गोरखपुर के गीताप्रेस में गीता जयंती के पावन पर्व पर लीला चित्र मंदिर में आयोजित कथा में पंडित रामज्ञान पांडेय ने दूसरे दिन के प्रसंग में को आगे बढ़ाया। उन्होंने गीता के श्लोकों के माध्यम से यह बताया कि किस तरह भगवान कृष्ण अर्जुन को शरणागति का उपदेश देते हैं। उन्होंने भगवान राम की भक्त अहिल्या के लिए की जाने वाली भक्ति का वर्णन किया। पंडित रामज्ञान पांडेय ने कहा कि जीव जब भगवान की शरण में आ जाता है, तो उसके जीवन के सारे कर्म भगवान स्वीकार कर लेते हैं। जैसे नन्हा सा बालक अपनी सारी आवश्यकताओं के लिए मां पर निर्भर रहता है। वैसे ही भगवान भी जीव की सारी आवश्यकताएं पूरी करते हैं। भगवान राम की मार्ग में अहिल्या को किया खड़ा
यह बात अहिल्या के प्रसंग में चरितार्थ होती है। पंडित प्रसंगों को सुनाते हुए कहा कि भगवान श्रीराम जनकपुर की ओर जा रहे थे। उसी समय मार्ग में तुलसीदास ने अहिल्या को खड़ा कर दिया। मानो प्रभु से कहा कि सीता से बाद में मिलिएगा पहले अहिल्या से मिल लीजिए। अब विचार कीजिए सीता और अहिल्या में कितना अंतर है। सीता के चरित्र पर माता अनसूइया ने कहा कि सीता तुम्हारा नाम लेकर संसार की स्त्रियां पतिधर्म का पालन करेंगी, पर अहिल्या का तो पतिधर्म नष्ट हो चुका है। सीता और अहिल्या में एक अंतर और है। रामायण में वर्णन है सीता कि सीता की बुद्धि पवित्र होती है। और अहिल्या को कुबुद्धि कहा गए है जो गौतम ऋषि की सेवा करते-करते इन्द्र-भोग की सेवा में लग गयी। हमारी बुद्धि इसी तरह त्याग तपस्या की बात तो बहुत करती है पर अवसर आने पर भोगों की ओर झुक जाती है। पर भगवान श्रीराम जनकपुर के मार्ग में अहिल्या की ओर से मानो साधना करते हुए दिखायी दे रहे हैं। शास्त्रों में नौ भक्तियों का वर्णन
पंडित रामज्ञान ने बताया- शास्त्रों में नौ भक्तियों का वर्णन किया गया है। अहिल्या में एक भी भक्ति नहीं है। पर भगवान श्रीराम ने अपनी ओर से अहिल्या के लिए तीन भक्ति किया। जिससे वो जड़ से चैतन्य अवस्था में आ गई। प्रथम भगति संतन्ह कर संगा। मतलब संतों की संगत, पर अहिल्या को तो संत ही छोड़ कर चले गए तो पहली भक्ति ही नहीं है। पर प्रभु कितने कृपालु हैं। महर्षि विश्वामित्र आदि संतों को लेकर अहिल्या के पास पहुंच गए मानों यह पहली भक्ति है। भगवान ने महर्षि विश्वामित्र से अहिल्या की कथा सुनी
दूसरी भक्ति है- भगवान की कथा का श्रवण करना और प्रेम करना। पर अहिल्या तो पत्थर है वह कैसे सुनेगी, पत्थर भी कहीं सुनता है। पर भगवान ने दूसरी भक्ति करते हुए कहा कि जब मेरी कथा सुनने के बाद लोग पवित्र होते हैं, तो जिसकी कथा लोग सुनते हैं, वह पवित्र नहीं होगा। यह कह कर भगवान ने महर्षि विश्वामित्र से अहिल्या की कथा सुनी। इस तरह सारा संसार जिस भगवान की कथा सुनता है वो भगवान अहिल्या की कथा सुनते हैं, यह दूसरी भक्ति है। प्रभु ने दी चरणों की धूलि पंडित रामज्ञान ने बताया- तीसरी भक्ति है गुरु के चरणों की सेवा अभिमान रहित होकर करना। अब अहिल्या तो पत्थर की है गुरु के चरण तक पहुंचे कैसे ? लेकिन प्रभु कृपा से गुरु ने ही राम से कह दिया। राम अहिल्या तुम्हारे चरणों की धूलि चाहती है। अब भगवान संकोच में पड़ गए, क्योंकि भगवान अपनी ओर से जब कृपा करते हैं तो अपने दो अंगों का प्रयोग करते हैं। या तो हाथ से कृपा करते हैं या नेत्र से कृपा करते हैं। वे सोचने लगते हैं कि यह अहिल्या ब्राह्मण की पत्नी है, क्या चरण छुआना उचित होगा। उनकी व्यथा को देखते हुए गुरु जी कहते हैं तुम संकोच मत करो, तुम्हारे चरणों से गंगा निकली हैं। गंगा ने सदा अपावन को पावन किया है। जिसके बाद संकोच से प्रभु ने चरण की रज अहिल्या की दी। तो जो अब तक जड़ पत्थर बनी थी, वह स्त्रीरूप में परिणत हो चैतन्यता आ गयी। अब भगवान ने कहा- तुम्हारी ओर से तीन भक्ति मैंने की। अब तुम जड़ से पत्थर हो गयी हो। अब चौथी भक्ति तुम करों। कपट को छोड़कर भगवान का करें गुणगान
उन्होंने बताया – चौथी भक्ति है कपट को छोड़कर भगवान का गुणगान करना। अहिल्या ने भक्ति शुरू की। इसी तरह हम भी भगवान की शरण ले लें तो हमारे जीवन का सारा दायित्व भगवान के ऊपर आ जाता है। यह विचार पंडित रामज्ञान से सुनकर सभी श्रोता भाव विभोर हो उठे।
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