आतंक के लिए टेरर फंडिंग के लिए कानपुर के एनजीओ के नाम सामने आए हैं। अब तक 3 एनजीओ सुरक्षा एजेंसियों की रडार पर हैं। तीनों एनजीओ 8 से 10 साल पुराने पाए गए हैं, एजेंसियों ने उनके रजिस्ट्रेशन कैंसिल कर दिए है। इन एनजीओ के बैंक अकाउंट में करोड़ों का लेन–देन सामने आया है। सुरक्षा एजेंसी की जांच में एनजीओ से संबंधित लोगों की तलाश भी शुरू हो गई है। 2011 में कौमी एकता नाम से रजिस्टर्ड हुआ था एनजीओ दरअसल दो बैंक अकाउंट ऐसे भी मिले हैं, जिनमें बड़ी रकम का ट्रांजेक्शन बीते 9 महीने में हैं। चकेरी के भाभा नगर निवासी युवक के खाते की जांच के साथ उसके परिवार से भी पूछताछ की गई है। जिसमें पता चला है कि 2011 में कौमी एकता के नाम से एनजीओ रजिस्टर्ड कराया गया था, जिसमें सारे धर्मों के लोग थे। रुपए का लेन देन उस युवक के खाते से होता था और उनकी मृत्यु हो चुकी है। दूसरा एनजीओ का 2009 में रजिस्ट्रेशन कराया गया था, जिसमें 11 मेंबर्स हैं और अधिकांश नोएडा के रहने वाले हैं। इनके अकाउंट में भी कई बार बड़ी रकम आई है और 30 फीसदी रुपए रोक कर कई लोगों को ट्रांजेक्शन किया गया। अब जानिए कैसे होता था एनजीओ का यूज
एनजीओ की कार्यकारिणी की बैठक हर साल होती है और संस्था का नवीनीकरण पहले हर साल होता था और अब पांच साल में होता है। दो से तीन दशक पहले शुरू किए गए एनजीओ किसी वजह से नहीं ऑपरेट हो पाते हैं, तो इसके सदस्य एनजीओ बंद कर देते हैं। जिन लोगों के मंसूबे ठीक नहीं होते हैं वे रजिस्ट्रेशन ऑफिस में संपर्क कर इन एनजीओ को न सिर्फ पुन: शुरू करा लेते हैं, बल्कि इन एनजीओ के बैंक खाते भी जिम्मेदारों से संपर्क कर शुरू करा लेते हैं। सुरक्षा एजेंसियों की माने तो अब हर चीज ऑनलाइन हो चुकी है लिहाजा ये लोग पुराने एनजीओ पर ही नजर रखते हैं। 20 से 30 साल पहले रजिस्टर्ड कराए गए एनजीओ की फाइलें निकलवाकर उसका यूज करना शुरू कर देते हैं। यानी जो लोग मर जाते हैं उनके नाम से बैंक खाता चलता रहता है। सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि इस पूरे मामले की जांच करने के बाद जो एनजीओ के दो अकाउंट सामने आए हैं. उनमें इस ट्रिक का इस्तेमाल किया गया है।
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