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एससी/एसटी एक्ट केस पक्षों में समझौते के आधार पर रद्द:हाईकोर्ट ने कहा-अपील में भी कोर्ट कर सकती है केस कार्यवाही रद्द

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक निर्णय में कहा है कि एससी/एसटी अधिनियम के मामले में धारा 14- ए के तहत अपील में ट्रायल कोर्ट में पक्षों के बीच हुए समझौते के आधार पर केस कार्यवाही रद्द की जा सकती है। इसके लिए हाईकोर्ट की अंतर्निहित शक्ति की धारा की याचिका दायर करना आवश्यक नहीं है।
न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव की एकल पीठ ने मेरठ निवासी राहुल गुप्ता व छह अन्य की आपराधिक अपील स्वीकार करते हुए कहा है कि जब अपील का वैधानिक उपाय उपलब्ध है तो समझौता करने के लिए सीआरपीसी की धारा 482 के तहत उच्च न्यायालय की अंतर्निहित शक्तियों का अलग से सहारा लेने की कोई आवश्यकता नहीं है। कोर्ट ने मामले में समन आदेश और आरोपपत्र सहित पूरी कार्यवाही को रद्द कर दिया है। इस संबंध में गुलाम रसूल खान एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य (2022) 8 एडीजे 691 में इलाहाबाद हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ के फैसले का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि आमतौर पर समझौते के आधार पर आपराधिक कार्यवाही रद्द करने के लिए सीआरपीसी की धारा 482 के तहत उच्च न्यायालय की अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग किया जाता है। अपीलकर्ताओं ने मेरठ के विशेष न्यायाधीश, एससी/एसटी अधिनियम, द्वारा पारित आरोपपत्र और समन आदेश को रद्द करने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। दलील दी गई कि यह विवाद पूरी तरह से निजी प्रकृति का था और पक्षों ने बिना किसी दबाव या अनुचित प्रभाव के समझौता कर लिया था। याचीगण के खिलाफ ब्रह्मपुरी थाने में विभिन्न धाराओं में रिपोर्ट लिखी गई थी।
आरोप पत्र 30 अप्रैल 2024 को दायर किया गया और समन 19 जुलाई 2024 को हुआ। कोर्ट ने कहा, इस न्यायालय के समक्ष पक्षकारों ने अनुरोध किया था कि उन्होंने समझौता कर लिया है। अब वह मामले को आगे नहीं बढ़ाना चाहते हैं। 22 नवंबर 2024 को इस कोर्ट के आदेश के अनुपालन में, विशेष न्यायाधीश एससी/एसटी अधिनियम मेरठ ने समझौते का सत्यापन किया है।
वैसे जिलाधिकारी ने चार दिसंबर 2024 की अपनी रिपोर्ट में कहा है कि विपक्षी पक्ष संख्या दो ने संबंधित प्राधिकारी को मुआवजे की राशि वापस नहीं की है। कोर्ट ने विपक्षी संख्या दो सुमति कुमार को निर्देश दिया है कि वह संबंधित प्राधिकारी से प्राप्त क्षतिपूर्ति राशि एक सप्ताह के भीतर वापस कर दे।


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