दिल्ली-NCR में बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए दिल्ली सरकार ने सोमवार को आदेश दिया कि अब सरकारी और प्राइवेट ऑफिस सिर्फ 50% कर्मचारियों के साथ काम करेंगे। बाकी कर्मचारी वर्क फ्रॉम होम करेंगे। साथ ही शहर में GRAP-3 के नियम लागू कर दिए गए हैं। यह आदेश पर्यावरण विभाग ने एनवायरनमेंट (प्रोटेक्शन) एक्ट, 1986 की धारा 5 के तहत जारी किया है। विभाग का कहना है कि प्रदूषण बहुत ज्यादा बढ़ गया है, इसलिए ट्रांसपोर्ट और ऑफिसों से होने वाले धुएं को कम करना जरूरी है। सरकारी दफ्तरों में सचिव और विभागाध्यक्ष रोज ऑफिस आएंगे, लेकिन बाकी स्टाफ का आधा हिस्सा ही ऑफिस में मौजूद रहेगा। प्राइवेट ऑफिसों को भी सलाह दी गई है कि वे कर्मचारियों के आने-जाने का समय अलग-अलग रखें और वर्क फ्रॉम होम को ठीक से लागू करें, ताकि सड़कों पर गाड़ियों की संख्या कम हो सके। CPCB के अनुसार, सोमवार को दिल्ली का 24 घंटे का औसत AQI 382 रहा, जो कि बहुत खराब स्तर माना जाता है। दिल्ली के 38 एयर मॉनिटरिंग स्टेशनों में से 15 स्टेशनों पर AQI 400 से ज्यादा रिकॉर्ड किया गया, जिसे गंभीर श्रेणी में रखा जाता है। नियम तोड़ने वालों पर कार्रवाई होगी पर्यावरण विभाग ने अपने आदेश में कहा कि हॉस्पिटल, स्वास्थ्य सेवाएं, फायर सर्विस, सार्वजनिक परिवहन, पानी और सफाई जैसी जरूरी सेवाओं को इस नियम से छूट दी गई है। सरकार ने कहा है कि इस आदेश को ठीक से लागू कराने की जिम्मेदारी जिला मजिस्ट्रेट, पुलिस DCP और स्थानीय निकायों की होगी। विभाग ने यह भी चेतावनी दी है कि अगर कोई इन नियमों का पालन नहीं करेगा तो उसके खिलाफ एनवायरनमेंट (प्रोटेक्शन) एक्ट की धारा 15 और 16 के तहत कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेटियोरोलॉजी, पुणे के डिसीजन सपोर्ट सिस्टम (DSS) के अनुसार 21.6% प्रदूषण वाहनों से निकलने वाले धुएं से होता है। वहीं 1.8% पराली जलाने से होता है। गंभीर श्रेणी वाले प्रमुख स्टेशन- ITO, पंजाबी बाग, पटपड़गंज, अशोक विहार, बवाना, नरेला, विवेक विहार, सोनिया विहार। एयर क्वालिटी इंडेक्स का क्या मतलब है? एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) एक तरह का टूल है, जो यह मापता है कि हवा कितनी साफ और स्वच्छ है। इसकी मदद से हम इस बात का भी अंदाजा लगा सकते हैं कि इसमें मौजूद एयर पॉल्यूटेंट्स से हमारी सेहत को क्या नुकसान हो सकते हैं। AQI मुख्य रूप से 5 सामान्य एयर पॉल्यूटेंट्स के कॉन्सन्ट्रेशन को मापता है। इसमें ग्राउंड लेवल ओजोन, पार्टिकल पॉल्यूशन, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड शामिल हैं। आपने AQI को अपने मोबाइल फोन पर या खबरों में आमतौर पर 80, 102, 184, 250 इन संख्याओं में देखा होगा। इन अंकों का क्या मतलब होता है, ग्राफिक में देखिए। हवा का स्तर खराब होने पर GRAP लागू होता है हवा के प्रदूषण स्तर की जांच करने के लिए इसे 4 कैटेगरी में बांटा गया है। हर स्तर के लिए पैमाने और उपाय तय हैं। इसे ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (GRAP) कहते हैं। इसकी 4 कैटेगरी के तहत सरकार पाबंदियां लगाती है और प्रदूषण कम करने के उपाय जारी करती है। हाई लेवल से ऊपर AQI खतरा AQI एक तरह का थर्मामीटर है। बस ये तापमान की जगह प्रदूषण मापने का काम करता है। इस पैमाने के जरिए हवा में मौजूद CO (कार्बन डाइऑक्साइड ), OZONE, (ओजोन) NO2 (नाइट्रोजन डाइऑक्साइड), PM 2.5 (पार्टिकुलेट मैटर) और PM 10 पोल्यूटेंट्स की मात्रा चेक की जाती है और उसे शून्य से लेकर 500 तक रीडिंग में दर्शाया जाता है। हवा में पॉल्यूटेंट्स की मात्रा जितनी ज्यादा होगी, AQI का स्तर उतना ज्यादा होगा और जितना ज्यादा AQI, उतनी खतरनाक हवा। वैसे तो 200 से 300 के बीच AQI भी खराब माना जाता है, लेकिन अभी हालात ये हैं कि राजस्थान, हरियाणा दिल्ली और उत्तर प्रदेश के कई शहरों में ये 300 के ऊपर जा चुका है। ये बढ़ता AQI सिर्फ एक नंबर नहीं है। ये आने वाली बीमारियों के खतरे का संकेत भी है। ——————————- ये खबर भी पढ़ें… दिल्ली-NCR में प्रदूषण से जुड़े नियम बदले, अब AQI 200+ होने पर ऑफिस टाइम बदलेगा दिल्ली-NCR में बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) ने GRAP यानी ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान को और सख्त कर दिया है। अब कई बड़े कदम शुरुआत में ही लागू होंगे, ताकि हवा बिगड़ने से पहले हालात संभल सकें। पूरी खबर पढ़ें…
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