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श्रीकल्कि धाम सनातन-संस्कृति और आध्यात्म का केंद्र बनेगा:सुधांशु महाराज बोले- भारत आर्थिक-वैज्ञानिक प्रगति कर रहा, मोदी की नीति से देश आगे बढ़ा

संभल के थाना ऐंचौड़ा कम्बोह गांव क्षेत्र स्थित श्रीकल्कि धाम में मंगलवार को दूसरे दिन की श्रीकल्कि कथा में विश्व जागृति मिशन के सुधांशु महाराज शामिल हुए। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि जगद्गुरु रामभद्राचार्य द्वारा संभल में की जा रही कल्कि कथा इस पावन धाम और तीर्थ धाम के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण है। महाराज ने बताया कि इस कथा के माध्यम से पूरे विश्व में यह संदेश जा रहा है कि आने वाले समय में यह स्थान अध्यात्म और संस्कृति का एक प्रमुख केंद्र बनेगा। उन्होंने संभल के प्राचीन भारतीय कथाओं में वर्णित महत्व के पुनरुत्थान को सनातन धर्म के श्रेष्ठ उदय काल के रूप में देखा। राम मंदिर के पूर्ण होने के साथ ही, देश के प्रधानमंत्री, संत और विभिन्न प्रदेशों के मंत्री भी इस स्थान पर पहुंच रहे हैं, जो सनातन संस्कृति के वैश्विक विस्तार को दर्शाता है। सुधांशु महाराज ने कहा कि वर्तमान में युद्ध और अशांति के दौर में, यहां से शांति के फूल खिलने की एक नई उम्मीद दिखाई देती है। उन्होंने जोर दिया कि यह स्थान अध्यात्म, ध्यान विद्या, संस्कार और संस्कृति का केंद्र बनेगा, और निश्चित रूप से एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल के रूप में विकसित होगा। यह समय भारत के अध्यात्म और ध्यान विद्या का है, जहां इतिहास बन रहा है और उसे बनाने वाले भी मौजूद हैं। भारत अपनी परंपराओं के अनुरूप प्रगति की राह पर अग्रसर है। देश आर्थिक, ज्ञान-विज्ञान और विदेश नीति सहित विभिन्न क्षेत्रों में लगातार आगे बढ़ रहा है। इस प्रगति के कारण पूरे विश्व का ध्यान भारत की ओर केंद्रित हो रहा है। उन्होंने देश के प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री को उनकी रणनीतियों के लिए बधाई दी, जिनके कारण भारत वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बना रहा है। भगवा ध्वज, जिसे सनातन ध्वज के रूप में देखा जाता है, अब आसमान की नई बुलंदियों को छू रहा है। राम मंदिर में भी यह ध्वज ऊंचा उठा है। उन्होंने टिप्पणी की कि जब कोई बड़ी उन्नति होती है, तो कुछ लोगों को स्वाभाविक रूप से ईर्ष्या होती है, और उनकी आलोचनाएं इसी का परिणाम हैं। सुधांशु महाराज ने कहा कि जो लोग सनातन संस्कृति को नहीं समझते, वे ही इसकी आलोचना करते हैं। सनातन संस्कृति ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ (सभी सुखी हों) के सिद्धांत पर आधारित है और सभी के कल्याण की कामना करती है। इसमें सुबह की प्रार्थना में भी दूसरों के लिए सुख मांगने की भावना निहित है। उन्होंने कहा कि सनातन धर्म की इन उच्च भावनाओं को न जानने और न समझने के कारण ही कुछ लोग विभिन्न प्रकार की बातें करते हैं और इसका विरोध करते हैं।


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