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25 सालों में कितनी बदली उत्तराखंड की तस्वीर:22 गुना बढ़ा बजट, खेती पर हावी हुई इंडस्ट्री; प्रति व्यक्ति आय में हिमाचल से आगे

9 नवंबर 2000 को देश के 27वें राज्य के रूप में अस्तित्व में आया उत्तराखंड अब अपनी रजत जयंती मनाने जा रहा है। 25 सालों की यात्रा में यह राज्य कई सामाजिक, आर्थिक और बुनियादी मोर्चों पर बदलाव का गवाह बना है। इन वर्षों में राज्य का वित्तीय ढांचा न सिर्फ मजबूत हुआ बल्कि विकास की रफ्तार ने इसे देश के तेजी से आगे बढ़ते राज्यों की कतार में ला खड़ा किया है। राज्य गठन के समय उत्तराखंड का बजट महज साढ़े 4 हजार करोड़ रुपए था। आज यह आंकड़ा बढ़कर 1 लाख 1 हजार करोड़ रुपए से भी ऊपर पहुंच गया है। इसी अवधि में राज्य की जीडीपी 14,500 करोड़ रुपए से बढ़कर 4 लाख 29 हजार करोड़ रुपए और प्रति व्यक्ति आय 15 हजार से बढ़कर 2 लाख 74 हजार रुपए तक जा पहुंची है। यह आंकड़ा इसलिए भी सुखद है क्योंकि हिमाचल की प्रति व्यक्ति आय 2,57,212 है, यानि की प्रति व्यक्ति आय के मामले में राज्य हिमाचल से आगे निकल चुका है। हालांकि इस आर्थिक विस्तार के साथ राज्य पर कर्ज का बोझ भी बढ़ा है। अनुमान के मुताबिक उत्तराखंड पर अब तक लगभग 80 हजार करोड़ रुपए से अधिक का कर्ज चढ़ चुका है। आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि विकास की इस रफ्तार को संतुलित बनाए रखने के लिए अब सरकार को पहाड़ी जिलों पर विशेष फोकस करने की जरूरत है। पहले तीन मुख्य सेक्टरों का हाल समझिए…. कृषि सेक्टर 31% से घटकर 10% पर आया राज्य की अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र का योगदान 2000-01 में 30.99% था, जो 2023-24 में घटकर 9.83% रह गया। फिर भी यह राज्य की आबादी का मुख्य आजीविका स्रोत है। उत्तराखंड में बासमती चावल, गेहूं, तिलहन और दालों के साथ सेब, लीची, नाशपाती और आड़ू जैसी बागवानी फसलें किसानों की आमदनी का प्रमुख जरिया बनी हुई हैं। उद्योग सेक्टर 18.5% से बढ़कर 43% पर उत्तराखंड के औद्योगिक केंद्र जैसे हरिद्वार, पंतनगर और सेलाकुई ने राज्य की आर्थिक तस्वीर बदल दी है। 2000 में उद्योग का योगदान 18.55% था, जो अब 43.46% तक पहुंच गया है। फार्मास्युटिकल्स, ऑटोमोबाइल और फूड प्रोसेसिंग सेक्टर ने हजारों युवाओं को रोजगार दिया है। सर्विस सेक्टर 50% से घटकर 47% सर्विस सेक्टर अब भी राज्य की अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा हिस्सा है। चारधाम यात्रा, नैनीताल-मसूरी और जिम कॉर्बेट ने पर्यटन को मजबूती दी है। बैंकिंग, आईटी और व्यापारिक सेवाओं ने भी राज्य की प्रति व्यक्ति आय को राष्ट्रीय औसत से ऊपर पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई है। 