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Prabhasakshi NewsRoom: Bhagwat ने Modi को बताया Global Leader, कहा- जब PM बोलते हैं तो पूरी दुनिया उन्हें सुनती है

पुणे से लेकर अयोध्या तक हाल के दिनों में जो दृश्य सामने आए हैं उन्होंने आरएसएस और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रिश्तों को लेकर नई चर्चाओं को जन्म दिया है। एक ओर, आरएसएस के शताब्दी कार्यक्रमों की श्रृंखला में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने खुले तौर पर प्रधानमंत्री की वैश्विक छवि की तारीफ की तो वहीं अयोध्या में राम मंदिर में ध्वजारोहण समारोह के दौरान मोदी ने भागवत को सम्मान देते हुए पीछे हटकर उन्हें आगे बढ़ने दिया। इन दोनों घटनाओं को राजनीतिक गलियारों में भाजपा और संघ के बीच बढ़ती निकटता के संकेत के रूप में देखा जा रहा है।
हम आपको बता दें कि पुणे में सोमवार को आयोजित समारोह को संबोधित करते हुए मोहन भागवत ने कहा कि “जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बोलते हैं, तो दुनिया के नेता ध्यान से सुनते हैं।” उन्होंने कहा कि यह बदलाव इसलिए संभव हुआ है क्योंकि भारत की ताकत “उन जगहों पर प्रकट होने लगी है जहां उसे उचित रूप से प्रकट होना चाहिए।” भागवत के भाषण में भारत की वैश्विक भूमिका पर विशेष जोर था। उनका कहना था कि जब भारत आगे बढ़ता है, तो दुनिया में संघर्ष कम होते हैं और शांति स्थापित होती है। देखा जाये तो यह कथन केवल सांस्कृतिक आत्मविश्वास नहीं, बल्कि मोदी युग की विदेश नीति के प्रति संघ की स्वीकृति का संकेत भी माना जा रहा है।
हम आपको यह भी बता दें कि पिछले सप्ताह अयोध्या में राम मंदिर में ध्वज–वंदन समारोह के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने एक ऐसा व्यवहार प्रदर्शित किया, जो उनके सामान्य राजनीतिक व्यक्तित्व से अलग था। जब मोदी और भागवत मंदिर में प्रवेश कर रहे थे, तब प्रधानमंत्री ने एक कदम पीछे होकर भागवत को आगे बढ़ने दिया था। यह दृश्य इसलिए भी उल्लेखनीय था क्योंकि मोदी की छवि प्रायः ‘मुख्य चेहरा’ और ‘प्रमुख केंद्र’ के रूप में देखी जाती है।
धर्म ध्वज के आरोहण के समय भी मोदी ने भागवत को अपने साथ खड़ा किया और ध्वज उठाने वाले लीवर को दोनों ने एक साथ घुमाया था। यह “संघ प्रमुख को उचित सम्मान” देने का प्रयास था, लेकिन राजनीतिक हलकों में इसे भाजपा–संघ संबंधों में जमी धूल झाड़ने की कोशिश के रूप में देखा गया था। दरअसल, पिछले कुछ वर्षों में कई मुद्दों पर भाजपा नेतृत्व और संघ के बीच असहमति की खबरें आती रही हैं— विशेषकर पार्टी अध्यक्ष के चुनाव में हो रही देरी को अक्सर इस टकराव का सूचक माना गया। पार्टी के अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि मोदी के इस सम्मान–संकेत को संघ नेतृत्व ने सकारात्मक रूप में लिया है और अब भाजपा में नए अध्यक्ष की नियुक्ति जल्द तय हो सकती है।
भाजपा और संघ की सार्वजनिक निकटता ऐसे समय में सामने आई है, जब संगठनात्मक और राजनीतिक स्तर पर भाजपा के लिए नए संतुलन और नए नेतृत्व–निर्णयों की जरूरत बढ़ रही है। शताब्दी वर्ष में संघ भी अपने मूल उद्देश्यों— संगठन, संवाद और राष्ट्र–निर्माण पर पुनः फोकस कर रहा है। ऐसे में मोदी और भागवत की एक ही फ्रेम में बढ़ती उपस्थिति केवल औपचारिकता नहीं, बल्कि आने वाले समय के राजनीतिक समीकरणों का संकेत हो सकती है।
देखा जाये तो आरएसएस और प्रधानमंत्री मोदी के बीच बढ़ती सार्वजनिक निकटता एक राजनीतिक संदेश भी है। भागवत का मोदी की वैश्विक प्रतिष्ठा का सम्मान करना और मोदी का अयोध्या में उन्हें आगे रखना और उनके प्रति विनम्रता दिखाना, दोनों संस्थाओं के लिए परस्पर निर्भरता की व्यावहारिक स्वीकृति भी है। परंतु सवाल यह है कि यह “सम्मान–डिप्लोमैसी” महज़ प्रतीक है या किसी गहरे पुनर्संतुलन का संकेत है।
पुणे के कार्यक्रम में भागवत के संबोधन की अन्य बड़ी बातों का जिक्र करें तो आपको बता दें कि भागवत ने कहा कि किसी को जयंती या शताब्दी समारोह जैसे महत्वपूर्ण अवसरों का जश्न मनाने के बारे में नहीं सोचना चाहिए, बल्कि दिए गए कार्य को निर्धारित समय के भीतर पूरा करने का लक्ष्य रखना चाहिए। आरएसएस प्रमुख ने कहा, “संघ यही करता आया है। संघ ने चुनौतियों का सामना करते हुए और कई तूफानों से जूझते हुए भले ही 100 साल पूरे कर लिए हैं, लेकिन अब समय आ गया है कि हम आत्मचिंतन करें कि पूरे समाज को एकजुट करने के काम में इतना समय क्यों लगा।” 
आरएसएस के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार के बलिदानों पर प्रकाश डालते हुए भागवत ने कहा कि संघ के स्वयंसेवकों ने उन्हें दिए गए मिशन को पूरा करने की अपनी यात्रा कई बाधाओं और चुनौतियों के बीच शुरू की थी। उन्होंने संघ के शुरुआती महीनों और वर्षों का जिक्र करते हुए कहा कि इस बात की कोई गारंटी नहीं थी कि उनके काम से सकारात्मक परिणाम मिलेंगे। भागवत ने कहा, “उन्होंने (संघ के स्वयंसेवकों ने) सफलता के बीज बोए और अपना जीवन समर्पित करके परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त किया। हमें उनका आभारी होना चाहिए।’’ 
सभा को एक किस्सा सुनाते हुए आरएसएस प्रमुख ने कहा कि एक बार उनसे कहा गया था कि संघ 30 साल देरी से आया है। भागवत ने कहा, “मैंने जवाब दिया कि हम देरी से नहीं आए। बल्कि, आपने हमें देरी से सुनना शुरू किया।” उन्होंने कहा कि जब संघ संवाद और सामूहिक कार्य की ताकत की बात करता है, तो इसका तात्पर्य पूरे समाज से होता है। भागवत ने कहा, “हमारी नींव विविधता में एकता में निहित है। हमें साथ मिलकर चलना होगा और इसके लिए धर्म आवश्यक है।” उन्होंने कहा, “भारत में सभी दर्शन एक ही स्रोत से उत्पन्न हुए हैं। चूंकि, सब कुछ आपस में जुड़ा हुआ है, इसलिए हमें सद्भाव के साथ आगे बढ़ना होगा।”


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