रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि सीमाएँ कभी भी बदल सकती हैं और संभव है कि एक दिन पाकिस्तान का सिंध प्रांत पुनः भारत में शामिल हो जाए। हालांकि पाकिस्तान ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के बयान पर आपत्ति जताई है लेकिन देखा जाये तो सिंध सभ्यतागत रूप से हमेशा भारत का हिस्सा रहा है और सिंधी समुदाय भारत की सांस्कृतिक पहचान का महत्वपूर्ण प्रतीक है। राजनाथ सिंह ने भी कहा है कि सिंध का उल्लेख भारत के राष्ट्रीय गान में होने से यह क्षेत्र भारत की सांस्कृतिक स्मृति में स्थायी रूप से जुड़ा हुआ है। उन्होंने आगे कहा कि जैसे-जैसे परिस्थितियाँ बदलेंगी, सीमाएँ भी बदल सकती हैं और भारत अपने ऐतिहासिक व सांस्कृतिक अधिकारों को लेकर सतर्क है।
इसके अलावा, भारतीय सेना की वेस्टर्न कमांड ने ‘राम प्रहार’ नामक एक महीने लंबे बड़े युद्धाभ्यास को पूरा किया, जिसमें 20,000 से अधिक सैनिकों और वायुसेना की टुकड़ियों ने भाग लिया। इस अभ्यास में पाकिस्तान सीमा के पार पंजाब सेक्टर में संभावित आक्रामक अभियानों का सिमुलेशन किया गया। वेस्टर्न कमांड के GOC-in-C लेफ्टिनेंट जनरल मनोज कुमार कात्याल ने कहा कि यदि पाकिस्तान ने किसी नए उकसावे की कोशिश की, तो भारत जवाबी कार्रवाई करते हुए पाकिस्तान की धरती पर प्रवेश करने के लिए भी तैयार है। यह अभ्यास उन स्थितियों की तैयारी के लिए किया गया जिनमें पाकिस्तान ने पंजाब में नहरों व अवरोधों को भारतीय टैंकों और आर्मर्ड यूनिट्स के खिलाफ बाधा बनाया हुआ है।
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यह दो समाचार हमने आपको विशेष रूप से इसलिए बताये ताकि इनके आधार पर हम स्थितियों का विश्लेषण कर सकें। देखा जाये तो यह दोनों घटनाक्रम पाकिस्तान के लिए दो कड़वे संदेश लेकर आये हैं। इनमें एक संदेश राजनीतिक है और दूसरा सैन्य है। राजनाथ सिंह का बयान कि “सीमाएँ कभी भी बदल सकती हैं, कौन जानता है, एक दिन सिंध भारत वापस आ सकता है,” सिर्फ भावनात्मक या सांस्कृतिक टिप्पणी नहीं है। यह दक्षिण एशिया की बदलती भू-राजनीति का स्पष्ट संकेत है। उधर देहरादून में वेस्टर्न कमांड का युद्धाभ्यास और GOC-in-C का सीधा संदेश कि “ज़रूरत पड़ी तो हम पाकिस्तान में घुसकर सबक सिखाने के लिए तैयार हैं”—इन दो घटनाओं को साथ रखकर देखें तो तस्वीर साफ होती है: भारत अब प्रतीक्षा नहीं, तैयारी और पहल की रणनीति पर चल रहा है।
राजनाथ सिंह का बयान पाकिस्तान के लिए असहज करने वाला है, क्योंकि इसमें सिर्फ इतिहास का हवाला नहीं है, बल्कि भविष्य की भू-राजनीति का संकेत है। सिंध, भारत की सिंधु–सरस्वती सभ्यता का उद्गम स्थल, आज पाकिस्तान में है, परंतु सांस्कृतिक स्मृति में वह भारत का ही हिस्सा है। भारत के राष्ट्रगान में ‘सिंधु’ शब्द का उल्लेख अपने आप में यह दिखाता है कि भारत की राष्ट्रीय चेतना सिंध को भूला नहीं है। जब रक्षा मंत्री कहते हैं कि “सीमाएँ बदल सकती हैं,” तो यह सिर्फ बयानबाजी नहीं—बल्कि यह बताता है कि भारत आज अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की उस भाषा को समझ रहा है जहाँ शक्ति ही सीमा की परिभाषा तय करती है। यूक्रेन-रूस युद्ध हो, या इजरायल-गाजा विवाद—21वीं सदी ने यह सिद्ध कर दिया है कि नक्शे पत्थर पर नहीं लिखे होते, और भारत यह समझ चुका है।