25 सालों में आर्थिक ढांचे में बड़ा विस्तार उत्तराखंड के गठन के बाद शिक्षा, स्वास्थ्य और इन्फ्रास्ट्रक्चर जैसे प्रमुख क्षेत्रों में तेजी से काम हुआ है। शुरुआती दौर में जहां संसाधनों की कमी थी, वहीं अब राज्य की वित्तीय क्षमता कई गुना बढ़ चुकी है। शिक्षा और स्वास्थ्य में सुधार ने लोगों की जीवनशैली पर सीधा असर डाला है, जिससे प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हुई है। आर्थिक जानकारों के अनुसार, उत्तराखंड का विकास मॉडल अब “हिल-इंडस्ट्रियल बैलेंस” की दिशा में आगे बढ़ रहा है, यानी औद्योगिक प्रगति और पहाड़ी विकास के बीच संतुलन बनाना सरकार की नई चुनौती बन गया है। दून विश्वविद्यालय के प्रो. एच.सी. पुरोहित का विश्लेषण दून विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्री प्रोफेसर एच.सी. पुरोहित के मुताबिक, उत्तराखंड की आर्थिक प्रगति पिछले दो दशकों में अभूतपूर्व रही है। उन्होंने बताया कि राज्य की जीडीपी 14,500 करोड़ रुपए से बढ़कर 4 लाख 29 हजार करोड़ रुपए हो चुकी है, जबकि प्रति व्यक्ति आय 2 लाख 74 हजार तक पहुंच गई है। प्रो. पुरोहित कहते हैं कि “शिक्षा और स्वास्थ्य में हुए सुधारों ने राज्य की अर्थव्यवस्था को मजबूत आधार दिया है।” उनके अनुसार, उत्तराखंड में अब सात बड़े सरकारी मेडिकल कॉलेज हैं, साथ ही कई निजी मेडिकल संस्थान भी काम कर रहे हैं। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में कुमाऊं, गढ़वाल, तकनीकी और कृषि विश्वविद्यालय जैसे संस्थान राज्य के युवाओं के लिए नए अवसर लेकर आए हैं। पर्वतीय जिलों पर अब भी फोकस की जरूरत प्रोफेसर पुरोहित बताते हैं कि राज्य गठन के बाद 2001 की जनगणना में उत्तराखंड की आबादी लगभग 84 लाख थी, जो आज बढ़कर 1.35 करोड़ के पार पहुंच चुकी है। वे सुझाव देते हैं कि सरकार को अब पर्वतीय क्षेत्रों में फॉरेस्ट्री, आयुर्वेद, हर्बल और स्थानीय उत्पाद आधारित उद्यमों को बढ़ावा देना चाहिए। अगर युवाओं को इन क्षेत्रों में प्रशिक्षण और स्व-रोजगार की दिशा में प्रोत्साहित किया जाए, तो उनकी आय में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हो सकती है। शिक्षा और स्वास्थ्य पर सरकार को और ध्यान देना होगा राज्य के बुद्धिजीवी वर्ग का मानना है कि बीते 25 सालों में उत्तराखंड ने कई ऐतिहासिक उपलब्धियां हासिल की हैं। राज्य का बजट एक लाख करोड़ के पार पहुंच गया है और औद्योगिक क्षेत्र तेजी से विस्तारित हुआ है, परंतु पहाड़ी इलाकों में शिक्षा और स्वास्थ्य की व्यवस्था अब भी संतोषजनक नहीं है। विशेषज्ञों का कहना है कि मैदानी जिलों जैसे देहरादून, हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर ने विकास का फायदा ज्यादा उठाया है, जबकि चमोली, पिथौरागढ़ और बागेश्वर जैसे जिलों को अभी भी बुनियादी ढांचे में सुधार की आवश्यकता है। वरिष्ठ पत्रकार जयसिंह रावत की राय वरिष्ठ पत्रकार जयसिंह रावत के मुताबिक, “उत्तराखंड ने पिछले 25 वर्षों में अच्छी प्रगति की है, लेकिन विकास की यह गति अब समान रूप से सभी जिलों तक पहुंचे, यह सबसे बड़ी चुनौती है।”


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