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हिमालय की तलहटी में आग लगने से वन विभाग सक्रिय:वन्य जीवों के शिकारियों के सक्रिय होने की आशंका, गश्ती टीम भेजी

उच्च हिमालयी क्षेत्रों में ठंड बढ़ने के कारण राज्य पशु कस्तूरी मृग और हिम तेंदुए बुग्यालों में आ रहे हैं। जहां इन्हें चरने और शिकार करने के लिए बेहतर अवसर मिलते हैं। कस्तूरी मृग और हिम तेंदुए के शिकार के लिए शिकारी भी सक्रिय हो गए हैं। उच्च हिमालयी क्षेत्र के बुग्याल (घास के मैदान) मुख्य रूप से दुर्लभ कस्तूरी मृग, हिम तेंदुआ, भालू, भरल, मोनाल सहित अन्य पशु पक्षियों का निवास स्थल होते है। ऊपरी क्षेत्र में बर्फबारी या पाला गिरने पर ठंड और भोजन की कमी होने पर यह पशु-पक्षी भोजन की तलाश में निचले इलाकों (घास के मैदान) की ओर आते हैं। वन्य जीव तस्कर इन पशु, पक्षियों का शिकार करने के लिए जंगलों में आग लगा देते हैं। आग के डर से जब वन्य जीव भटकते हैं तो उन्हें आसानी से शिकार बना लिया जाता है। शिकारियों के सक्रिय होने की आशंका को देखते हुए वन महकमा भी सक्रिय हो गया है। वन विभाग ने आग पर नियंत्रण और गश्त के लिए अस्कोट और धारचूला रेंज के अधिकारियों को निर्देश दिए हैं। डीएफओ ने इस तरह की घटनाओं पर अंकुश लगाने में सहयोग के लिए आईटीबीपी और एसएसबी को भी पत्र लिखा है। पहले जानिए शिकारी क्यों करते हैं इनका शिकार… शक्तिवर्धक दवा बनाने के काम में आता है कस्तूरी
कस्तूरी मृग की सबसे बड़ी विशेषता नर मृग की नाभि में कस्तूरी होता है। कस्तूरी का प्रयोग शक्तिवर्धक दवा के रूप में किया जाता है। यह काफी महंगी होती है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी मुंह मांगी कीमत मिलती है। पुरानी सर्दी, जुकाम, निमोनिया इसके सूंघने से ठीक हो जाता है। कस्तूरी का इस्तेमाल खाद्य पदार्थों में स्वाद बढ़ाने के लिए किया जाता है। साथ ही परफ्यूम बनाने के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। हिम तेंदुए के शिकार के मुख्य कारण
हिम तेंदुओं के खूबसूरत फर के लिए उनका शिकार किया जाता है। जिनका उपयोग कालीनों और अन्य सजावटी सामानों के लिए होता है। उनकी हड्डियों और शरीर के अन्य अंगों की भी पारंपरिक दवाओं में अत्यधिक मांग है। इस जीव के अंगों को विभिन्न पारंपरिक औषधियों में इस्तेमाल किया जाता है। जिससे उनकी मांग बनी रहती है। राज्य पशु का शिकार करने पर 3 साल की जेल
कस्तूरी मृग का शिकार करना वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत एक दंडनीय अपराध है। जिसके लिए तीन साल तक की कैद और 25 हजार का जुर्माना हो सकता है। पहली बार शिकार करने पर कम से कम 3 साल की कैद और 25 हजार का जुर्माना लग सकता है और यदि यह अपराध दोबारा किया जाता है तो सजा की अवधि और जुर्माना बढ़ सकता है। वहीं हिम तेंदुए का शिकार करने पर सजा वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत होती है, जिसमें 3 से 7 साल तक की कैद और 10 हजार रुपए तक का जुर्माना लग सकता है। हालांकि, कई मामलों में सजा की दर कम है। हिम तेंदुआ को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के अनुसूची I में रखा गया है, जो इसे उच्चतम स्तर की सुरक्षा प्रदान करता है। शिकार को रोकने के लिए सरकार उठा रही कदम
सरकार कस्तूरी मृग और हिम तेंदुए के शिकार को रोकने के लिए विभिन्न उपाय कर रही है, जिनमें प्रोजेक्ट स्नो लेपर्ड (हिम तेंदुआ परियोजना) और कस्तूरी मृग परियोजना जैसी विशेष परियोजनाएं शामिल हैं। इन प्रयासों में कानून और गश्त, सामुदायिक भागीदारी और जागरूकता अभियान जैसे कदम उठाए जा रहे हैं। इसके अलावा सरकार वन्यजीव अभयारण्य और राष्ट्रीय उद्यान स्थापित कर रही है और शिकार विरोधी दस्ते तैनात कर रही है। पंचाचूली और छिपलाकोट के बुग्यालों में आग
पिथौरागढ़ जिले के पंचाचूली और छिपलाकोट के बुग्याल रविवार से आग की चपेट में हैं। सूखी घास में आग लगने से काला धुआं उठ रहा है। बुग्यालों में आग लगने से जहां एक ओर वन्य जीवों का जीवन संकट में आ गया है। वहीं दूसरी ओर पर्यावरण को भी नुकसान पहुंच रहा है। इन बुग्यालों में हर साल शीतकाल में आग लगने की घटनाएं होती रहती हैं। गश्ती टीम भेजने के निर्देश
पिथौरागढ़ के डीएफओ आशुतोष सिंह ने बताया कि हिमालयी क्षेत्र के बुग्यालों में आग लगने की जानकारी मिलते ही अस्कोट और धारचूला रेंज के अधिकारियों को गश्ती टीम भेजने के निर्देश दिए गए हैं। इन क्षेत्रों में शिकारियों के सक्रिय होने की आशंका को देखते हुए इस तरह की घटनाओं को सख्ती से रोका जाएगा। इसके लिए आईटीबीपी और एसएसबी को भी सहयोग के लिए पत्र लिखा गया है।


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