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डॉक्टर इन्हें कहूं या जल्लाद बोलूं…:दिल्ली ब्लास्ट पर लखनऊ में बोले विष्णु सक्सेना, कहा- 30 सेकंड में रिजेक्ट करता है GenZ

‘कुछ जहर बनाते हैं, कुछ बम बना रहे हैं,
जमजम की जगह खून के आंसू पिला रहे हैं,
डॉक्टर इन्हें कहूं या जल्लाद इन्हें बोलूं,
जिन्हें जान बचाना था, वो जान खा रहे हैं।’ ये पंक्तियां दिल्ली ब्लास्ट के बाद कवि डॉ. विष्णु सक्सेना ने लिखी थीं। कवि सम्मेलनों के जादूगर कहे जाने वाले डॉ. विष्णु सक्सेना लखनऊ पहुंचे। उन्होंने दैनिक भास्कर से बातचीत की। दिल्ली ब्लास्ट पर लिखी गईं अपनी इन पंक्तियों के सवाल पर कहा- हमें समाज की बुराइयों को कविताओं में लाना चाहिए। उन्होंने 4 दशक के पहले से लेकर वर्तमान के GenZ तक कवियों और कविताओं पर खुलकर चर्चा की। कहा- मौजूदा समय में 1 वीडियो से कवि फेमस हो जाता है, तो 30 सेकंड में खत्म भी हो जाता है। पढ़िए डॉ. विष्णु सक्सेना से बातचीत के मुख्य अंश… इंटरव्यू पढ़ने से पहले डॉ. विष्णु सक्सेना की कविताओं की इन पंक्तियों को पढ़िए… अब पढ़िए डॉ. विष्णु सक्सेना की बातचीत… सवाल : दिल्ली ब्लास्ट के बाद आपने ये कविता पोस्ट किया? ऐसे माहौल में कवियों की क्या जिम्मेदारी है? जवाब : कवि का हमेशा जनता को चेताने का काम रहा है। यह पहले भी करते थे और आज भी कर रहे हैं। अच्छे और सच्चे कवि समाज की कमियां अपनी कविताओं में लाते और बताते हैं। जो चीज प्रोज (गद्य) से समझ में नहीं आती वह पोयम (कविता) से जल्दी आ जाती है। समाज की बुराइयों को हमें अपनी कविताओं में लाना चाहिए और आइना दिखाना चाहिए। सवाल : मौजूदा समय को GenZ का दौर कहा जाता है। सोशल मीडिया हावी है, तो क्या बदलाव देखते हैं? जवाब : 1982 से कविता पढ़ रहा हूं। 45 साल से अधिक हो गए। वह जमाना अलग था, ये अलग है। कवियों कि दूसरी पीढ़ी के साथ पढ़ रहा हूं। सोशल मीडिया के जमाने में कविता बहुत इंस्टेंट हो गई है। आज अगर कविता अच्छी है, तो कोई भी युवा कवि एक रात में पॉपुलर हो जाता है। मगर जितनी जल्दी लोकप्रिय होता है उतनी जल्दी खत्म भी हो जाता है। उसका कारण है अध्ययन का आभाव है। जब तक अच्छा पढ़ेंगे नहीं, तब तक अच्छे विचार नहीं आएंगे। प्रोसेस को फॉलो करना पड़ेगा। इस समय 30 सेकंड में रिजेक्ट कर दिया जाता है। सवाल : अब के दौर में काव्य पाठ के दौरान लोग माइक लेकर कुछ भी बोलना शुरू कर देते हैं, इसे कैसे देखते हैं? जवाब : मंच पर हर दौर में चुनौती रही है। पहले जिसके पास कविता नहीं होती थी वह मंच पर चढ़ने से डरता था। अब जिसके पास कविता है वह मंच पर चढ़ने से डर रहा है। चुनौतियों को सहन करते हुए अपना रास्ता निकालना पड़ेगा। सवाल : आपने कविता का सफर कैसे शुरू किया? कविता लिखने का भाव कब पैदा हुआ? जवाब : कविता