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रामकलेवा के मधुर गीतों से गुलजार हुआ आचार्यपीठ लक्ष्मण किला:चुन-चुन कर कलेवा खिलाया, जी भर-भर के मधुर गीत सुनाए

सरयू तट स्थित आचार्यपीठ श्री लक्ष्मण किला राम कलेवा महोत्सव के आनंद में डूबी रही। भगवान श्रीराम चारो भैया के स्वरूपों को मिथिला की सखियों ने जब मधुर गीतों के बीच चुन-चुन कर कलेवा खिलाया।तो यह सुख संतों को परम आनंद देने वाला रहा। किलाधीश महंत मैथिली रमण शरण और सिद्धपीठ हनुमत निवास के महंत डाक्टर मिथिलेश नंदिनी शरण ने भगवान को खुद कलेवा खिलाया।प्रार्थना किया कि सरयू तट स्थित किला में यह आनंद पूरे साल बना रहे। कुअँरु कुअँरि कल भावँरि देहीं। नयन लाभु सब सादर लेहीं॥ जाइ न बरनि मनोहर जोरी। जो उपमा कछु कहौं सो थोरी॥ राम सीय सुंदर प्रतिछाहीं। जगमगात मनि खंभन माहीं मनहुँ मदन रति धरि बहु रूपा। देखत राम बिआहु अनूपा॥ रामचरित मानस की यह पंक्तियां लक्ष्मण किला में साकार हुई। संतों ने खुद को घोड़ा बनाकर भगवान को पीठ पर बिठाकर उनको भ्रमण कराया। इस अवसर पर किलाधीश महंत मैथिलीमरण शरण ने कहा कि हम सब धन तो श्रीराम की खुशी है। वे हमारे पाहुन हैं और मिथिला की परंपरा को पाहुन के घर आने असीम सुख होता है।इसे बहुत बड़ा सौभाग्य और परम सुख माना जाता है।अयोध्या के लक्ष्मण किला में यह सुख हम संतों को रोज मिलता है। पर श्रीराम विवाह उत्सव,राम विवाह और कलेवा का आनंद अदभुद हैं। इस दौरान हर पल आनंद में डूबा रहता है।हमारा अनुभव है कि भगवान श्रीराम पाहुन के रूप में हमारे सामने हैं और उनके सुख में ही हम सखियां सुख का अनुभव करतीं हैं।इसी भाव से भगवान को गीत गाकर,उनको विविध व्यंजन खिलाकर, गायन,वादन और नृत्य आदि के जरिए प्रसन्न करने का प्रयास किया जाता है। “बाप के नाम से पूत के नाम नाती के नाम कछु और। ई बुझौवल बूझ के तब दुलहा उठावें कौर॥”इस पहेली जब सखियां श्रीराम के सामने प्रस्तुत कर उनसे जबाब मांगती है तो वे भोजन का एक कौर उठाने को प्रस्तुत दुलहा ठिठक गए हैं। मिथिला के विशेष विधान के अन्तर्गत पहले कुछ प्रश्नों के उत्तर देने होंगे, उसके पश्चात भोजन करना है। सिद्धपीठ हनुमत निवास के महंत डाक्टर मिथिलेश नंदिनी शरण कहते हैं कि कलेवा विवाह के दौरान उपवास के उपरान्त कुँअर-कलेवा के लिए विराजे दुलहा का एक परीक्षण यह भी है। रात्रि-जागरण और उपवास के बाद उनकी परीक्षा का लोकाचार-परक कार्यक्रम है बुझौवल। उन्होंने कहा कि कलेवा की इस रस्म में तो, चारों दुलहा क्षण भर को रुके हैं, कनखियों में परस्पर वार्ता हुई और श्री सुमित्रा कुमार ने चहकते हुए उत्तर दिया- (मधूक) महुआ। सखियों ने पूछा कैसे ? जरा समझाकर बताइए। लक्ष्मण जी ने स्पष्ट किया- बाप है वृक्ष जिसका नाम है महुआ, उसका पुष्प (पुत्र) भी महुआ कहलाता है। पुनः उस पुष्प से फल (पौत्र) रूप में कलेन्दी का जन्म होता है। उत्तर से संतुष्ट समाज तालियाँ बजाता है। लेकिन अभी इतने से मुक्ति नहीं, दुलहा चार हैं तो एक-एक उत्तर सबको देना है। दूसरा प्रश्न पूछा गया कि “तीस चरण महि चलत नहीं, श्रवण-नयन छत्तीस। सो तुम्हरी रक्षा करें नौ मुख देहिं असीस॥” श्री कौशल्या कुमार श्रीराम ने ने उत्तर दिया है- हमारे कुल पुरुष भगवान सूर्य। व्याख्या भी की- “सूर्य देव के रथ में सात घोड़े हैं, एक सारथी। स्वयं सूर्य नारायण समेत तीस चरण हुए, अट्ठाईस अश्वों के और दो सूर्यदेव के। सारथी अरुण के चरण नहीं हैं। इस प्रकार वे तीस चरणों से धरती का स्पर्श किए बिना गतिशील रहते हैं। इसी गणना-क्रम से नेत्र और श्रवण की कुल संख्या छत्तीस हुए। सबके मिलाकर नौ मुख हुए। वे तीस चरण, छत्तीस श्रवण-नयनों से युक्त सूर्य भगवान् नौ मुखों से हमारे विवाह-कलेवा की शुभता का आशीर्वचन कर रहे हैं।” उन्होंने कहा कि इसको देखकर ज्ञान-वैराग्य के प्रमाण राजा जनक जैसे दूसरे ही हो गए हैं आज-कल। जबसे इन श्याम-गौर दशरथ कुमारों का दर्शन हुआ है तबसे उनका ब्रह्मज्ञान स्थगित सा हो गया है। रह-रहकर मुस्कुराते हैं और क्षण-क्षण में अश्रुपूरित हो जाते हैं। वे रूखे तो कभी न थे पर महाराज को सगुण ब्रह्म की ने मोह लिया है। श्री सीताराम विवाह महोत्सव की यह भी एक झाँकी है। श्री राम कलेवा में दुलहा सरकार की जूठन पाने को लालायित सन्त-भक्त एवं श्रद्धालुओं की पीढ़ियों ने इस उत्सव को साहित्य-संगीत और उपासना की त्रिवेणी में प्रवाहित किया है। यह उत्सव, यह उल्लास और यह तल्लीनता बनी रहे।


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