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Prabhasakshi NewsRoom: White House के पास हुए हमले के चलते दुनियाभर में रह रहे Afghan Refugees की मुश्किलें बढ़ने वाली हैं

अमेरिका की राजधानी वॉशिंगटन डीसी तब दहल उठी जब डाउनटाउन क्षेत्र में व्हाइट हाउस से कुछ ही दूरी पर घात लगाकर किये गये हमले में नेशनल गार्ड के दो जवान गंभीर रूप से घायल हो गये। सुरक्षा बलों ने हमलावर पर जवाबी कार्रवाई करते हुए उसे घायल कर दिया और उसके बाद उसे हिरासत में ले लिया गया। होमलैंड सिक्योरिटी विभाग ने संदिग्ध की पहचान 29 वर्षीय अफ़ग़ान नागरिक रहमानुल्लाह लाकनवल के रूप में की है जो 2021 में ऑपरेशन ऐलायज़ वेलकम कार्यक्रम के तहत अमेरिका आया था। हम आपको याद दिला दें कि यह वही कार्यक्रम था जिसके माध्यम से अफ़ग़ानिस्तान युद्ध में अमेरिकी सेनाओं की मदद करने वाले हजारों अफ़गानों को तालिबान की संभावित प्रताड़ना से बचाने के लिए अमेरिका लाया गया था।
इस बीच, इस गोलीबारी के बाद डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने अफ़ग़ान नागरिकों से संबंधित सभी आव्रजन अनुरोधों को तत्काल और अनिश्चितकाल के लिए रोकने की घोषणा की है। फ़िलहाल घायल दोनों सैनिक गंभीर स्थिति में अस्पताल में भर्ती हैं, जबकि ट्रंप प्रशासन ने राजधानी में अतिरिक्त 500 नेशनल गार्ड जवानों की तैनाती का आदेश दिया है।

