जम्मू-कश्मीर में तीन दशकों से अधिक समय से लंबित एक संवेदनशील मामले में CBI ने सोमवार को श्रीनगर से एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया है। यह गिरफ्तारी 1989 में तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबैया सईद के अपहरण से जुड़े मामले में हुई है। गिरफ्तार किए गए व्यक्ति की पहचान शफात अहमद शुंगलू के रूप में हुई है, जिसे गवाहों के बयान और स्वयं रुबैया सईद के अदालत में दिए गए बयानों के आधार पर आरोपपत्र में नामित किया गया था।
सूत्रों के अनुसार, रुबैया सईद उस दिन लाल चौक स्थित अस्पताल से अपने नवगाम स्थित घर लौट रही थीं, जहां से रोज़ाना की तरह उनकी आवाजाही होती थी। इसी दौरान रास्ते में उनका अपहरण कर लिया गया। उनकी गुमशुदगी के लगभग दो घंटे बाद मुफ्ती मोहम्मद सईद के पास एक अज्ञात व्यक्ति का फ़ोन आया, जिसने अपहरण की पुष्टि की और अपनी राजनीतिक-सुरक्षा मांगों का संकेत दिया।
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जांच एजेंसियों ने इस मामले को जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) से जोड़ते हुए बताया है कि यह पूरा ऑपरेशन अलगाववादी संगठन द्वारा अंजाम दिया गया था। उस समय JKLF की कमान यासीन मलिक के हाथों में थी और वही इस अपहरण का मुख्य संचालक बताया जाता है। वर्तमान में यासीन मलिक तिहाड़ जेल में बंद है, जहाँ उसे मई 2023 में एक विशेष NIA अदालत ने आतंकी फंडिंग केस में दोषी ठहराते हुए सज़ा सुनाई थी।
हम आपको याद दिला दें कि अपहरणकर्ताओं की मांग पर केंद्र सरकार ने रुबैया सईद की रिहाई के बदले पाँच क़ैद आतंकियों को रिहा करने का फैसला किया था। यह निर्णय उस समय काफी विवादित रहा था और बाद के वर्षों में इसके दूरगामी प्रभाव सामने आए थे। जिन आतंकियों को छोड़ा गया था, उनमें से कुछ बाद में वर्ष 1999 में इंडियन एयरलाइंस की फ़्लाइट IC-814 के अपहरण में शामिल पाए गए थे, जिसने देश को एक और बड़े संकट में धकेल दिया था।
हम आपको बता दें कि उस समय जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे फ़ारूक़ अब्दुल्ला ने उक्त रिहाई का कड़ा विरोध किया था। दिलचस्प बात यह है कि फ़ारूक़ अब्दुल्ला 1999 के कंधार विमान अपहरण के दौरान भी मुख्यमंत्री थे, जब भारत सरकार को तीन आतंकियों को रिहा करना पड़ा था।
NC नेता और फ़ारूक़ अब्दुल्ला के बेटे उमर अब्दुल्ला ने हाल ही में इन घटनाओं को याद करते हुए कहा, “यह दूसरी बार था जब मेरे पिता को मजबूरी में लोगों को रिहा करना पड़ा था।” उन्होंने आगे कहा था कि रुबैया सईद की रिहाई के बाद IC-814 के अपहृत यात्रियों के परिवारों ने इसी घटना को एक उदाहरण के रूप में रखा था। उमर अब्दुल्ला ने कहा था, “लोगों ने पूछा कि जब एक गृह मंत्री की बेटी के लिए आतंकियों को छोड़ा जा सकता है, तो हमारे परिवार कम कीमती क्यों? क्या देश में सिर्फ वही बेटी महत्वपूर्ण थी?” उनके अनुसार, 1989 का यह फैसला 1999 के कंधार संकट के दौरान की गई मांगों को आकार देने वाला एक निर्णायक कारक बना था।
देखा जाये तो इस ऐतिहासिक मामले में CBI की ताज़ा गिरफ्तारी उन अधूरी कानूनी प्रक्रियाओं को पूरा करने की दिशा में भी एक कदम है, जिनके कारण तीन दशकों से न्याय की दिशा में सवाल उठते रहे हैं। वहीं, यह गिरफ्तारी उस उथल-पुथल भरे दौर की फिर से याद दिलाती है, जिसने कश्मीर और राष्ट्रीय सुरक्षा की नीतियों को लंबे समय तक प्रभावित किया।
देखा जाये तो रुबैया सईद अपहरण मामला भारत की आतंक-नीति, राजनीतिक दबावों और संकट-प्रबंधन के इतिहास का एक अहम अध्याय है। इस एक घटना ने न सिर्फ तत्कालीन सरकार के निर्णय लेने की क्षमता पर प्रश्न उठाए, बल्कि बाद के वर्षों में हुए कंधार संकट जैसे प्रसंगों को भी गहरी तरह प्रभावित किया। यह सच है कि किसी भी सरकार के सामने मानव जीवन बचाना सर्वोच्च प्राथमिकता होती है, लेकिन आतंकियों के दबाव में लगातार रिहाइयाँ अंततः सुरक्षा तंत्र और राष्ट्रीय दृढ़ता को कमजोर करती हैं।
CBI की ताज़ा कार्रवाई इस तथ्य की याद दिलाती है कि न्याय देर से सही, पर होना ज़रूरी है— विशेषकर उन मामलों में, जिन्होंने देश की सुरक्षा, राजनीति और नैतिक विवेक को गहराई से प्रभावित किया हो। यह गिरफ्तारी केवल एक कानूनी कदम नहीं, बल्कि उन निर्णयों के पुनर्मूल्यांकन का अवसर भी है, जिनके परिणाम आज तक देश महसूस कर रहा है।
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