अयोध्या के राम मंदिर में भगवान राम बालक स्वरूप और राजा राम के रूप में भक्तों को दर्शन दे रहे हैं। हर दिन उनके लिए नई वेशभूषा तैयार होती है। हर पोशाक में परंपरा, मर्यादा और दिव्यता का विशेष ध्यान रखा जाता है। ध्वजारोहण के ऐतिहासिक अवसर पर रामलला ने जो विशेष स्वर्ण जड़ित पीतांबरी और पश्मीना शॉल धारण की है, वह दिल्ली की एक विशेष वर्कशॉप में तैयार हुई है। इसे प्रसिद्ध क्राफ्ट डिजाइनर मनीष तिवारी ने बनाया है। 24 नवंबर को यह विशेष वस्त्र दिल्ली से फ्लाइट के जरिए अयोध्या पहुंचे, जिसे मनीष तिवारी स्वयं लेकर आए। प्राण प्रतिष्ठा (22 जनवरी 2024) से अब तक रामलला और राजा राम के वस्त्र हर दिन फ्लाइट से अयोध्या पहुंचते हैं। ध्वजारोहण के अवसर पर तैयार वस्त्रों में क्या खास है? भगवान के लिए वस्त्र बनाते समय कैसा भाव रहता है? इन सभी बातों पर दैनिक भास्कर डिजिटल ने मनीष तिवारी से खास बातचीत की। सवाल : ध्वजारोहण के लिए रामलला और राम दरबार के वस्त्र कैसे तैयार किए? जवाब : 22 जनवरी 2024 को रामलला गर्भगृह में विराजमान हुए। उस समय सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि भगवान राजा दशरथ के पुत्र हैं, मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, तो उनके अनुरूप वस्त्र कैसे बनें? ट्रस्ट ने जब जिम्मेदारी सौंपी, तभी तय कर लिया था कि पूरा राम दरबार राम, सीता, लक्ष्मण और हनुमान, ऐसे दिखें कि उनमें परंपरा, संस्कृति और मर्यादा स्पष्ट झलके। विशेष उत्सवों में भगवान पीतांबर धारण करते हैं, इसलिए ध्वजारोहण जैसे अवसर पर विशेष वस्त्र तैयार किए गए। प्राण प्रतिष्ठा से अब तक सभी पोशाकें भारत के विभिन्न राज्यों की पारंपरिक शैलियों पर आधारित हैं। इन विशेष वस्त्रों को बनाने में करीब एक वर्ष का समय लगा। विवाह पंचमी के अवसर पर भी सभी देवी-देवताओं के लिए सोने के तारों से जड़े विशेष सिल्क के वस्त्र तैयार किए गए। सर्दियों को देखते हुए रामलला के लिए पीले रंग की पश्मीना शॉल भी बनाई गई है। प्रश्न : ध्वजारोहण के लिए वस्त्र कहां तैयार हुए? जवाब : डिजाइनर मनीष तिवारी ने बताया कि रामलला के स्वर्ण जड़ित पीतांबर की बुनाई दक्षिण भारत के आंध्र प्रदेश के सत्य साईं जिले के धर्मावरम में हुई। वहां के बुनकर रामानुज जयुंदू ने विशेष लूम तैयार किया। रेशम की धागों से कपड़ा उन्होंने वहीं तैयार किया। डिजाइन हमने दिल्ली से दिया था। ट्रस्ट का हम पर पूरा भरोसा था और उसी विश्वास के तहत वस्त्र निर्माण शुरू हुआ। इस पूरी प्रक्रिया में लगभग एक वर्ष लग गया। सवाल : ध्वजारोहण के वस्त्रों में ऐसा क्या खास था, जिसे बनाने में एक वर्ष लग गया? जवाब : मनीष तिवारी ने कहा- इन वस्त्रों की डिजाइनिंग हमने बहुत विस्तार से की। इन रेशम के कपड़ों पर शुद्ध सोने के तारों से कढ़ाई की गई। सिल्क दक्षिण भारत में बुना गया और उसकी कढ़ाई दिल्ली में हुई। रामलला और माता सीता दोनों के वस्त्रों पर अलग-अलग डिजाइन है। हर वस्त्र पर सोने की महीन जरी का काम है। इस तरह की शुद्ध, परंपरागत लेकिन अत्यंत महीन कारीगरी समय लेती है, इसलिए तैयारी में एक साल लगा। सवाल : सर्दी के अनुसार भगवान के वस्त्र तैयार किए गए हैं? जवाब : हां। सर्द मौसम को ध्यान में रखते हुए रामलला को पीले रंग की लद्दाखी पश्मीना शॉल ओढ़ाई गई है। यह शॉल बेहद हल्की, गर्म और परंपरागत सौंदर्य से भरपूर है। सवाल : क्या मंदिर की अन्य मूर्तियों के लिए भी वस्त्र तैयार किए गए? जवाब : जी हां। बालक राम, राजा राम के साथ-साथ परकोटा और अन्य मंदिरों में स्थापित सभी देवी-देवताओं के लिए भी विशेष वस्त्र तैयार किए गए हैं। माता अन्नपूर्णा और माता दुर्गा के लिए सिल्क की खास साड़ियां बनाई गई हैं। सभी देवी-देवता सर्दियों में अलग-अलग रंगों की पश्मीना शॉल धारण करेंगे। राम मंदिर आज पूरे देश की एकता का प्रतीक बन चुका मनीष तिवारी कहते हैं कि राम मंदिर आज पूरे देश की एकता का प्रतीक बन चुका है। उसी तरह रामलला के वस्त्रों ने भी देश के हर हिस्से के सिल्क को एक नया सम्मान दिया है। अलग-अलग मौकों पर अलग-अलग प्रदेशों के पारंपरिक सिल्क से रामलला के वस्त्र तैयार किए जाते हैं। जैसे दीपोत्सव पर गुजरात के पाटन पटोला सिल्क से बना वस्त्र धारण कराया गया था।
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