सहारनपुर में जमीयत दावातुल मुस्लिमीन के संरक्षक और प्रसिद्ध देवबंदी उलेमा मौलाना कारी इसहाक गोरा ने मुसलमानों के सामाजिक और घरेलू कार्यक्रमों में बढ़ते नाच-गाने, म्यूज़िक, बैंड-बाजे और आतिशबाज़ी की कड़ी आलोचना की है। उन्होंने एक विस्तृत वीडियो संदेश जारी कर कहा कि यह चलन न सिर्फ़ इस्लामी तालीम के ख़िलाफ है, बल्कि मुसलमानों की मौजूदा परेशानियों, बेचैनी और हालात की गिरावट का एक अहम कारण भी बनता जा रहा है। मौलाना ने अपने संदेश में कहा कि आज अल्लाह की नाफरमानी को स्टेटस सिंबल बना दिया गया है। जिन कामों से बचने की ताकीद की गई थी, उन्हें खुशी, फैशन और आधुनिकता के नाम पर अपनाया जा रहा है। उन्होंने चिंता व्यक्त की कि घरों में कुरआन की तिलावत और जिक्र की जगह गानों का शोर सुनाई देता है। दुकानों और समारोहों में भी दीनी माहौल कम होता जा रहा है। क़ारी इसहाक़ गोरा ने कहा कि शादियां अब इबादत और सादगी की बजाय मनोरंजन और दिखावे का मंच बन गई हैं। नाच-गाने, तेज़ म्यूजिक और शोर-शराबे को अनिवार्य माना जाने लगा है। उन्होंने सवाल उठाया कि जब रास्ता ही गलत चुना जाएगा, तो नतीजे बेहतर कैसे मिलेंगे। मौलाना के अनुसार, अल्लाह की नाफरमानी के साथ रहमत और सुकून की उम्मीद करना सही नहीं है। मौलाना ने शादी-ब्याह में होने वाली आतिशबाज़ी को भी गैर-जरूरी और नुकसानदेह बताया। उन्होंने कहा कि तेज़ धमाकों से बच्चों, बुजुर्गों, बीमारों और राहगीरों को परेशानी होती है। इसके अलावा, जानवर और परिंदे भी डर जाते हैं। मौलाना ने आतिशबाज़ी को फिजूलखर्ची के साथ-साथ दूसरों को तकलीफ़ देने वाला काम करार दिया। मौलाना ने इस बात पर भी चिंता जताई कि आज मुसलमानों के रोल मॉडल बदल गए हैं। पहले उलेमा, बुजुर्ग और शरीअत पर चलने वाले लोग आदर्श माने जाते थे, लेकिन अब चमक-दमक और मनोरंजन से जुड़े लोग हीरो बन गए हैं। उन्होंने मुसलमानों से अपील की कि वे इस्लाह (सुधार) की शुरुआत खुद से करें, अपने घरों और आदतों को बदलें। मौलाना ने कहा कि जब इंसान सच्चे दिल से अल्लाह की ओर लौटता है, तो हालात बदलने में देर नहीं लगती।
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