इसके अलावा, 20,000 सैनिकों, लड़ाकू विमानों, अपाचे हैलिकॉप्टरों, आर्मर्ड कॉलम और नाइट-ड्रॉप ऑपरेशनों के साथ हुआ ‘राम प्रहार’ युद्धाभ्यास कोई साधारण अभ्यास नहीं था। यह पहली बार था कि उत्तराखंड के मैदानों में पंजाब सीमा की भौगोलिक परिस्थितियों को मिलाकर पाकिस्तान के खिलाफ संभावित तीव्र आक्रामक कार्रवाई का सिमुलेशन किया गया। GOC-in-C का यह कहना कि “यदि पाकिस्तान ने कोई शरारत की, तो हम पाकिस्तान में घुसकर जवाब देंगे,” रणनीतिक भाषा में ‘प्रोएक्टिव ऑपरेशन डॉक्ट्रिन’ का संकेत है। यह बयान केवल पाकिस्तान के लिए चेतावनी नहीं, बल्कि भारतीय जनता के लिए आश्वासन है कि यह नई सेना इंतजार नहीं करेगी, यह कार्रवाई करेगी।
देखा जाये तो पाकिस्तान दशकों से नहरों, अवरोधों और रक्षा पंक्तियों को भारत के खिलाफ सुरक्षा कवच मानता आया है। परंतु भारतीय सेना ने अब उन स्थितियों में लड़ने की क्षमता प्रदर्शित कर दी है जिनसे पाकिस्तान अपनी रक्षा की कल्पना करता है। भारत ने यह भी दिखाया कि वह एक साथ मल्टी-डोमेन वॉर—जमीन, हवा, साइबर, ड्रोन और सटीक प्रहार, सब एक साथ करने की क्षमता रखता है। इससे पाकिस्तान का पुराना ‘बाटा शू–लेवल’ सैन्य ढांचा पूरी तरह अप्रासंगिक हो चुका है।
राजनाथ सिंह का सिंध पर बयान और सेना की तैयारियाँ आपस में असंबद्ध घटनाएँ नहीं हैं। ये भारत की व्यापक रणनीतिक सोच का हिस्सा हैं। एक तरफ भारत सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दावे को वैधता दे रहा है—जो पाकिस्तान के विभाजन के बाद भी समाप्त नहीं हुआ। दूसरी ओर सेना यह स्पष्ट कर रही है कि यदि पाकिस्तान फिर कभी 1965 या 1999 वाला खेल खेलेगा, तो मैदान सिर्फ सीमा तक सीमित नहीं रहेगा।
यह वस्तुस्थिति है कि आज पाकिस्तान आर्थिक संकट में है, राजनीतिक अस्थिरता में उलझा हुआ है और उसकी सेना आतंकियों पर नियंत्रण भी खोती जा रही है। ऐसे समय में भारत की सामरिक तैयारी पाकिस्तान को बताती है कि सीमा पार शरारतें उसे पहले से कहीं अधिक महंगी पड़ेंगी। सिंध में राष्ट्रवादी आंदोलन, जैसे सिंधी हिंदुओं और सैकड़ों सालों के सांस्कृतिक संबंधों की स्मृतियाँ, भारत के लिए एक मनोवैज्ञानिक शक्ति हैं। पाकिस्तान जितना कमजोर होगा, सिंध जैसे प्रांतों का भारतीय सभ्यता की ओर झुकाव उतना प्रबल होगा।
देखा जाये तो आज भारत एक ऐसे मोड़ पर है जहाँ वह न केवल अपनी रक्षा कर सकता है, बल्कि अपने हितों का विस्तार करने का सामर्थ्य भी रखता है। ‘सीमाएँ बदल सकती हैं’— यह वाक्य पाकिस्तान को सिर्फ चेतावनी नहीं, बल्कि वह भविष्य का संकेत है जो बदलते एशिया में संभव हो सकता है। दूसरी ओर, सेना का युद्धाभ्यास पाकिस्तान को यह संदेश देता है कि भारत सिर्फ कूटनीति नहीं, बल्कि बल-प्रयोग की स्थिति में भी तैयार और सक्षम है।
बहरहाल, यह वही भारत नहीं है जिसे सिंध से हाथ धोने पड़े थे। यह वह भारत है जो अपने इतिहास को याद करता है, अपने वर्तमान को मजबूत करता है और अपने भविष्य को खुद लिखने की क्षमता रखता है। सिंध की सांस्कृतिक पुकार और पाकिस्तान को दी गई सैन्य चेतावनी, दोनों एक ही दिशा में संकेत करते हैं कि भारत अब परिधि पर नहीं, केंद्र में खड़ा राष्ट्र है और आज का भारत स्पष्ट संदेश देता है कि उकसाओगे तो पछताओगे; इतिहास बदलोगे तो सीमा भी बदल सकती है।
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