उत्तरी इथियोपिया में हुए ज्वालामुखी विस्फोट से भारत के कई हिस्सों में स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ पैदा हो गई हैं। इथियोपिया के अफ़ार क्षेत्र में लंबे समय से निष्क्रिय हेली गुब्बी ज्वालामुखी सप्ताहांत में फट गया, जिससे राख का गुबार 14 किलोमीटर ऊँचा उठ गया। ज्वालामुखी की राख लाल सागर को पार करते हुए यमन और ओमान की ओर बढ़ी और फिर पाकिस्तान और उत्तरी भारत के कुछ हिस्सों तक पहुँच गई। राख का यह बादल चीन की ओर बढ़ रहा है और मंगलवार (25 नवंबर) को 14:00 GMT (भारतीय समयानुसार शाम 7:30 बजे) तक भारतीय आसमान से विदा होने की उम्मीद है। राख का बादल सोमवार देर रात भारत में प्रवेश कर गया, जिससे मानव स्वास्थ्य और वायु गुणवत्ता पर इसके प्रभाव की आशंकाएँ बढ़ गई हैं। भारत के विमानन नियामक, नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA) ने भी कल सभी एयरलाइनों को ज्वालामुखी की राख से प्रभावित क्षेत्रों से बचने की सलाह जारी की।
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क्या होती है ज्वालामुखी की राख
ज्वालामुखीय राख में टूटी हुई चट्टान के टुकड़े, खनिज और ज्वालामुखी काँच होते हैं। नेशनल ज्योग्राफिक के अनुसार, यह कठोर, घर्षणकारी होती है और पानी में नहीं घुलती। हवा ज्वालामुखीय राख के कणों को विस्फोट स्थल से हज़ारों किलोमीटर दूर तक भी बिखेर सकती है। इंडियामेटस्काई वेदर के अनुसार, इथियोपिया में ज्वालामुखी विस्फोट से निकली राख सल्फर डाइऑक्साइड, काँच और महीन चट्टान के कणों से बनी है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि ज्वालामुखी की राख के संपर्क में आने से आंख, त्वचा तथा श्वसन तंत्र संबंधी कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। खांसी, गले में जलन, आंखों का लाल होना, सिरदर्द या थकान जैसे लक्षण दिख सकते हैं। वहीं यदि किसी को अस्थमा या ब्रोंकाइटिस की समस्या है तो उन्हें अधिक मुश्किल पैदा हो सकती है।
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ज्वालामुखी विस्फोट स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित करते हैं
जब ज्वालामुखी फटता है, तो वह ज्वालामुखी गैसों और राख जैसे खतरनाक कणों को हवा में छोड़ सकता है। कार्बन डाइऑक्साइड और फ्लोरीन, जो मानव स्वास्थ्य के लिए विषाक्त हैं, ज्वालामुखी की राख में जमा हो सकते हैं। अन्य ज्वालामुखी गैसें जो स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती हैं, वे हैं सल्फर डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन क्लोराइड, हाइड्रोजन सल्फाइड, रेडॉन, हाइड्रोजन फ्लोराइड और सल्फ्यूरिक एसिड। इन गैसों को साँस में लेना, जिनमें से कई गंधहीन या अदृश्य होती हैं, हानिकारक हो सकता है। अमेरिकी रोग नियंत्रण एवं रोकथाम केंद्र (सीडीसी) के अनुसार, इन ज्वालामुखी गैसों को साँस में लेने से आँखों में जलन, उल्टी, चक्कर आना, सिरदर्द, साँस लेने में समस्या और यहाँ तक कि मृत्यु जैसे लक्षण हो सकते हैं।
दफ्तरों में 50% वर्क फ्रॉम होम का नियम
दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण स्तर को देखते हुए दिल्ली सरकार ने GRAP-3 में बदलाव के बाद बड़ा कदम उठाया है। नए आदेश के अनुसार, सभी दिल्ली सरकारी दफ्तरों और प्राइवेट ऑफिसों में अधिकतम 50% कर्मचारी ही ऑफिस आएंगे, बाकी कर्मचारियों को अनिवार्य रूप से वर्क फ्रॉम होम करना होगा।
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