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देखा जाये तो वॉशिंगटन डीसी में व्हाइट हाउस के निकट दो नेशनल गार्ड जवानों पर हुआ यह हमला केवल एक स्थानीय सुरक्षा घटना नहीं है; इसके प्रभाव अमेरिका की आंतरिक राजनीति, आव्रजन नीति, सुरक्षा ढांचे और अंतरराष्ट्रीय संबंधों खासकर अफ़ग़ानिस्तान पर प्रत्यक्ष रूप से पड़ेंगे। इस घटना ने न केवल राजधानी की सुरक्षा पर सवाल उठाए हैं, बल्कि अमेरिका द्वारा पिछले वर्षों में अपनाई गई मानवीय नीतियों को भी राजनीतिक बहस के केंद्र में ला दिया है।
घटना के तुरंत बाद डोनाल्ड ट्रंप द्वारा इसे “आतंकवाद” करार देना और 2021 व 2022 में आए सभी अफ़गानों की पुनः जांच करने का ऐलान यह स्पष्ट करता है कि यह हमला अमेरिकी राजनीति में आव्रजन मुद्दे को और अधिक तीखा बना देगा। माना जा रहा है कि इस घटना का ‘ऑपरेशन ऐलायज़ वेलकम’ पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ेगा। ‘ऑपरेशन ऐलायज़ वेलकम’ कार्यक्रम बाइडेन प्रशासन ने अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी वापसी के बाद शुरू किया था, मानवीय दृष्टि से एक आवश्यक प्रयास माना गया था। हजारों ऐसे अफ़गान, जो अनुवादक, सहयोगी या साझेदार के रूप में अमेरिकी सेना के साथ काम कर चुके थे, तालिबान के खतरे के कारण अमेरिका लाए गए थे। अब इस हमले के बाद यही कार्यक्रम कटघरे में आ गया है और इसकी सुरक्षा जांच प्रक्रिया पर राजनीतिक हमला तेज होगा।
इसके अलावा, ट्रंप और उपराष्ट्रपति जे.डी. वेन्स द्वारा यह कहना कि घटना ने उनकी आव्रजन नीति को “सही साबित” किया, यह इस बात का संकेत है कि आने वाले हफ्तों और महीनों में इस घटना का उपयोग कठोर आव्रजन उपायों को उचित ठहराने के लिए किया जाएगा। इतिहास गवाही देता है कि अमेरिका में हर हिंसक घटना जिसमें विदेशी पृष्ठभूमि वाला व्यक्ति शामिल हो, उसका सीधा असर आव्रजन कानूनों पर पड़ता है— चाहे वह 9/11 के बाद की नीति हो या उससे पहले की।
साथ ही व्हाइट हाउस से कुछ ही दूरी पर सैन्य गश्ती दल को निशाना बनाना एक प्रतीकात्मक संदेश भी माना जा सकता है। अभी तक किसी संगठित आतंकी समूह की संलिप्तता नहीं पाई गई है, परंतु उच्च सुरक्षा वाले क्षेत्र में सफल घात लगाकर हमला, हमलावर द्वारा अकेले कार्रवाई करना, नेशनल गार्ड को लक्षित करना आदि बातें अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियों के लिए एक गंभीर चेतावनी हैं। सामरिक दृष्टि से इसका मतलब यह है कि अकेले हमलावर (Lone Wolf) हमलों का जोखिम अभी भी मौजूद है। हमलावर की मंशा स्पष्ट न होने के बावजूद, यह घटना यह संकेत देती है कि अमेरिकी प्रशासन को अब घरेलू सुरक्षा का नया आकलन करना होगा।
इसके अलावा, अफगान मूल के किसी व्यक्ति द्वारा ऐसा हमला होना सीधे तौर पर दोनों देशों के संबंधों को प्रभावित करेगा और यह असर कई स्तरों पर महसूस होगा। अमेरिका में बसे लाखों अफ़गान नागरिक पहले ही सामाजिक और राजनीतिक दबाव झेल रहे हैं। यह घटना उनके लिए परिस्थितियाँ और उत्पीड़न बढ़ा सकती है, चाहे वे कानूनी रूप से रह रहे हों या नहीं। इतिहास बताता है कि किसी एक व्यक्ति की हिंसा का असर पूरे समुदाय पर पड़ता है और यह घटना भी अपवाद नहीं होगी।
तालिबान सरकार अमेरिका में घटने वाली ऐसी घटनाओं पर अक्सर प्रतिक्रिया नहीं देती, परंतु यह घटना पश्चिमी देशों में अफ़ग़ान शरणार्थियों के प्रति बढ़ती नकारात्मक धारणा को मजबूत कर सकती है। इसका प्रत्यक्ष असर भविष्य में अफ़ग़ानों की पुनर्वास नीतियों पर पड़ेगा और संभव है कि यूरोपीय और अन्य देश भी शरणार्थी नीतियों की पुनः समीक्षा करें।
हम आपको बता दें कि ऑपरेशन ऐलायज़ वेलकम जैसा कार्यक्रम केवल अमेरिका ही नहीं, बल्कि कई पश्चिमी देशों के लिए एक मॉडल था। यदि इस कार्यक्रम की विश्वसनीयता पर सवाल उठता है, तो वैश्विक स्तर पर युद्धग्रस्त देशों के लिए पुनर्वास प्रयासों को समर्थक देशों में राजनीतिक विरोध का सामना करना पड़ेगा।
हमले के बाद 500 अतिरिक्त नेशनल गार्ड जवानों की तैनाती इस बात का संकेत है कि वॉशिंगटन डीसी में पहले से बढ़ी सैन्य उपस्थिति अब और कठोर होगी। लेकिन यह कदम कई संवैधानिक प्रश्न भी खड़ा करता है। जैसे- क्या राजधानी में सैन्य उपस्थिति बढ़ाना सुरक्षा का दीर्घकालिक समाधान है? क्या इसे राजनीतिक नियंत्रण के उपकरण के रूप में देखा जाएगा? क्या इससे नागरिक–सैन्य संबंधों में तनाव बढ़ेगा? देखा जाये तो वॉशिंगटन जैसे शहर, जो पहले ही राजनीतिक ध्रुवीकरण का केंद्र है, वहां सैन्य बलों की बढ़ती मौजूदगी कानून व्यवस्था पर प्रभाव डाल सकती है और नागरिक स्वतंत्रताओं को लेकर भी बहस तेज होगी।
बहरहाल, इस घटना से यह भी स्पष्ट है कि अकेले हमलावरों की पहचान और रोकथाम अमेरिकी सुरक्षा तंत्र के लिए चुनौती बनी रहेगी। आव्रजन नीतियों में कठोरता बढ़ेगी, चाहे वह सुरक्षा की दृष्टि से तर्कसंगत हो या राजनीतिक रूप से प्रेरित। अफ़ग़ान शरणार्थियों के पुनर्वास कार्यक्रम को भारी नुकसान होगा, जिसके अंतरराष्ट्रीय असर भी देखने को मिलेंगे। अमेरिका–अफ़ग़ानिस्तान संबंधों में अविश्वास बढ़ सकता है, खासकर ऐसे समय में जब मानवीय सहायता और संपर्क की आवश्यकता अधिक है। घटना के बाद ट्रंप का अफगानिस्तान को धरती पर एक नरक बताना दर्शाता है कि अफगानों के लिए यह घटना पूरी दुनिया में मुश्किलों का सबब बन सकती है।


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