक आए। हिमालय से पत्थर मंगाए गए, उन्हें गंगा में पवित्र किया गया और फिर लगभग 2000 किमी की यात्रा कर उन पत्थरों से मंदिर का पुनर्निर्माण हुआ। तब कन्नगी मां का श्राप शांत हुआ और शहर पुनः बस सका। कहानी अत्यंत रोमांचक है। इसे आधुनिक संदर्भ से जोड़कर एक कथा लिखी जा सकती है विचार अच्छा है।
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