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DDU में ‘ऑनलाइन शार्ट टर्म ट्रेनिंग प्रोग्राम’:10 से अधिक राज्यों से शामिल हुए प्रतिभागी, कुलपति बोलीं- तकनीक का दास नहीं बनना चाहिए

दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में आयोजित ऑनलाइन शार्ट टर्म ट्रेनिंग प्रोग्राम सोमवार को समाप्त हो गया। यह ट्रेनिंग प्रोग्राम सात दिनों के लिए मदन मोहन मालवीय टीचर्स ट्रेनिंग सेंटर और मनोविज्ञान विभाग की ओर से आयोजित किया गया था। यह ऑनलाइन शार्ट टर्म ट्रेनिंग प्रोग्राम “उच्च शिक्षा में एआई का उपयोग: मुद्दे, चुनौतियां और संभावनाएं” विषय पर आधारित रहा जो 18 से 24 नवंबर तक लगातार शैक्षणिक गतिविधियों, विशेषज्ञ व्याख्यानों, चर्चाओं और संवादों से समृद्ध रहा। समापन सत्र के शुरूआत मनोविज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. धनंजय कुमार ने स्वागत भाषण से किया, जिसमें उन्होंने एआई के एकेडमिक क्षेत्र में बढ़ते प्रभाव पर चर्चा की। बिना एआई के शोध की कल्पना भी नहीं कर सकते मुख्य वैलेडिक्ट्री व्याख्यान कुमाऊं विश्वविद्यालय (अल्मोड़ा) प्रो. अराधना शुक्ला ने दिया। उन्होंने एआई और उच्च शिक्षा के संबंध पर गहन विश्लेषण प्रस्तुत करते हुए कहा आज बिना एआई के हम शोध की कल्पना भी नहीं कर सकते। यह आवश्यक है कि हम एआई से सकारात्मक और उपयोगी तत्वों को ग्रहण करें, जबकि अनियंत्रित उपयोग से सावधान रहें। उन्होंने बताया कि तकनीक के तेजी से विकास के बीच भी मानवीय चेतना, अनुभव और संवेदनानाएं अद्वितीय हैं, जिन्हें कोई भी आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस रिप्लेस नहीं कर सकता। 10 से अधिक राज्यों से 120 प्रतिभागी हुए शामिल वहीं कार्यक्रम संयोजक और डीन, स्टूडेंट्स वेलफेयर प्रो. अनुभूति दुबे ने बताया कि कुल 120 प्रतिभागी, 10 से अधिक राज्यों से इस कार्यक्रम में जुड़े। जिसमें तेलंगाना, दिल्ली, चेन्नई, उत्तर प्रदेश, असम, उत्तराखंड, कर्नाटक, गुजरात, महाराष्ट्र, केरल, बिहार, तमिलनाडु के प्रतिभागी शामिल रहे। उन्होंने बताया कि इन सात दिनों में 18 रिसोर्स पर्सन ने कुल 22 व्याख्यान दिए। यह सभी विशेषज्ञ विभिन्न राज्य (दिल्ली, भोपाल, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, राजस्थान, हरियाणा, उत्तराखंड) के प्रतिष्ठित संस्थाओं से ऑनलाइन माध्यम से कार्यक्रम में जुड़े रहे । उन्होंने शिक्षा संस्थानों में तकनीक के संतुलित उपयोग की आवश्यकता पर बल दिया। प्रो. चन्द्रशेखर, निदेशक, एम.एम.एम.टी.टी.सी., ने अपने संबोधन में एआई को शिक्षण–अधिगम प्रक्रिया में सहायता प्रदान करने वाला महत्वपूर्ण उपकरण बताया तथा कार्यक्रम की सार्थकता की प्रशंसा की। भावनाएं और मानवीय संवेदनाएं एआई से नहीं सीखी जा सकती सत्र के अंत में माननीय कुलपति प्रो. पूनम टंडन ने कहा कि एआई एक ऐसा विषय है जिस पर गंभीर चर्चा आवश्यक है। क्या मशीन शिक्षक का स्थान ले सकती है? एआई के बढ़ते प्रभाव के बीच शिक्षक की भूमिका को पुनर्परिभाषित करने की आवश्यकता है। विद्यार्थियों को एआई का उपयोग करने से रोका नहीं जा सकता, लेकिन नैतिक मूल्य, भावनाएं और मानवीय संवेदनाएं एआई से नहीं सीखी जा सकतीं। एआई एक उन्नत तकनीकी उपकरण है और इसे नैतिक और जिम्मेदार तरीके से उपयोग करना सबसे बड़ी चुनौती है। उन्होंने चेताया- हमें किसी भी तकनीक का दास नहीं बनना चाहिए, क्योंकि यह हमारी मानसिक वृद्धि और स्वतंत्र चिंतन को प्रभावित करती है। उनके प्रेरक विचारों ने कार्यक्रम की दिशा और महत्व को और सुदृढ़ किया। कार्यक्रम के अंत में डॉ. नीतू अग्रवाल और डॉ. मनोज कुमार द्विवेदी, दोनों प्रतिभागी द्वारा औपचारिक धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया। देश के विभिन्न राज्यों से जुड़े शिक्षकों, विद्यार्थियों और शोधार्थियों की उत्साहपूर्ण सहभागिता ने इस प्रशिक्षण कार्यक्रम को अत्यंत सफल और प्रभावी बना दिया। कार्यक्रम का संचालन शोधार्थी गरिमा यादव ने किया। कार्यक्रम के सफल समापन के लिए कार्यक्रम को-कोऑर्डिनेटर डॉ. गरिमा सिंह ने कुलपति प्रो. पूनम टंडन, प्रो. चंद्रशेखर, प्रो. धनंजय कुमार, प्रो. अनुभूति दूबे सहित सभी प्रतिभागियों, सभी एमएमटीसी के सहयोगी कर्मचारी और विभागीय शोध छात्राओं विशेष रूप से गरिमा यादव , गरिमा सिंह , स्तुति अग्रवाल और शांभवी त्रिपाठी को धन्यवाद ज्ञापित किया ।


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