वाराणसी ज्ञानवापी के सबसे पुराने और अहम केस में निर्णायक मोड़ में नई याचिकाएं बाधा बनती जा रही है। कभी वादी बनने की अपील तो कभी वादमित्र को हटाने की याचिका ने मुख्य मुद्दे की सुनवाई को फिर भटका दिया है। एक याचिका खारिज होने के बाद मूलवाद के पहले वादी हरिहर पांडे की बेटियों ने पुनर्विचार याचिका दायर कर बहस शुरू कर दी है। ज्ञानवापी के वर्ष 1991 के पुराने मुकदमे में शुक्रवार को सिविल जज (सीनियर डिवीजन फास्टट्रैक) भावना भारती की कोर्ट में सुनवाई होगी। वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी की ओर से हुई बहस के बाद कोर्ट ने आज की तारीख तय की थी जबकि इस मामले में कई दिन से दोनों पक्ष अपनी दलील दे रहे हैं। पिछली तिथि पर तीनों बेटियों की ओर से अधिवक्ता ने एक अर्जी दी थी। दाखिल वादमित्र को हटाने संबंधित अर्जी को खारिज कर दिया गया, लेकिन पक्षकार बनने संबंधित अर्जी में बेटियों की ओर से संशोधन करना है। कहा गया कि वादी संख्या पांच, जो एक प्राइवेट ट्रस्ट है, उसके सचिव स्वयं वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी ही हैं। याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि विजय शंकर इस वाद में अनावश्यक और अनुचित पक्षकार हैं। इन्हें हटाना बहुत आवश्यक है। वादमित्र के शासकीय कार्यकाल के दौरान भी उनकी शैली पर सवाल उठे थे और इस मामले में भी अपने हित साधने के लिए अनावश्यक रूप से विधि का दुरुपयोग करते हुए वादमित्र नियुक्त कराया गया। इस प्रकार पक्षकार बनने संबंधित अर्जी में संशोधन करते हुए कुछ निर्देश जोड़ने की गुहार लगाई गई है। इस पर वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी ने आपत्ति दाखिल कर दी है। इस मामले में बेटियों की ओर से बहस पूरी कर ली गई है। वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी की ओर से पिछली तिथि के बाद बहस शुरू की गई। वादमित्र ने कहा कि वादी रहे हरिहर पांडेय के आवेदन के आधार पर 11 अक्टूबर 2019 को वादपत्र में संशोधन के ज़रिये विजय शंकर रस्तोगी को वादमित्र और वादी संख्या पांच बनाया गया है। हरिहर पांडेय की वर्ष 2023 में मृत्यु हुई थी। हालांकि वर्ष 2023 में उन्होंने अपने दो पुत्रों को वादी संख्या छह और सात बनाने की अर्जी दी थी। इस दौरान एक बार भी किसी ने विरोध नहीं किया।
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