प्रदेश सरकार में आयुष मंत्री दयाशंकर मिश्र उर्फ दयालु को चुनाव आचार संहिता के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट से राहत मिली है। कोर्ट ने उनके खिलाफ वाराणसी की अदालत में इसी आरोप में चल रहे मुकदमे की कार्यवाही रद्द कर दी है। कोर्ट ने कहा कि जिन धाराओं में मुकदमा दर्ज़ किया गया है, जांच में उससे संबंधित कोई तथ्य सामने नहीं आया। ऐसे में मुकदमा जारी रखना न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा। यह आदेश न्यायमूर्ति दिनेश पाठक ने दयाशंकर की याचिका पर दिया है। मामला 2012 के विधानसभा चुनाव का है। उस चुनाव में दया शंकर वाराणसी दक्षिणी विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याशी थे। 11 जनवरी 2012 को सब इंस्पेटर नरेंद्र सिंह ने क्षेत्र में निरीक्षण के दौरान बिजली के खंभे पर बड़ा होर्डिंग लगा देखा, जिस पर दयाशंकर का चुनाव प्रचार था। इस मामले में थाना कोतवाली में पुलिस ने आईपीसी की धारा 171 सी और लोक संपत्ति क्षति निवारण अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज़ किया। पुलिस ने जांच के बाद 12 मई 2012 को आरोप पत्र दाखिल कर दिया, जिस पर कोर्ट ने संज्ञान ले लिया। दयाशंकर ने चार्ज शीट और संज्ञान आदेश को याचिका में चुनौती दी। कहा गया कि याची के खिलाफ बिजली विभाग या नगर निगम ने शिकायत दर्ज़ नहीं कराई है। किसी विपक्षी दल के प्रत्याशी या आम जनता ने भी शिकायत नहीं की। जांच अधिकारी ने जांच में ऐसे कोई तथ्य एकत्र नहीं किए जिससे कि याची की भूमिका साबित की जा सके। यह भी साबित नहीं किया गया कि होर्डिंग लगाने से बिजली सप्लाई में कोई बाधा पहुंची या नुकसान हुआ। जांच अधिकारी ने सीजर मेमो भी तैयार नहीं किया। अपर शासकीय अधिवक्ता ने याचिका का विरोध किया। कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद कहा कि जो आरोप लगाए गए हैं, उनसे प्रथम दृष्टया कोई संज्ञेय अपराध नहीं बनता है, जिससे कि ट्रायल का सामना करने के लिए याची को सम्मन किया जाए। जांच अधिकारी द्वारा एकत्र तथ्यों से प्राथमिकी में लगाए गए आरोप साबित नहीं होते हैं। इस आधार पर मुकदमा चलाना न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा। इसी के साथ कोर्ट ने मुकदमे की समस्त कार्यवाही, चार्जशीट और संज्ञान आदेश रद्द कर दिया।
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