सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि कानून को इंसानियत के आगे झुकना चाहिए। साथ ही बांग्लादेश डिपोर्ट की गई गर्भवती महिला और उनके बेटे को मानवीय आधार पर भारत लौटने की अनुमति दी। यह फैसला उस याचिका पर सुनवाई के दौरान आया, जिसमें बांग्लादेश डिपोर्ट किए गए परिवार को वापस भारत लाने की मांग की गई थी। चीफ जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच मामले की सुनवाई कर रही थी। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया- सरकार सुनाली और उनके बेटे को भारत आने देगी। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह अनुमति मानवीय आधार पर होगी और इससे नागरिकता से जुड़े मुद्दों पर सरकार का रुख प्रभावित नहीं होगा। दरअसल सुनाली खातून और परिवार को बांग्लादेशी होने का शक में जून में दिल्ली से हिरासत में लिया गया था। इसके बाद 27 जून को उन्हें सीमा पार बांग्लादेश भेज दिया गया था। कोर्ट इस मामले में आगे की कार्यवाही 10 दिसंबर को करेगी, जिसमें परिवार के अन्य सदस्यों की वापसी पर सुनवाई करेगी। क्या है पूरा मामला… कोर्ट ने बंगाल सरकार को देखभाल करने का निर्देश दिया सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि सुनाली को दिल्ली से हिरासत में लिया गया था, इसलिए उन्हें दिल्ली ही लाया जाएगा। इस पर याचिकाकर्ता वकीलों कपिल सिब्बल और संजय हेगड़े ने अनुरोध किया कि उन्हें पिता भोदू शेख के घर, बीरभूम भेजा जाए। अदालत ने यह मांग मान ली। कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार को आदेश दिया कि सुनाली और उनके बच्चे की पूरी देखभाल की जाए। बीरभूम जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी को डिलीवरी समेत सभी मेडिकल सुविधाएं मुफ्त मुहैया कराने के निर्देश दिए गए। टीएमसी बोली- गरीब परिवार के लिए बड़ी जीत टीएमसी ने इसे गरीब परिवार के लिए बड़ी जीत बताया और सभी समर्थकों का धन्यवाद किया। टीएमसी नेता समीरुल इस्लाम ने कहा कि सुनाली को कुछ महीने पहले सिर्फ इसलिए बांग्लादेश भेज दिया गया था क्योंकि वह बंगाली बोलती थी। यह दिखाता है कि गलत पहचान की वजह से एक गरीब महिला को कितना बड़ा नुकसान और परेशानी झेलनी पड़ी।
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