बलरामपुर के नवस्थापित मां पाटेश्वरी विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के नए पाठ्यक्रम में सुंदरकांड और हनुमान चालीसा को शामिल किया गया है। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रविशंकर सिंह ने यह महत्वपूर्ण जानकारी दी। यह कदम शिक्षा के साथ-साथ सांस्कृतिक और आध्यात्मिक चेतना को समृद्ध करने की दिशा में उठाया गया है। कुलपति प्रो. सिंह ने बताया कि विश्वविद्यालय की स्थापना 15 मार्च 2024 को देवीपाटन मंदिर की अधिष्ठात्री मां पाटेश्वरी के नाम पर की गई थी। इसकी स्थापना मुख्यमंत्री द्वारा देवीपाटन मंडल की पावन भूमि पर की गई है। स्थापना के तुरंत बाद पाठ्यक्रम समिति गठित की गई थी। हिंदी विभाग के संयोजक प्रो. शैलेंद्र कुमार मिश्र ने सुझाव दिया था कि यह विश्वविद्यालय केवल शिक्षण का केंद्र न होकर क्षेत्र की आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक चेतना का केंद्र भी बने। इसी सोच के साथ पाठ्यक्रम में देवीपाटन मंडल के साहित्यकारों और यहां उपजे साहित्य को स्थान दिया गया है। कुलपति ने कहा कि सुंदरकांड और हनुमान चालीसा जैसे लोकमानस में गहराई से रचे-बसे ग्रंथों को पाठ्यक्रम में शामिल करने का निर्णय प्रधानमंत्री के सांस्कृतिक विरासत संरक्षण संबंधी भाव के अनुरूप है। उन्होंने बताया कि देवीपाटन मंडल, जिसमें गोंडा, बहराइच, बलरामपुर और श्रावस्ती शामिल हैं, अवध क्षेत्र का हिस्सा है और यहां अवधी भाषा की समृद्ध परंपरा रही है। इसी को ध्यान में रखते हुए स्नातकोत्तर (PG) के हिंदी पाठ्यक्रम में अब अवधी भाषा और साहित्य को विशेष स्थान दिया गया है। विश्वविद्यालय ने स्थानीय साहित्यकारों के योगदान को भी पाठ्यक्रम में शामिल करने की पहल की है, जिन्हें दूर-दराज के क्षेत्रों में पहचान मिली, लेकिन स्थानीय स्तर पर वे उतने परिचित नहीं हो सके। विश्वविद्यालय ऐसे सभी साहित्यकारों को योग्य सम्मान दिलाना चाहता है। सुंदरकांड और हनुमान चालीसा को शामिल करने के पीछे धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी जुड़ा है। प्रो. सिंह ने कहा कि 500 वर्षों के संघर्ष के बाद प्रभु श्रीराम का भव्य राष्ट्र मंदिर स्थापित हुआ है। जहां प्रभु श्रीराम होंगे, वहां उनके अनन्य भक्त हनुमान जी का स्मरण स्वाभाविक है। तुलसीदास कृत साहित्य पहले से ही पाठ्यक्रम का हिस्सा है, लेकिन हनुमान जी के समर्पण, शक्ति और चरित्र के विस्तृत वर्णन के कारण सुंदरकांड और हनुमान चालीसा को भी विशेष स्थान दिया गया है। कुलपति ने कहा कि यह निर्णय भक्तिभाव, सांस्कृतिक विरासत और साहित्यिक समृद्धि तीनों को साथ लेकर चलने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। विश्वविद्यालय का लक्ष्य है कि स्थानीय विद्यार्थियों, विशेषकर छात्र-छात्राओं में, अपनी भाषा, परंपरा और साहित्य के प्रति गर्व और सृजनशीलता को विकसित किया जाए। स्थानीय भाषाओं और साहित्यकारों को बढ़ावा देना इसका मुख्य उद्देश्य है। मां पाटेश्वरी विश्वविद्यालय की यह पहल क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत को नई पहचान देने और नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ने का प्रयास मानी जा रही है।
https://ift.tt/inv7RS3
🔗 Source:
Visit Original Article
📰 Curated by:
DNI News Live

Leave a Reply