के भाव पैदा नहीं होते हैं। ये गॉड गिफ्टेड होता है। अगर भाव पैदा होते तो कवि बनाने की कोई फैक्ट्री होती। कवि पैदाइशी होते हैं। हीरे की तरह कविता को तो तराशा जा सकता है, मगर कवि बनाये नहीं जा सकते हैं। सवाल : सामाजिक मुद्दों के साथ आप प्रेम पर बहुत लिखते हैं। क्या प्रेम लिखने वाले को भी कभी प्रेम हुआ? जवाब : हां, बिल्कुल। हर व्यक्ति को प्रेम होता है। अगर कोई ये कहे हमें प्रेम नहीं हुआ, तो वह झूठ बोलता है। प्रेम जीवन में कई बार होता है। बच्चा जन्म लेता है तो मां से होता है। बड़ा होता है तो भाई-बहन, दोस्तों से प्रेम करता है। प्रेम सबको होता है, बस उसके रूपांतरण अलग-अलग हो जाते हैं। हमनें भी प्रेम किया और सफल रहे। आप की बात एक लाइन में कह देता हूं- ‘वैसे तो तेरा जिक्र जमाने में करूंगा, कोशिश ये करूंगा तेरा नाम न आए।’ सवाल : आपको कवि सम्मेलनों का ‘जादूगर’ कहा जाता है। जब कविता पढ़ना शुरू किया था, तो सोचा था ये उपाधि भी मिलेगी? जवाब : नहीं सोचा था। जीवन में ये सब चीजें आती गईं। ये सब प्रभु की कृपा है। मेरे साथ जो कुछ भी घट रहा है, उसमें मेरा कुछ भी नहीं। मुझे अपने बारे में कोई गलतफहमी नहीं है, जो ईश्वर करा रहा है मैं करता जा रहा हूं। मगर इस उपाधि से अच्छा तो लगता है। सवाल : बार-बार कहा जाता है कि पत्रकार, कवि और साहित्यकार को विपक्ष में होना चाहिए आप इसे कैसे देखते हैं? जवाब : हम इससे सहमत हैं। इन्हें स्थायी विपक्ष में होना चाहिए, अगर वह पक्ष पर लिखेगा, तो चाटुकार और चमचा कहलाएगा। इससे जो शासक है, उसे अपनी कमियां दिखेंगी ही नहीं। ढूंढ़-ढूंढ़ कर कमियों को राजा के सामने रखना चाहिए। इसलिए पत्रकार, कवि और साहित्यकार को विपक्ष की भूमिका में रहना चाहिए। सवाल : कुछ कवियों और किताबों के नाम सुझाएं, जिन्हें लोग प्रेमी पढ़-सुन सकें? जवाब : हमने गोपालदास नीरज और कुंवर बेचैन को बहुत पढ़ा है। उर्दू में मुनव्वर राणा, राहत इंदौरी के साथ जॉन एलिया को खूब पढ़ा है। जो नौजवान अच्छे गीतकार बनना चाहते हैं, वो नीरज, भारत भूषण, किशन सरोज को पढ़ें। ऐसे ही उर्दू के अच्छे शायरों को पढ़ने-सुनने से कविता को लिखने में मदद मिलेगी। चलते चलते कोई शेर सुना दें… ——————- यह खबर भी पढ़िए… नेहा सिंह राठौर को तलाश रही वाराणसी पुलिस:टीम लखनऊ पहुंची तो फ्लैट पर ताला मिला; 500 से अधिक शिकायतें लोक गायिका नेहा सिंह राठौर की तलाश में वाराणसी पुलिस उनके लखनऊ के फ्लैट पर पहुंची। वह मौके पर नहीं मिलीं, तो पुलिस ने फ्लैट के बाहर नोटिस चस्पा किया। पीएम मोदी को जनरल डायर कहने पर भाजपा कार्यकर्ताओं और हिंदू संगठनों ने वाराणसी में 500 से ज्यादा शिकायतें दी थी। लंका थाने में मुकदमा दर्ज किया गया। पूरी खबर पढ़ें


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